वैसे तो आम धारणा है कि मुस्लिम बीजेपी को पसंद नहीं करते हैं, लेकिन बीजेपी के हाल के कुछ फ़ैसलों को पसमांदा मुस्लिमों को लुभाने वाले कदम के रूप में देखा जा रहा है। बीजेपी ने आज ही यानी शनिवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तारिक मंसूर को बीजेपी का उपाध्यक्ष नियुक्त किया है। उनकी यह नियुक्ति उसी दिन हुई है जिस दिन गृहमंत्री अमित शाह पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम पर एक किताब का विमोचन करने के लिए तमिलनाडु के रामेश्वरम में थे। उन्होंने पूर्व उपराष्ट्रपति की जमकर तारीफ़ की। बीजेपी के इन कदमों को पसमांदा मुस्लिमों तक अपनी पहुँच मज़बूत करने के तौर पर देखा जा रहा है।
पूर्व AMU वीसी बने बीजेपी उपाध्यक्ष, पसमांदा मुस्लिमों को लुभा रही पार्टी?
- विश्लेषण
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- 29 Jul, 2023
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले क्या बीजेपी अब पसमांदा मुस्लिमों को लुभाना शुरू कर दिया है? आख़िर एएमयू के पूर्व कुलपति तारिक मंसूर को बीजेपी का उपाध्यक्ष नियुक्त करने के मायने क्या हैं?

बीजेपी जिन पसमांदा मुस्लिमों पर अपनी नज़र गड़ाए है वे मुस्लिमों में बहुसंख्यक में हैं। आम तौर पर उच्च और नीची जाति का भेदभाव मुस्लिमों में भी है। 'अशरफ' मुसलमान, मसलन- सैयद, शेख, मुगल, पठान, आदि शीर्ष पर हैं, और सैयद बिरादरी अत्यधिक सम्मानीय है। अशरफ प्रभुत्व के खिलाफ आंदोलनों का नेतृत्व पिछड़े और दलित मुस्लिमों ने किया है और इन्हें ही पसमांदा नाम से जाना जाता है। समुदाय के केवल 15 प्रतिशत लोग इन उच्च जाति समुदायों से आते हैं, जबकि बाकी बड़े पैमाने पर पसमांदा मुसलमान हैं।