‘अयोध्या - राम जन्मभूमि- बाबरी मसजिद का सच’ किताब के लेखक शीतला सिंह ने दावा किया है कि देवरस ने विहिप के महामंत्री अशोक सिंघल को इस बात पर डाँट लगाई थी कि वे राम मंदिर निर्माण पर कैसे तैयार हो गए। उन्होंने और क्या-क्या दावे किए, यह जानने के लिए पढ़िए शीतला सिंह के साथ वी. एन. दास की बातचीत।
शीतला सिंह से वी. एन दास की बातचीत के प्रमुख अंश
सवाल: आपकी किताब 'अयोध्या मंदिर मस्जिद का सच' में आप ने कौन से सच का खुलासा किया है जो अनछुए रहे हैं?
जवाब : अभी तक केवल बीजेपी के पक्ष व मंदिर आंदोलन के घटनाक्रमों की जानकारी दी गई थी। मैंने उस तथ्य का विवरण दिया है जिसमें मुसलिम समाज के नेता राम मंदिर के निर्माण के लिए पहल कर रहे थे। पर संघ ने राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा नहीं होने दिया।
सवाल : कांग्रेस का क्या रोल रहा है विवाद के शुरुआती दौर में?
जवाब : राम मंदिर का मामला शुरू होते ही राजनीति से जुड़ गया। आचार्य नरेन्द्र देव को अयोध्या से चुनाव हरवाने वालों में 12 कांग्रेसी नेता ही थे। आरोप लगाया गया कि समाजवादी व वाम विचारधारा से प्रेरित आचार्य जी को अयोध्या स्वीकार नहीं करेगा।
सवाल : राम मंदिर के समझौते में जब मसजिद हटाने तक की सहमति बन गई तो संघ ने गर्भ गृह से मंदिर के निर्माण पर अड़ियलपन क्यों दिखाया?
जवाब : वास्तव में जो ट्रस्ट इसके समझौता व निर्माण के लिए बनाया गया था उसमें मुझे सरकार की तरफ़ से अहम ज़िम्मेदारी देने की पेशकश की गई थी। जिस पर विहिप ने मुझे वामपंथी विचारधारा का बता कर विरोध किया। विष्णु हरि डालमिया को कोषाध्यक्ष बनाने की मंशा विहिप की थी। ट्रस्ट के लोग चाहते थे कि मंदिर का निर्माण विवादित टुकड़े को छोड़ कर आगे से शुरू कर दिया जाए। पर संघ ने इस पर हरी झंडी विहिप को नहीं दी।
सवाल : कब शुरू किया था अयोध्या पर किताब का लेखन। चुनाव के पहले ही इसका प्रकाशन?
जवाब : मुझे किताब लिखने के लिए विनोद दुआ पत्रकार ने 1992 मे ढाँचा गिरने के अगले दिन ही कहा था। पर उस समय के माहौल को देखते हुए मैंने मना कर दिया था। इस पुस्तक को 7 साल पहले लिखना शुरू किया था जो अब पूरी हुई। इसका चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। क्योंकि मैं खुद राजनीतिक व्यक्ति नही हूँ।
सवाल : आप को क्या लगता है, मंदिर बनेगा?
जवाब : मामला राजनीति से जुड़ गया। आपसी सहमति से स्थानीय लोग इसका हल आसानी से निकाल सकते थे। शुरुआती दौर में विवाद के समाधान के लिए इसी लाइन पर पहल शुरू हुई थी पर अब तो यह कोशिश दूर की कौड़ी हो गई है।
सवाल : आप ने ऐसे हालात में क्या किया?
जवाब : मैंने संघ व विहिप की राजनीति को भाँप लिया था। यह भी जानकारी मिली थी कि अब आगे क्या होने वाला है। तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह को सारी जानकारी ढाँचा विध्वंस के पहले ही दे दी थी पर कांग्रेस ने भी इसे बचाने की ठोस पहल नहीं की।
सवाल : 1987 में जब मामले को सुलझाने को लेकर कोशिश हुई। उस समय के माहौल में और जब अब भी सुलह से निपटाने को एक विकल्प बताया जा रहा है। अंतर क्या है दोनों परिस्थितियों में?
जवाब : बहुत बड़ा अंतर आ गया है। उस समय यह प्रयास था कि शांति पूर्ण तरीके से हल निकले और लॉ एंड ऑर्डर देश भर में बना रहे। सामाजिक क्षति न होने पाए। दोनों कौमों में अमन-चैन बना रहे। पर अब तो सत्ता ऐसे दल के पास है जो देश को हिंदू राष्ट्र बनाने पर तुला हुआ है। मुसलमानों को निशाना बना कर हिंदुओं को एकजुट करने की कोशिशें हो रही हैं। मंदिर का मसला तो मात्र बहाना है। उस समय भी इन लोगों ने मंदिर नहीं बनने दिया। अब भी नहीं बनने देना चाहते।
सवाल : क्या आप मानते हैं कि कांग्रेस के कार्यकाल में मंदिर की राजनीति शुरू हुई?
जवाब : अयोध्या व मंदिर को लेकर ही आचार्य नरेन्द्र देव जैसे समाजवादी चिंतक के ख़िलाफ़ वरिष्ठ कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी, कमला पति त्रिपाठी, चंद्र भानु गुप्त आदि ने विरोध का मोर्चा खोला। अयोध्या के कांग्रेसी राघव दास के समर्थकों ने ही मसजिद में उस समय मूर्ति रखी थी। मंदिर कार्ड चुनावी सभाओं में उठाया जाता रहा है।
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