महाराष्ट्र की राजनीति में सत्ता का खेल शुरू हो गया है। अब इसकी मलाई खाने के लिए अजित पवार भी अपने चाचा को छोड़कर सरकार में शामिल हो गये हैं। पहले की तरह ही अजित पवार ने आज दिन में मीटिंग की और दोपहर तक उपमुख्यमंत्री भी बन गये। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही उठने लगा है कि आखिर इस समय इस खेल की ज़रूरत क्या है? क्या है अंदर का खेल, ये हमको बताते हैं।
पहली बात तो ये कि ये खेल मुंबई से नहीं बल्कि दिल्ली से गृहमंत्री अमित शाह के इशारे पर खेला गया है। सब कुछ उनके यहां से ही तय हुआ। दो दिन पहले ही अजित पवार ने उनसे मुलाकात की और चालीस विधायकों की सूची दिखाई तो काम बन गया। अजित पवार पहले भी एक दिन के लिए उपमुख्यमंत्री बने थे लेकिन तब शरद पवार ने एक ही दिन में सरकार गिरा दी थी।
बहरहाल, इस बार उनको फिर साथ लेकर बीजेपी ने एक साथ कई शिकार किये। पहला तो ये कि पिछले कई दिनों से महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी के तीनों दल मिलकर मज़बूत विपक्ष बना रहे थे और बीजेपी को लोकसभा से लेकर विधानसभा के चुनाव तक का डर सताने लगा था। ऐसे में बीजेपी ने अजित पवार को तोड़कर राज्य में विपक्ष की आघाड़ी को तोड़ दिया। पहले शिवसेना तोड़ी और अब एनसीपी तो जाहिर तौर पर अब बीजेपी और उनका कुनबा सबसे बड़ा हो गया है। इस तरह बीजेपी ने अभी तो चुनावी बिसात ठीक कर ली है। बीजेपी को महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर पिछले चुनाव में 48 में से 42 सीटें मिल गयी थीं और अब भी उसकी ज़रूरत है कि ये सीटें कम नहीं हो पायें। इसलिए पहले शिवसेना से एकनाथ शिंदे को तोड़ा गया और अब एनसीपी को। शिंदे को तोड़ने के बाद भी बीजेपी को भरोसा नहीं हो रहा था कि लोकसभा में वो अच्छी सीटें जीत पायेगी इसलिए अब एनसीपी को तोड़कर अपनी स्थिति मजबूत की है।
अब आगे क्या होगा, सबकी नज़र इस पर है। पहली बात ये है कि अजित पवार अब आधिकारिक तौर पर पार्टी पर दावा करेंगे और एनसीपी को अपना बना लेंगे जैसा शिंदे ने शिवसेना के साथ किया।
राजनैतिक तौर पर अब एकनाथ शिंदे बीजेपी की मजबूरी नहीं रह गये हैं अब अजित पवार के पास भी उतने ही विधायक हैं जितने शिंदे के। ऐसे में बीजेपी जो चाहे फ़ैसला कर सकती है। हो सकता है कि अब देवेंद्र फणनवीस दिल्ली जायें क्योंकि अजित पवार के साथ उनका क़द बहुत छोटा हो जायेगा। दिल्ली में अगले सप्ताह विस्तार हो सकता है जिसमें देवेंद्र फणनवीस और प्रफुल्ल पटेल मंत्री बन सकते हैं।
इतना ही नहीं, आने वाले समय में भाजपा चाहे तो महाराष्ट्र में एक नया मुख्यमंत्री बना सकती है क्योंकि स्पीकर राहुल नार्वेकर भाजपा से हैं और उनको 16 विधायकों की सदस्यता का फ़ैसला देना है। अगर वो इन विधायकों को निलंबित कर देते हैं तो ऐसा हो सकता है।
इस बीच, एक सवाल ये है कि क्या शरद पवार को ये सब मालूम था तभी बेटी को कार्याध्यक्ष बना दिया है और संजय राउत ने शरद पवार के हवाले से ही कहा था कि अजित पवार पार्टी छोड़ सकते हैं तो क्या पवार को सबका पहले से अंदाजा था और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पाये।
अब राजनीति पर असर ये कि मौजूदा सरकार में बीजेपी, एनसीपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना- तीनों में वर्चस्व की लड़ाई दिखेगी और बीजेपी को इसको संभालना कठिन होगा। अगर शरद पवार विरोध में रहते हैं और कांग्रेस तथा उद्धव का साथ देते हैं तो मराठाओं की सहानुभूति पवार के साथ ही जायेगी। इसके साथ ही एनसीपी के कमजोर होने का फायदा कांग्रेस को मिलेगा जो एनसीपी के हाथ में खोयी अपनी जमीन वापस ले पायेगी।
राज्य में पहला राउंड तो बीजेपी ने सत्ता की मलाई लूटकर ले ली है लेकिन लंबे समय में बीजेपी को इसका फायदा मिलेगा, ये अभी कहना कठिन है क्योंकि बीजेपी लगातार जिस तरह से महाराष्ट्र में प्रयोग कर रही है, मराठी अस्मिता को इससे धक्का लगा है और ये दाँव उल्टा भी पड़ सकता है।
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