गड़बड़ियां उजागर करने वाले मुकेश चंद्राकर जैसे पत्रकारों की हत्याएँ आख़िर क्यों नहीं रुक रही हैं? क्या अब पत्रकारों की सुरक्षा पर ध्यान दिया जाएगा? क्या चंद्राकर की मौत भी व्यर्थ जाएगी? जानिए, पत्रकार संगठनों और परिषद ने क्या कहा है।
मुकेश चंद्राकर पहले पत्रकार नहीं हैं जिनकी हत्या हुई है। हाल के वर्षों में तमाम ऐसे पत्रकार हुए हैं जो विभिन्न सरकारों और माफियाओं के आँख की किरकिरी बने रहे जिनकी अंततः हत्या कर दी गई। जानिए, ऐसे में देश में लोकतंत्र किस स्थिति में है।