दरअसल यह लड़ाई सीबीआई में नंबर 1 और 2 के बीच नहीं, बल्कि सत्ता प्रतिष्ठान में पहले और दूसरे स्थान पर बैठे लोगों के बीच है। इस लड़ाई की वज़ह से केंद्रीय मंत्रिमंडल प्रधानमंत्री कार्यालय नौकरशाही और जांच एजेंसियां सभी दो हिस्सों में बंट गये हैं।
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लेकिन वर्मा ने यह किया क्यों? और किसके कहने पर? इन्हीं दो सवालों में इस लड़ाई का पूरा राज छुपा हुआ है।
माना जा रहा है कि वर्मा को हवा देने वाले प्रवर्तन निदेशालय के दो वरिष्ठ अधिकारी हैं। इनमें से एक भी अपने पद पर हैं जबकि दूसरे छुट्टी पर चल रहे हैं।
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राजेश्वर सिंह एअरसेल मैक्सिस मामले की छानबीन कर रहे है। इस मामले में मनमोहन सिंह सरकार मे दूरसंचार मंत्री रहे दयानिधि मारन और वित्त मंत्री रहे पी चिदांबरम के नाम जुड़े हुए हैं। इस मामले को काफ़ी संवेदनशील माना जाता है।
सिंह ने यह आरोप भी लगाया कि उन्हें जानबूझ कर इस मामले की तहकीक़ात करने वाली टीम से बाहर करने की कोशिश की जा रही है ताकि वे चिदाबंरम के ख़िलाफ़ सबूत इकट्ठा न कर सकें। अधिया ने चिट्ठी का जवाब देते हुए तमाम आरोपों को सिरे से नकार दिया। उन्होंने यह भी कहा कि पदोन्नति नियम के मुताबिक़ ही होता है और उनके मामले में भी ऐसा ही होगा। बाद में सिंह लंबी छुट्टी पर चले गए।
वित्त सचिव और वित्त मंत्री दोनों इस अधिकारी के ख़िलाफ़ सख़्त क़ार्रवाई चाहते थे। क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय वित्त मंत्रालय के अंतर्गत ही आता है, कार्रवाई करना उनके अधिकार क्षेत्र में ही था। लेकिन 8 महीने गुजरने के बावजूद इस अधिकारी के ख़िलाफ़ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। ज़ाहिर है कि उसे वित्त मंत्री से भी ऊपर बैठे किसी नेता का संरक्षण है।
वहीं दूसरी ओर यह अधिकारी अपने एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ मिलकर पिछले एक साल से लगातार राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ मुहिम चलाए हुए है। इसमें उसका साथ आलोक वर्मा दे रहे थे। इसमें प्रधानमंत्री कार्यालय के भी कुछ ग़ैर गुजराती अफसर भी शामिल है। इन्हें बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का संरक्षण प्राप्त है। इन्हीं की वजह से मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया घोटाले में कई बड़े नाम साफ़ बच निकले हैं जबकि उनके खिलाफ सीबीआई को ठोस सबूत मिल गए थे।
भले ही अभी इस लड़ाई में सीबीआई के दो अफसर दिख रहे हो लेकिन दोनों खेमों में कहीं ना कहीं आईबी,रॉ, इनकम टैक्स, रिजर्व बैंक जैसी संस्थाओं के चोटी के अफ़सर शामिल है।
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