क्या मोदी कैबिनेट विस्तार 2021 में स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्द्धन को बलि का बकरा बनाया गया? क्या उन्हें मोदी कैबिनेट फेरबदल 2021 में बाहर का रास्ता इसलिए दिखाया गया कि सरकार की खराब हो चुकी छवि को और खराब होने से बचाया जा सके? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लिए फ़ैसलों का ठीकरा हर्षवर्द्धन पर फोड़ा है?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि कुछ दिन पहले तक कोरोना टीकाकरण अभियान को दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान बना कर पेश किया गया था।
यह कहा गया था कि टीका की कोई कमी नहीं है, कोरोना के नाम पर विपक्ष सिर्फ ओछी राजनीति कर रहा है। उस समय के स्वास्थ्य मंत्री आज सरकार से बाहर हैं।
क्या कहा था मोदी ने?
स्वयं प्रधानमंत्री ने कोरोना महामारी की बात करने वालों और इसकी चपेट में आकर बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की आशंका जताने वालों पर तीखा व्यंग्य किया था और सवाल किया था कि उनकी भविष्यवाणियों का क्या हुआ?
जिस व्यक्ति ने एलान किया था कि कोरोना ख़त्म हो चुका है और दावा किया था कि भारत ने दुनिया को एक नई राह दिखाई है, उसी ने अपने स्वास्थ्य मंत्री को कोरोना रोकने में नाकाम रहने के लिए ज़िम्मेदार मान लिया?
पहली लहर : सरकार की कारगुजारियाँ!
- कोरोना का पहला मामला जनवरी 2020 के अंत में आने के बावजूद लॉकडाउन अप्रैल में लगाया गया था, जिसकी पहले से कोई तैयार नहीं की गई। लॉकडाउन के पहले तक हवाई सेवा, पर्यटन, सड़क परिवहन, लोकसभा वगैरह बिल्कुल सामान्य चल रहा था।
- सरकार ने कोरोना वायरस को रोकने के नाम पर तालियाँ बजाने, थालियाँ पीटने, रात नौ बजे नौ मिनट तक नौ दिये या मोमबत्तियाँ जलाने जैसे अवैज्ञानिक अनुष्ठान किए।
- कोरोना महामारी की चेतावनी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मिलने के बावजूद सरकार पीपीई किट और मास्क जैसी चीजों का निर्यात करती रही।
- सरकार ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन जैसी दवाएं अमेरिका और ब्राज़ील को निर्यात कीं। इस दवा के इस्तेमाल से लोगों को कोरोना संक्रमण नहीं फैलता है, यह शोध अमेरिकी वैज्ञानिकों ने किया था।
- भारत सरकार ने कोरोना की पहली लहर के बाद ही कोरोना वैक्सीन का निर्यात 80 देशों को किया। जब अपने यहाँ दूसरी लहर आई तो भारत के पास कोरोना वैक्सीन नहीं थी।
कैबिनेट बैठक में कोरोना पर फ़ैसला नहीं
कोरोना के प्रति मोदी की उदासीनता इससे समझा जा सकता है कि दूसरी लहर शुरू होने के बाद केंद्रीय कैबिनेट की पाँच बैठकें हुईं, लेकिन इनमें इस महामारी को लेकर एक भी फ़ैसला नहीं लिया गया।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर मार्च के आख़िर या अप्रैल के पहले हफ़्ते से शुरू हुई थी और ये बैठकें भी 1 अप्रैल से 12 मई के बीच हुईं।
क्या इन बैठकों में प्रधानमंत्री मौजूद नहीं रहते थे?हैरान करने वाली बात यह भी है कि महामारी से जुड़े सारे फ़ैसले प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ही अकेले करता रहा तो ऐसे में भारत सरकार की कैबिनेट की आख़िर क्या भूमिका रह गयी?
कैबिनेट की इन बैठकों में मेट्रो प्रोजेक्ट्स, दूसरे देशों के साथ एमओयू साइन करने और कुछ अन्य योजनाओं को लेकर तो फ़ैसले लिए गए, लेकिन कोरोना महामारी को लेकर कोई निर्णय नहीं हुआ।
‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, 20 अप्रैल को जब कोरोना की दूसरी लहर अपने चरम पर थी और देश भर में दिल दहला देने वाले हालात थे, उस दिन हुई मोदी कैबिनेट की बैठक में बेंगलुरू मेट्रो के दूसरे चरण से जुड़े प्रोजेक्ट्स को मंजूरी और न्यूज़ीलैंड, आस्ट्रेलिया, बांग्लादेश और ब्राजील के साथ कुछ आपसी समझौतों को मंजूरी दी गयी।
ऐसे हालात में सवाल यही खड़ा होता है कि इतनी भयंकर महामारी और सरकार की लापरवाहियों के कारण देश में बने हालात के वक़्त भी केंद्रीय कैबिनेट कोई भूमिका क्यों नहीं निभा पाया। इस दौरान सरकार के लिए महामारी से लड़ना ज़रूरी था या मेट्रो या दूसरे प्रोजेक्ट्स को मंजूरी देना।
कब-कब हुई कैबिनेट की बैठकें?
1 अप्रैल के अलावा मोदी कैबिनेट की बैठक 7 अप्रैल, 20 अप्रैल, 28 अप्रैल और 12 मई को हुई। पिछली यानी 12 मई को हुई बैठक में कैबिनेट ने आईटीबीपी की ज़मीन को उत्तराखंड सरकार को सौंपने का फ़ैसला किया।
भारत की संघीय व्यवस्था और संसदीय लोकतंत्र की जानकारी रखने वाला कोई भी शख़्स इसे जानकर हैरान ही होगा कि देश के साथ ही दुनिया भर के मामलों में मंजूरी कैबिनेट की इन बैठकों में दी गई, लेकिन कोरोना महामारी को लेकर कोई फ़ैसला नहीं हुआ।
केंद्रीय कैबिनेट के सारे मंत्रियों से इस मामले में राय-मशविरा करने के साथ ही उन्हें जिम्मेदारियां भी सौंपी जा सकती थीं कि कोई मंत्री ऑक्सीजन का मामला देख ले तो कोई दवाइयों और अस्पतालों में बेड्स की कमी का।
मामले बढ़ने की चेतावनी दी गई थी!
'एनडीटीवी' ने आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर और कोविड-19 सुपरमॉडल कमेटी के प्रमुख डा. एम विद्यासागर के हवाले से यह दावा किया है कि केंद्र सरकार को 2 अप्रैल 2021 को ही यह आगाह कर दिया गया था कि कोरोना के नए मामले रोज़ाना बढ़ेंगे और 15 मई से 22 मई के बीच रोजाना कोरोना के मामले 1.2 लाख तक पहुँच सकते हैं।
प्रोफ़ेसर विद्यासागर ने 'एनडीटीवी' से यह भी कहा कि बाद में 'पीक' का समय मई के पहले हफ्ते में कर दिया गया।
डॉ. विद्यासागर ने कहा कि कोई भी देख सकता है कि 13 मार्च तक कोरोना के केस का ग्राफ़ ऊपर चढ़ने लगा था। लेकिन उस समय इतने आँकड़े नहीं थे कि आगे की भविष्यवाणी की जाती।
सरकार को यह जानकारी दे दी गई थी कि रोज़ाना सामने आने वाले कोरोना मामले 8 मई तक 'पीक' यानी अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुँच सकते हैं। यह भी कहा गया था कि 14 से 18 मई तक एक्टिव केस 38 से 44 लाख के बीच हो सकते हैं।
डॉ. विद्यासागर ने 'एनडीटीवी' से कहा कि शुरुआती अनुमान 15 से 22 मई के बीच था और क्योंकि ऐसे कुछ समाधान लागू किए जा सकते हैं, जिनका नतीजा आने में 3 से 4 महीने का समय लग सकता है।
सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री को इन बातों की जानकारी नहीं थी? यदि वाकई उन्हें कुछ पता नहीं था तो सवाल यह है कि उन्होंने अपने मातहत मंत्री से उस समय क्यों नहीं पूछा था।
दूसरी लहर : क्या किया सरकार ने?
सवाल तो यह उठता है कि जब केंद्र सरकार को कोरोना विस्फोट की जानकारी थी तो उसने क्या किया। क्या सरकार ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए क्रायोजेनिक टैंकर या ऑक्सीजन रखने के लिए बड़े कैनिस्टर का इंतजाम नहीं कर सकती थी?
यदि इसे बनाना मुमकिन नहीं था तो क्या सिंगापुर, वियतनाम या इंडोनेशिया जैसे देशों से इसे मंगाया नहीं जा सकता था? सवाल यह उठता है कि कुछ अस्पतालों में ऑक्सीजन संयंत्र लगाए नहीं जा सकते थे?
सवाल यह भी है कि क्या चीन से कुछ मदद नहीं ली जा सकती थी क्योंकि चीन कोरोना महामारी की दूसरी लहर से गुजर चुका था और उसने उसे बखूबी संभाला था, जिसकी तारीफ विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिका जैसे प्रतिद्वंद्वी तक ने की थी?
ख़तरनाक वायरस की चेतावनी
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी 'रॉयटर्स' के मुताबिक़, यह सच है कि सरकार को सलाह देने वाले वैज्ञानिकों ने मार्च में सरकार को चेतावनी दे दी थी कि नये क़िस्म का कोरोना वायरस बेहद ख़तरनाक साबित होगा।
'रॉयटर्स' का दावा है कि उन्होंने इस समूह के पाँच वैज्ञानिकों से बात कर यह रिपोर्ट तैयार की और उनके मुताबिक़, सरकार ने वैज्ञानिकों की बात को गंभीरता से नहीं लिया। चुनावी रैलियाँ की गयी, कुंभ पर कोई रोक नहीं लगी और कोरोना प्रोटोकॉल का सख़्ती से पालन नहीं कराया गया।
क्या करती रही सरकार?
इस वेरियंट के बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय के नेशनल सेंटर फ़ॉर डिजीज कंट्रोल को 10 मार्च के पहले जानकारी दे गयी और यह भी कह दिया गया कि ये वेरियंट पहले से अधिक ख़तरनाक होगा और पहले की तुलना में अधिक तेज़ी से फैलेगा।
इस दौरान INSACOG ने स्वास्थ्य मंत्रालय के लिये मीडिया को देने के लिये एक बयान भी तैयार किया।
इसमें यह कहा गया था कि ये नये म्युटेंट अधिक घातक हैं, ज़्यादा तेज़ी से मनुष्य के शरीर में प्रवेश करते हैं, और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करते हैं। इस मीडिया नोट में यह भी लिखा था कि यह “अत्यंत चिंता” की बात है।
खबर में यह दावा किया गया है कि इस बात की जानकारी मीडिया को दो हफ़्ते यानी 24 मार्च को दी गयी, लेकिन मीडिया नोट से 'अत्यंत चिंता' को नहीं लिखा गया। सिर्फ़ यह लिखा गया कि अधिक चिंताजनक वायरस का पता चला है और इससे निपटने के लिये अधिक टेस्टिंग और क्वरेंटाइन की ज़रूरत है।
हर्षवर्द्धन की पीठ ठोकी थी सबने
कुछ दिन पहले तक सरकार इसी स्वास्थ्य मंत्री के काम पर खूब इतराती थी। केंद्र सरकार ने टीकाकरण का खूब ढोल पीटा और यह दावा किया कि यह दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान है, हालांकि यह दावा ग़लत था।
नई कोरोना टीका नीति के पहले ही दिन 21 जून को 86.16 लाख लोगों का टीकाकरण करने का एलान करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्द्धन ने दावा किया था कि इसके साथ ही भारत एक दिन में सबसे ज़्यादा कोरोना टीका खुराक़ें देने वाला देश बन गया।
उस समय स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर हर्षवर्द्धन की तारीफ़ की थी।
बधाई!
स्वास्थ्य मंत्री ने ट्वीट कर कहा, 'बधाई! 21 जून को 86.16 लाख कोरोना खुराक़ें दी गईं। यह पूरी दुनिया में एक दिन में दी जाने वाली सबसे ज़्यादा ख़ुराक है।'
उन्होंने इसके आगे यह भी कहा कि 'माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में पूरी सरकार और पूरा समाज एकजुट होकर कोविड से लड़ रहा है।'
Congratulations 🇮🇳!!
— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) June 22, 2021
86.16 lakh #COVID19Vaccine doses administered on Jun 21!💉
Highest ever single day coverage across the🌏!
Under the remarkable leadership of Hon'ble PM Sh @narendramodi Ji, the 'Whole of Govt' & 'Whole of Society' is collectively working to defeat #COVID19 https://t.co/ak1SH9UywY
मोदी की कोरोना नीति पर उठे थे सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की कोरोना टीका नीति पर सवाल उठाते हुए कहा था कि 45 साल और इससे अधिक की उम्र के लोगों को मुफ़्त कोरोना टीका देना और 45 से कम की उम्र के लोगों से इसके लिए पैसे लेना 'अतार्किक' और 'मनमर्जी' है।
उसने केंद्र सरकार से कहा था कि 31 दिसंबर, 2021 तक कोरोना टीके की उपलब्धता के बारे में विस्तार से बताए।
सर्वोच्च न्यायालय ने 18-44 साल की उम्र के लोगों से पैसे लेकर कोरोना टीका देने की नीति की आलोचना करते हुए कहा था कि इस आयु वर्ग के लोग न सिर्फ कोरोना से प्रभावित हुए हैं, बल्कि उन्हें संक्रमण के गंभीर प्रभाव झेलने पड़े हैं, उन्हें अस्पताल में लंबे समय तक भर्ती रहना पड़ा है और दुर्भाग्यवश कुछ लोगों की मौत भी हुई है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन हुआ?
- सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह कोरोना टीका की खरीद से जुड़ी हुई जानकारियाँ दे, सरकार विस्तार से बताए कि उसने कब, किससे और कितने कोरोना वैक्सीन खरीदने का ऑर्डर दिया था। अदालत ने सरकार से पूरा ब्योरा सौंपने को कहा।
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वह विस्तार से बताए कि तीन चरणों के टीकाकरण के दौरान उसने कब कितने लोगों को पहली खुराक और कब कितने लोगों को दूसरी ख़ुराक दी।
- इसके साथ ही सरकार यह भी बताए कि इन तीनों चरणों में कुल कितने लोगों को टीका दिया गया और यह कुल जनसंख्या का कितना प्रतिशत है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना टीका देने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य करने पर भी केंद्र सरकार की खिंचाई की थी। इसकी वजह यह थी कि देश की आबादी का एक बड़ा तबका ऑनलाइन से परिचित नहीं है या उसे मोबाइल फोन या ऐप या कंप्यूटर तक पहुँच नहीं है, सवाल यह है कि वह तबका कैसे रजिस्ट्रेशन कराए और कैसे टीका ले।
'स्मेल द कॉफ़ी'
सर्वोच्च ने इस पर सरकार की खिंचाई करते हुए कहा था, 'वेक अप एंड स्मेल द कॉफ़ी', यानी जगिए और अनुमान लगाइए कि आगे क्या होगा। कहने का मतलब यह कि सरकार को यह अनुमान होना चाहिए कि डिजिटल डिवाइड की वजह से बहुत से लोग ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं करा पाएंगे।
- सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा था कि टीका देने की प्रक्रिया इतनी लचीली होनी चाहिए कि जिनके पते बदल गए हों उन्हें भी टीका मिल जाए।
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर भी सफाई माँगी थी कि विदेशी टीका निर्माता सीधे राज्यों और केद्र-शासित क्षेत्रों से टीका देने पर बात नहीं करना चाहते और वे सीधे केंद्र सरकार से बात करना चाहते हैं तो इस पर सरकार का क्या कहना है।
- अदालत ने यह भी कहा था कि क्या सरकार एकमुश्त कोरोना टीका खरीदने पर कीमत को लेकर इन कंपनियों से बात कर सकती है और अपने एकाधिकार का इस्तेमाल कर कीमत कम करवा सकती है, इस पर उसका क्या कहना है, यह बताए।
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा था कि क्या वह ऐसे कुछ टीकाकरण केंद्र बना सकती है, जहाँ पहले से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की ज़रूरत नहीं होगी और वहाँ जाने के बाद भी रजिस्ट्रेशन करवा कर उसी समय टीका लगवाया जा सकता है?
कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने इसके अलावा कुछ कड़ी टिप्पणियाँ भी की थीं और केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया था।।
- अदालत ने इस पर संदेह जताया था कि कोरोना टीका उत्पादन का 50 प्रतिशत राज्यों और निजी क्षेत्र के लिए छोड़ देने से टीका उत्पादन के लिए वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों में प्रतिस्पर्द्धा होगी और टीके की कीमत कम हो जाएगी।
- सुप्रीम कोर्ट ने टीके की कीमत पर भी सरकार की नीति पर आपत्ति की थी। उसने कहा था कि सरकार कोरोना वैक्सीन की कीमत अलग-अलग रखने का तर्क यह कह कर देती है कि उसे कम कीमत पर टीका इसलिए मिल रहा है कि उसने एकमुश्त बड़ा ऑर्डर दे दिया था।
- सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया था कि इसी तरह केंद्र सरकार अकेले ही सभी टीका क्यों नहीं खरीद सकती है, जिससे उसे कम कीमत अदा करनी होती।
आज मोदी भले ही हर्षवर्द्धन के सिर ठीकरा फोड़ें, पर सच यह है कि कोरोना टीका नीति का एलान उन्होंने किया था। यह ऐसी नीति थी जिसकी चौतरफा आलोचना हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सवा किए थे।
इतरा रही थी सरकार?
कोरोना को महामारी मानने से इनकार प्रधानमंत्री ने किया था, उन्होंने दावा किया कि भारत ने कोरोना को हरा दिया, भारत ने दुनिया को नई दिशा दी।
प्रधानमंत्री ने कोरोना टीका नीति का एलान किया, बाद में उसे बदला, केंद्र सरकार ने कोरोना पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टो के आदेशों पर हीला हवाला किया, उन्हें लागू नहीं किया, अदालत को सही जानकारी नहीं दी।
प्रधानमंत्री ने सबसे बड़े कोरोना टीकाकरण नीति का दावा किया, दुनिया को कोरोना टीका बाँटते रहे, ऑक्सीजन की कोई व्यवस्था नहीं की, दवाएं, पीपीई किट्स व हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन जैसी दवाएं अमेरिका व ब्राज़ील को देते रहे।
क्या से फ़ैसले हर्षवर्द्धन ने लिए थे? क्या अदालत के आदेशों का पालन करने में कोताही उन्होंने बरती थी?
फिर किस बात पर हर्षवर्द्धन को बाहर का रास्ता दिखाया गया?
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