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बाबूलाल मरांडी
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बीजेपी राज में रोज़ा इफ़्तार की राजनीति लगभग ख़त्म हो गयी है। अस्सी-नब्बे के दौर में मंत्री और नेताओं के बीच इफ़्तार पार्टियों की होड़ लगी रहती थी। इसके ज़रिए मुसलमानों के बीच अपना राजनीतिक दमख़म दिखाया जाता था। दिल्ली और देश के ज़्यादातर हिस्सों से इफ़्तार पार्टियों का वो राजनीतिक रंग ग़ायब हो गया है। लेकिन बिहार इसका अपवाद है। राजधानी पटना में इफ़्तार पार्टियों के ज़रिए राज्य की राजनीति की दिशा तलाशने की कोशिश की जा रही है।
अब तक की सबसे चर्चित इफ़्तार पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर राष्ट्रीय जनता दल की है। इस आयोजन में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हुए। उसके बाद नीतीश की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू और आरजेडी के बीच नए सत्ता समीकरण की चर्चा शुरू हो गयी। बीजेपी नेताओं ने बड़ी मुश्किल से नीतीश सरकार को लेकर अटकलों को शांत किया। लेकिन नीतीश कुमार के इफ़्तार पार्टी में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और लालू परिवार के सदस्यों को आमंत्रित किए जाने को लेकर फिर राजनीतिक अटकलों का बाज़ार गर्म हो गया।
प्रदेश बीजेपी का एक मज़बूत तबक़ा नीतीश को बिहार की राजनीति से बाहर करना चाहता है। उनका मानना है कि नीतीश के मुख्यमंत्री रहते बीजेपी कभी मज़बूत नहीं हो सकती है। अकेले दम पर बीजेपी का सत्ता में आना मुश्किल है। ये लॉबी लंबे समय से नीतीश को बिहार से हटाने और बीजेपी का मुख्यमंत्री बनाने की वकालत कर रही है। इन दिनों बीजेपी के पिछड़े नेता नित्यानंद राय को मुख्यमंत्री बनाने की ख़ूब चर्चा हो रही है। कुछ महीने पहले बीजेपी के साथ-साथ जेडीयू के कई नेताओं ने नीतीश का नाम अगले उपराष्ट्रपति के रूप में उछला। कई दिनों तक राजनीतिक गहमागहमी के बाद नीतीश ने सफ़ाई दी कि उप राष्ट्रपति पद में उनकी दिलचस्पी नहीं है और वो बिहार छोड़ कर कहीं नहीं जा रहे हैं।
यह मामला ठंढा भी नहीं पड़ा था कि बिहार की राजनीति में एक नया भूचाल आ गया। सरकार के सहयोगी वीआईपी पार्टी के सभी तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो गए। ‘सन ऑफ़ मल्लाह’ के नाम से मशहूर वीआईपी पार्टी के नेता मुकेश सहनी को सरकार से बर्खास्त कर दिया गया।
वीआईपी के तीन विधायकों के मिलने से बीजेपी विधायकों की संख्या 74 से बढ़कर 77 हो गयी। इस तरह बीजेपी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गयी।
आरजेडी दूसरे नंबर पर पहुँच गयी जिसके सदस्यों की संख्या 75 थी। बीजेपी और वीआईपी के बीच ये विवाद विधानसभा के एक उप चुनाव को लेकर शुरू हुआ था। यह सीट वीआईपी के विधायक की मृत्यु से खाली हुई थी। लेकिन उप चुनाव में बीजेपी ये सीट वीआईपी को देने के लिए तैयार नहीं थी। बहरहाल, इस चुनाव में आरजेडी ने बीजेपी को बुरी तरह पराजित कर दिया। बाद में ये चर्चा भी शुरू हुई कि नीतीश ने इस चुनाव में दिलचस्पी नहीं ली जिसके चलते बीजेपी की हार हुई। नीतीश एक बार फिर बीजेपी के असंतुष्ट धड़े के निशाने पर आ गए और उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाकर दिल्ली में एडजस्ट करने की मुहिम शुरू हुई।
इस बीच ख़बर आई कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री आवास छोड़कर एक अन्य बंगले में शिफ़्ट होने जा रहे हैं। ख़बर उड़ी कि नीतीश को मुख्यमंत्री पद छोड़ना है इसलिए वो मुख्यमंत्री निवास पहले ही ख़ाली कर रहे हैं। बाद में सरकार ने सफ़ाई दी कि मुख्यमंत्री निवास की मरम्मत की जा रही है इसलिए मुख्यमंत्री दूसरे बंगले में चले गए हैं। बीजेपी के कुछ नेताओं ने नीतीश को हटाए जाने की ख़बरों को हवा देना शुरू किया तो पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी को बयान जारी करना पड़ा कि 2025 के चुनावों तक नीतीश मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
सुशील मोदी पहले से ही नीतीश समर्थक माने जाते हैं। विधान परिषद के चुनावों में आरजेडी के बेहतर प्रदर्शन के बाद भी नीतीश के नेतृत्व पर सवाल उठाने की कोशिश की गयी। लेकिन बीजेपी में नीतीश विरोधी नेताओं पर ही ये सवाल उठा कि मुख्यमंत्री पद के दावेदार नेता भी अपनी जाति का वोट विधान परिषद उम्मीदवारों को नहीं दिला पाए।
बिहार विधानसभा में नीतीश की पार्टी तीसरे नंबर पर है। बीजेपी अब 77 सीटों के साथ पहले नंबर पर पहुँच गयी है, उसके वावजूद बीजेपी नीतीश को हटाने की हिम्मत नहीं कर सकती है। इसका पहला कारण तो ये है कि बीजेपी अपने बूते पर सरकार नहीं बना सकती है। दूसरी तरफ़ नीतीश को आरजेडी का समर्थन कभी भी मिल सकता है जिसके विधायकों की संख्या 76 है।
बीजेपी के साथ सरकार बनाने के वावजूद नीतीश अपना विशिष्ट सोशल इंजीनियरिंग बरक़रार रखने में सफल हैं। उनकी ताक़त अति पिछड़ा और अति दलित समुदाय के साथ सवर्ण जातियों और मुसलमानों के बीच ठीक ठाक पकड़ है।
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