अंग्रेज़ी दमन के बीच जब नेहरू और गांधी समेत पूरा भारत औपनिवेशिक सत्ता के ख़िलाफ़ लड़ रहा था, लोगों को जेलों में ठूँसा जा रहा था और क्रांतिकारियों को थोक में फाँसी की सजा दी जा रही थी उस समय RSS यानि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ देश की आज़ादी के लिए क्या कर रहा था, इस बारे में लिखने के लिए एक पैराग्राफ़ से अधिक की आवश्यकता नहीं है। लेकिन भारत में सांप्रदायिकता के सतत अस्तित्व के लिए, RSS के द्वारा किए गये कार्यों को कई पुस्तकों में भी पूरा नहीं लिखा जा सकता। RSS के बारे में बात सिर्फ़ इतनी ही नहीं है कि उनके एक पूर्व स्वयंसेवक ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की थी। कहानी इसके आगे और भी है। वास्तव में RSS और उसके संगठन ‘राष्ट्रीय एकता’ की कितनी भी बात कर लें, उनके लिए राष्ट्र, सांप्रदायिकता के एक मंच से अधिक कुछ भी नहीं रहा।