जनता पार्टी का हुआ विघटन
1977 में कांग्रेस के ख़िलाफ़ लोकदल और बाद में जनता पार्टी के प्रत्याशियों के रूप में सुब्रमण्यम स्वामी, राम जेठमलानी, काशीनाथ म्हालगी सरीखे नेता भी इससे जुड़े। लेकिन रामजन्म भूमि आंदोलन के बाद मुंबई और महाराष्ट्र की राजनीति का रंग बदलने लगा। जनता पार्टी के विघटन के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में जनमोर्चा और जनता दल का गठन हुआ तो एक बार फिर से कुछ नेताओं ने समाजवादी राजनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश की लेकिन 1989 के लोकसभा चुनाव के बाद उनका कोई नेता चुनाव जीतकर संसद तक नहीं पहुँचा।
जनता दल के विघटन का जो परिणाम देश की राजनीति पर हुआ वैसा मुंबई या महाराष्ट्र पर नहीं हुआ।
कई दलों का हुआ जन्म
जनता दल के विघटन से बिहार में राजद और जनता दल यूनाईटेड, ओडीशा में बीजद, कर्नाटक में जेडी (एस), उत्तर प्रदेश में समाजवादी जैसी पार्टियों का उदय हुआ। ये पार्टियाँ राम मनोहर लोहिया, कर्पूरी ठाकुर, जय प्रकाश नारायण के आदर्शों को लेकर चलने के नारों से बनी लेकिन बाद में क्षेत्रीय पार्टियों के रूप में स्थापित हो गई।1989 से चढ़ा भगवा राजनीति का रंग
1989 के लोकसभा चुनाव में पहली बार शिवसेना के टिकट पर मुंबई नॉर्थ-सेन्ट्रल सीट से विद्याधर गोखले चुनाव जीते थे और बाद महाराष्ट्र में भगवा राजनीति का जो ज्वार बढ़ा, वह आज भी दिखाई देता है। 1991 के चुनाव में शिवसेना को राष्ट्रीय स्तर की भगवा पार्टी भारतीय जनता पार्टी का साथ मिला जो आज तक कायम है। 2014 का विधानसभा चुनाव उनके गठबंधन में टूट का एक अपवाद मात्र रहा।जॉर्ज ने रचा था इतिहास
महाराष्ट्र के गठन के बाद साल 1962 में जब पहली बार लोकसभा के चुनाव हुए तब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नाथ बापू पई ने राजापुर लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी। 1967 के चुनाव में जॉर्ज फ़र्नांडीस ने मुंबई दक्षिण की सीट पर धुरंधर नेता सदाशिव कानोजी यानि एसके पाटिल को भारी मतों से पराजित कर इतिहास रच दिया था। इस सीट पर 1952 से 1967 तक पाटिल का एकछत्र राज रहा था।
एसके पाटिल इस पराजय के सदमे को झेल नहीं सके थे और राजनीति से संन्यास ले लिया था। पाटिल को हराने के बाद जॉर्ज का नाम 'George the Giant Killer' पड़ा।
पाटिल जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गाँधी की सरकार में मंत्री रह चुके थे। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर लड़े जॉर्ज फ़र्नांडिज को उस चुनाव में 1,47,841 वोट मिले जो कुल पड़े वोटों का 48.50 फीसदी थे। दूसरे नंबर पर कांग्रेस के एस. के पाटिल और तीसरे पर बीजेएस के सी.एस. अग्रवाल रहे थे।
1967 के चुनाव में वामपंथी नेता एस.ए डांगे कोलाबा लोकसभा सीट से जीते तो एस. एम. जोशी पुणे से। इस चुनाव में 8 समाजवादी विचारधारा वाले नेता भी जीते थे। लेकिन 1971 में इंदिरा लहर में इन्हें भी झटका लगा।
1971 के चुनाव में जॉर्ज चुनाव हार गए तो उनका मुंबई से मोहभंग हो गया और वह बिहार चले गए। 1977 का चुनाव जॉर्ज ने जेल में रहते हुए बिहार की मुज़फ़्फ़रपुर सीट से लड़ा और 3 लाख वोटों से जीत हासिल की थी।
मधु दंडवते जीतते रहे चुनाव
1971 में जॉर्ज तो हार गए लेकिन महाराष्ट्र की एक मात्र सीट राजापुर से ग़ैर कांग्रेसी नेता के रूप में मधु दंडवते ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीता। इसके बाद लगातार 1989 के चुनाव तक दंडवते राजापुर से चुनाव जीतते रहे।
मधु दंडवते ने 1977 में भारतीय लोकदल तो 1980 व 1984 में जनता पार्टी तथा 1989 में जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज कर समाजवादी विचारधारा की राजनीति को जिन्दा रखा।
1991 में शिवसेना के वामन राव महाडिक के मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया और मधु दंडवते कांग्रेस के सुधीर सावंत से पराजित हो गए। इस चुनाव परिणाम ने महाराष्ट्र में समाजवादी विचारधारा की राजनीति पर एक तरह से विराम लगा दिया।
जनता लहर में हारी कांग्रेस
1977 में जब जनता लहर चली तो महाराष्ट्र में 1971 के चुनाव में 47 लोकसभा सीटें जीतने वाली कांग्रेस सिमट कर 20 पर रह गई। मुंबई में भारतीय लोकदल के टिकट पर सुब्रमण्यम स्वामी, राम जेठमलानी, मृणाल गोरे, अहिल्या रांगणेकर जैसे नेताओं ने जीत हासिल की। इस चुनाव में विपक्षी दलों ने 28 सीटों पर कब्ज़ा किया।
1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद उपजी लहर में देश के अन्य हिस्सों की तरह मुंबई और महाराष्ट्र में भी राजनेताओं के बड़े -बड़े किले ध्वस्त हो गए।
1984 में मुंबई साउथ-सेन्ट्रल पर श्रमिक नेता दत्ता सावंत को छोड़ सभी सीटों पर कांग्रेस जीती। बारामती से शरद पवार उस समय सोशलिस्ट कांग्रेस के टिकट पर जीते तो राजपुर से मधु दंडवते ने अपना कब्ज़ा बरकरार रखा।
भगवा में बदला लाल रंग
1989 में शिवसेना की जीत का जो सफर शुरू हुआ उसने मुंबई और कोंकण क्षेत्र की राजनीति का रंग जोकि लाल था, उसको भगवा में बदलना शुरू किया। इसमें उसे भारतीय जनता पार्टी का सहयोग मिला। आज महाराष्ट्र की राजनीति कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी तथा शिवसेना-बीजेपी गठबंधन के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। तीसरे मोर्चे या समाजवादी विचारधारा की जो राजनीति कभी यहाँ की एक धुरी थी, वह अब इतिहास बन गई है।
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