हैदराबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानों से खुद को जोड़ने की कोशिशे तेज़ कर दी हैं। मीडिया में ये मुद्दा छाया हुआ है। ऐसे में कई सवाल उठ रहे हैं। पहला सवाल तो यही है कि अचानक बीजेपी को पसमांदा मुसलमानों के प्रति इतना मोह क्यों उमड़ आया है।
बीजेपी को वाक़ई पसमांदा मुसलमानों से प्यार है?
- विश्लेषण
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- 8 Jul, 2022

क्या पसमांदा मुसलमान बीजेपी के साथ जुड़ेंगे और इनके जुड़ने से बीजेपी को कितना सियासी फायदा 2024 के चुनाव में हो सकता है।
दूसरा सवाल यह है कि क्या बीजेपी पसमांदा मुसलमानों को उनका वाजिब हक़ देकर पार्टी की मुख्यधारा में भी शामिल करेगी या दूसरी पार्टियों की तरह वह भी उन्हें सिर्फ अपनी जीत का आधार बनाकर एक वोट बैंक के रूप में अपने साथ रखेगी?
कौन हैं पसमांदा मुसलमान?
'पसमांदा' फारसी का शब्द है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है 'पस' और 'मांदा।' 'पस' का मतलब होता है पीछे और 'मांदा' का मतलब होता है छूट जाना। इस लिहाज़ से विकास की दौड़ में पीछे छूट गए लोगों को 'पसमांदा' कहा जाता है। मुस्लिम समाज का सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा तबक़ा 'पसमांदा' कहलाता है।