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सत्यपाल का इंद्रजाल - न रहेगा फ़ैक्स, न बनेगी सरकार

अंग्रेज़ी की एक कविता है जिसके अनुसार घोड़े की 'नाल' टूट जाने से एक राजा की लड़ाई में हो गई हार। जम्मू-कश्मीर में पिछले दिनों जो घोड़े बिक रहे थे, उनकी नाल का तो पता नहीं, लेकिन सत्ता का 'माल' चखने की गरज़ से उनकी 'चाल' ज़रूर हो गई थी ख़राब। उन 'चालू' घोड़ों के बल पर ही राज्य में बीजेपी की सरकार बनाने का बुना जा रहा था 'जाल'। उस जाल को काटने के लिए जब वहाँ की तीन पार्टियों ने मिल कर ठोकी 'ताल' तो राज्य'पाल' ने चली एक अनोखी 'चाल' जिसका नाम है - न रहेगा फ़ैक्स, न बनेगी सरकार।
क़मर वहीद नक़वी
वाह राज्यपाल जी वाह! सुना है कि महबूबा मुफ़्ती का फ़ैक्स आपको नहीं मिला! क्यों नहीं मिला? आपके यहाँ से बताया गया कि ईद-मीलादुन्नबी की छुट्टी थी. इसलिए फ़ैक्स मशीन पर कोई ऑपरेटर मौजूद ही नहीं था. हो सकता है कि फ़ैक्स आया हो शायद, लेकिन कोई देखने वाला नहीं था! अद्भुत! यानी हम मान लें कि अगर प्रधानमंत्री कार्यालय से या राष्ट्रपति भवन से भी कोई फ़ैक्स आपको भेजा जाता, तो वह आपको नहीं मिल पाता! आप ख़ुद ही सबूत दे रहे हैं कि कितनी कुशलता से आप राजभवन चला रहे होंगे! चलिए, पल भर के लिए मान लेते हैं कि आपका फ़ैक्स ऑपरेटर वाक़ई छुट्टी पर था. लेकिन महबूबा मुफ़्ती का तो कहना है कि वह लगातार राजभवन को फ़ैक्स भेजने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन फ़ैक्स वहाँ 'रिसीव' ही नहीं हो रहा था. समझ में नहीं आया कि इन दोनों बातों में से सही कौन-सी बात है? ऑपरेटर बैठा हो न हो, फ़ैक्स मशीन ठीक थी, तो फ़ैक्स पहुँचना चाहिए था, भले ही उसे वहाँ कोई देखने वाला हो या न हो. लेकिन फ़ैक्स मशीन ख़राब हो, तो फ़ैक्स पहुँचेगा ही नहीं। तो एक फ़ैक्स के चक्कर में जम्मू-कश्मीर में नयी सरकार बनते-बनते रह गई। 
अहा! क्या बात है! नया ज्ञान मिला कि राजनीतिक दल राजभवन को कोई सूचना भेजें तो अपने रिस्क पर भेजें, कोई गारंटी नहीं कि उनकी चिट्ठी समय पर राजभवन पहुँच ही जाएगी।
बेहतर हो कि वे पहले पता कर लें कि राजभवन की फ़ैक्स मशीन काम कर रहीहै या नहीं और कोई फ़ैक्स ऑपरेटर ड्यूटी पर है या नहीं!अच्छा चलिए, मान लिया कि फ़ैक्स ख़राब था. महबूबा कह रही हैं कि उन्होंने फ़ोन से भी राजभवन सम्पर्क करने की कोशिश की, लेकिन फ़ोन भी नहीं मिला. तो क्या राजभवन का फ़ोन भी ख़राब था?

'अपवित्र गठबन्धन' का तर्क

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक पुराने समाजवादी हैं. बाद में बीजेपी में आ गये. बेबाक इनसान हैं. जो कहते हैं, खुल कर कहते हैं. इसलिए उन्होंने बेझिझक कह दिया कि फ़ैक्स का लफड़ा न हुआ होता, तब भी वह पीडीपी, नेशनल कान्फ़्रेंस और कांग्रेस गठबन्धन के सरकार बनाने के दावे को रद्दी की टोकरी में ही डालते. राज्यपाल महोदय का कहना है कि यह आख़िरी क्षणों में किया गया 'अपवित्र गठबन्धन' था और उसे राज्य में सरकार बनाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती थी. राज्यपाल मलिक का कहना है कि इसीलिए अगर महबूबा मुफ़्ती का फ़ैक्स उन्हें मिल भी गया होता, तो भी उनका फ़ैसला यही होता यानी वह इस गठबन्धन को सरकार नहीं बनाने देते. क्यों भला? तीन दल आधिकारिक तौर पर एक साथ आने का फ़ैसला करते हैं, इसमें कहीं कोई दलबदल की बात नहीं है, कहीं किसी पार्टी में तोड़फोड़ की बात नहीं हैं. यह तीन दल कहते हैं कि हमारे 56 विधायक हैं. हम भारी बहुमत में हैं. हमें सरकार बनाने का मौक़ा दिया जाए. राज्यपाल महोदय किस आधार पर इसे 'अपवित्र गठबन्धन' कह कर नकार सकते हैं. पवित्रता के कौन-से पैमाने हमारे संविधान में हैं, जो इस गठबन्धन पर लागू नहीं हो रहे थे? राज्यपाल महोदय ज़रा देश का ज्ञान बढ़ाएं कि संविधान के किस अनुच्छेद, किस धारा से किसी गठबंधन को अपवित्र घोषित किया जा सकता है? 
पीडीपी और बीजेपी का गठबंधन किस तरह 'पवित्र' था और कांग्रेस-नैशनल कॉन्फ़्रेंस-पीडीपी का गठबंधन क्यों 'अपवित्र' हो गया? पहले वाले गठबंधन से केसर महक रहा था और इस गठबंधन से गटर की बू आ रही थी?
'अपवित्र' अगर कोई गठबन्धन होता, तो वह गठबन्धन होता जो बीजेपी सज्जाद लोन के साथ बनाने की कोशिश कर रही थी. सज्जाद लोन के पास गिनती के दो-चार विधायकों के आने की ख़बरें थीं, बाक़ी कमी वह बीजेपी का समर्थन लेकर और कांग्रेस-नेशनल कान्फ़्रेन्स-पीडीपी के विधायकों को तोड़ कर पूरी करने में लगे थे. इन तीन पार्टियों को जब लगा कि सत्ता की लालच में उनके बहुत-से विधायक टूट जायेंगे, तब अपने-अपने तम्बुओं को बचाने के लिए आनन-फ़ानन में उन्होंने गठबन्धन कर सरकार बनाने का फ़ैसला किया।

बाज़ी उलटते ही नीयट पलट गई

और जैसे ही इस फ़ैसले की ख़बर राजभवन तक पहुँची, वैसे ही सबको मालूम हो गया कि सज्जाद लोन की बाज़ी उलट चुकी है. उनकी और बीजेपी की सरकार बन पाने की अब कोई सम्भावना नहीं बची. तो महबूबा के नेतृत्व में तीन दलों का दावा राजभवन पहुँचे, उसके पहले ही खेल ख़त्म कर दिया गया, विधानसभा भंग कर दी गयी. राज्यपाल महोदय का कहना है कि महबूबा और उनके सहयोगी उमर अब्दुल्ला तो पिछले कुछ महीनों में बार-बार कहते रहे हैं कि विधानसभा भंग कर दी जाए.मलिक कहते हैं कि वह ख़ुद भी अपनी नियुक्ति के पहले दिन से इस पक्ष में नहीं थे कि दलबदल करा कर कोई सरकार बने. सही कह रहे हैं मलिक साहब. लेकिन यह समझ में नहीं आया कि वह इतने दिनों तक किस बात का इन्तज़ार कर रहे थे? सज्जाद लोन विपक्षी विधायकों को तोड़ने की कोशिश में बहुत दिनों से लगे थे. सारी दुनिया को यह ख़बर थी. ख़ुद राज्यपाल महोदय भी कहते हैं कि पिछले पन्द्रह दिनों से उनके पास ऐसी ख़बरें आ रही थीं और महबूबा मुफ़्ती भी उनसे शिकायत कर चुकी थीं कि विपक्षी पार्टियों में दलबदल कराने की साज़िश हो रही है. तो क़ायदे से उन्हें विधानसभा पहले ही भंग कर देनी चाहिए थी. यह काम ऐन उस मौक़े पर ही क्यों हुआ जब तीनों पार्टियों ने अपना अस्तित्व बचाने की मजबूरी में आ कर गठबन्धन किया और सज्जाद लोन की सम्भावनाओं पर पानी फेर दिया. बहरहाल, अब राज्यपाल महोदय का कहना है कि अगर उन्होंने कुछ ग़लत किया है तो महबूबा मुफ़्ती और दूसरे लोग चाहें तो उसे अदालत में चुनौती दें. फ़िलहाल तो यह मुश्किल लगता है महबूबा मुफ़्ती इसके ख़िलाफ़ अदालत जायेंगी. दरअसल, उनका और उनके सहयोगी दलों का पहला मक़सद था कि वे अपने दलों को टूट से बचायें. वह इसमें कामयाब रहे. तो अब वह नये चुनावों की तैयारी करना ही शायद बेहतर समझें.
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