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पूर्व सीएम चंपाई सोरेन

भाजपा की खिचड़ी में कितनी गलेगी चंपाई की दाल?

झारखंड में अपनी गुटबाजी का शिकार रही भारतीय जनता पार्टी ने महागठबंधन की हेमंत सोरेन सरकार को पूरे पांच साल तक गिराने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हुई। अब उसने चुनाव से कुछ महीने पहले हेमंत के झारखंड मुक्ति मोर्चा को अपने ही पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के रूप में झटका दिया है। 
इसे महज इत्तेफाक नहीं माना जा सकता कि जिस दिन हेमंत सोरेन झारखंड में मंइयां सम्मान योजना की शुरुआत कर रहे थे उसी दिन चंपाई सोरेन के बारे में यह चर्चा चल रही थी कि वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल होंगे। इस सम्मान योजना के तहत 40 लाख महिलाओं ने प्रतिमाह ₹1000 की सहायता राशि के लिए आवेदन दिया है। जाहिर है मीडिया में इस बड़ी योजना की खबर को चंपाई सोरेन की खबर ने दबा दिया। 
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चंपाई सोरेन के बारे में सबसे अहम बात यह है कि उन्होंने खुद को झारखंड मुक्ति मोर्चा के झंडे से अलग कर लिया है और जिन तीन विकल्पों के बारे में उन्होंने बात की है उनमें से एक है किसी दूसरे दल (भारतीय जनता पार्टी) में शामिल होना। अगर यह मान लिया जाए कि चंपाई सोरेन भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाते हैं या उसके साथ गठबंधन बनाते हैं तो सवाल यह है कि भारतीय जनता पार्टी की इस खिचड़ी में चंपाई की दाल किस हद तक गलेगी। 
झारखंड में ‘ऑपरेशन लोटस’ बराबर फेल होता रहा है और इसके नए संस्करण में भी अब सरकार बदलने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि इसके लिए ना तो समय बचा है और ना ही चंपाई सोरेन के साथ फिलहाल इतने विधायक हैं कि सरकार गिर जाए। लेकिन एक राय यह भी है कि अगर चंपाई सोरेन के साथ इतने विधायक आ जाएं कि महागठबंधन के पास जरूरी 42 विधायक ना रहें तो चुनाव के समय राष्ट्रपति शासन का फायदा भारतीय जनता पार्टी उठाना चाहेगी।
हेमंत सोरेन की सरकार गिराने के लिए राज्यपाल और कानूनी दांवपेच का सहारा लिया गया और मामला यहां तक पहुंचा कि हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जेल जाना पड़ा। बहुत से लोगों का मानना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान इसका फायदा हेमंत सोरेन को सहानुभूति के रूप में मिला। इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी हेमंत सोरेन के खिलाफ हर तरह की नीति-रणनीति अपना रही है।
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी दरअसल अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी में है और चंपाई सोरेन को अपने पक्ष में कर कर हेमंत सोरेन और महागठबंधन को झटका देने की चाल चल रही है। भारतीय जनता पार्टी की यह चाल उस समय से तेज हो गई थी जब असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा को झारखंड का प्रभारी बनाया गया था। इसके बाद मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी झारखंड चुनाव के मद्देनजर राज्य की जिम्मेदारी दी गई है।  
आमतौर पर यह माना जा रहा है कि चंपाई का प्रभाव क्षेत्र कोल्हान (जमशेदपुर) का इलाका है और लगभग 14 सीटों पर वह प्रभावी हो सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी कम से कम इस इलाके में इनके सहारे अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर सकती है या चंपाई अगर कोई दल बनाते हैं तो उनके सहयोग से अगली सरकार बनाने की कोशिश कर सकती है। 
इस मामले में साफ तौर पर कुछ कहना अभी मुश्किल है क्योंकि चंपाई का अगला कदम क्या होगा और विधानसभा चुनाव तक राजनीतिक क्या रुख लेती है इसका इंतजार करना बेहतर होगा। इतना तय है कि चंपाई का व्यक्तिगत करिश्मा हेमंत सोरेन के आगे कहीं नहीं टिकता और यह भी हो सकता है कि चंपाई को कोई विशेष सफलता हासिल न हो। लेकिन फिलहाल इस घटनाक्रम से हेमंत सोरेन को एक सिरदर्द तो जरूर मिल गया है।
इस मौके पर याद करने की बात यह है कि चंपाई सोरेन मुख्यमंत्री बनने से पहले मंत्री थे और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भी हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले सरकार में फिर से मंत्री बने। अपने ताजा बयान में चंपाई सोरेन ने जिस दर्द का जिक्र किया है वह उस दौरान इस दर्द के बारे में कुछ नहीं बोल रहे थे। यह जरूर है कि हिमंत बिस्व सरमा लगातार चंपाई सोरेन के लिए सहानुभूति जता रहे थे और इस बहाने हेमंत सोरेन को टारगेट कर रहे थे।
कई राजनीतिक पर्यवेक्षक बताते हैं कि अपने प्रभाव के अलावा चंपाई सोरेन को वास्तव में झारखंड मुक्ति मोर्च का समर्थन हासिल था जिसके कारण वह इस इलाके में कामयाबी हासिल करते थे। अब सवाल यह है कि वह अगर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होते हैं या अपनी पार्टी बनाकर उसके साथ जाते हैं तो क्या उन्हें वही रिस्पॉन्स मिलेगा जो उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ रहने के दौरान मिलता था।
चंपाई सोरेन को अपने इस नए कदम से उनके क्षेत्र में चाहे जितना समर्थन मिले, इतना जरूर है कि भारतीय जनता पार्टी का असल मकसद झारखंड मुक्ति मोर्चा को कमजोर करना है। ऐसे में यह देखना होगा कि चंपाई सोरेन कहीं चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी की स्कीम में फिट न हों और उन्हें किनारे कर दिया जाए।
झारखंड में अपने संगठन के बल पर चुनाव जीतने में लगातार नाकाम होती रही भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव के दौरान भी झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के नेताओं को तोड़कर को अपनी पार्टी में शामिल किया था। हालांकि इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाई थी।
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चंपाई सोरेन अभी जिस तरह का बयान दे रहे हैं उससे बहुत से लोगों को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की याद आ रही है जिन्हें नीतीश कुमार ने अपने इस्तीफा के बाद मुख्यमंत्री बनवाया था लेकिन बाद में मांझी को इस्तीफा देना पड़ा था और नीतीश कुमार दोबारा मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि यह बात ध्यान में रखने की है कि चंपाई को जीतन राम मांझी की तरह अलग से कोई जातीय समर्थन हासिल नहीं है क्योंकि हेमंत सोरेन और चंपाई एक ही जाति से आते हैं। दूसरी बात यह है कि मांझी ने इस्तीफा देने से पहले एड़ी चोटी का जोर लगाया था और बाद में उन्होंने कोई मंत्री पद नहीं लिया था जबकि चंपाई सोरेन ने मंत्री पर स्वीकार किया था। जीतन राम मांझी ने मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद ही अपनी पार्टी बना ली थी जबकि चंपाई सोरेन ने ऐसा नहीं किया।
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समी अहमद
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