पिछले दिनों महाराष्ट्र में चले सियासी उठा-पटक का पटाक्षेप हो चुका है। महाविकास अघाड़ी सरकार में शिवसेना के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बिगुल फूंककर शिवसेना के ही नेता एकनाथ शिंदे ने नए गठबंधन में भाजपा के साथ सरकार बना ली है। सियासी उठा-पटक के बाद सत्ता का चेहरा भले ही बदल गया है, लेकिन मुख्यमंत्री आज भी शिवसेना का ही है। हालांकि शिवसेना पर बाला साहेब की विरासत के दावे की यह लड़ाई अभी और लंबी चल सकती है।
वंशवादी दलों की कठिन होती राहें
- विश्लेषण
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- 30 Jul, 2022

क्या वंशवाद लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। क्या वशंवादी दलों की राजनीति को लोग नकार रहे हैं?
महाराष्ट्र में चले इस घटनाक्रम ने 'वंशवादी राजनीति' की बहस को एकबार फिर चर्चा में ला दिया है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि जब शिवसेना में बगावती घटनाक्रम सामने आये तब संजय राउत ने कहा था कि "शिवसेना छोड़कर जाने वाले 'अपने बाप' के नाम पर वोट मांगे, बाला साहेब ठाकरे के नाम पर नहीं।" राउत के इस बयान में वंशवाद की बुराई का अहंकारी उद्घोष था।
निस्संदेह भारत की राजनीति में वंशवाद एक चुनौती की तरह है। एक ऐसी चुनौती, जिसके बीज आजादी के बाद से अपनी जड़ें जमाए हैं। पचास के दशक में ही कांग्रेस ने देश की दलीय व्यवस्था में वंशवाद का जो बीज बोया, वो कालक्रम में फैलता ही गया।
लेखक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फ़ाउंडेशन में सीनियर रिसर्च फेलो तथा ब्लूम्सबरी से प्रकाशित गृह मंत्री अमित शाह की राजनीतिक जीवनी ‘अमित शाह एंड द मार्च ऑफ़ बीजेपी’ के लेखक हैं।