केंद्रीय गृह मंत्रालय
(एमएचए) द्वारा 17 मार्च को राज्यसभा में पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच वर्षों में देश के छह अर्धसैनिक
बलों में 50,155 सुरक्षा कर्मियों ने अपनी
नौकरी छोड़ दी।
गृह मंत्रालय द्वारा संसदीय
समिति के समक्ष एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तरह सुरक्षा कर्मियों द्वारा नौकरी
छोड़ने से काम की स्थिति प्रभावित हो सकती है। इसलिए सुरक्षा
कर्मियों के काम करने की स्थिति में काफी सुधार करने और उनको सुरक्षा बलों में बने
रहने के लिए प्रेरित करने के लिए तत्काल उपाय करने होंगे।
रिपोर्ट के अनुसार,
गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों से पता
चलता है कि बीते सालों नौकरी छोड़ने की दर असम राइफल्स और केंद्रीय औद्योगिक
सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में काफी ज्यादा बढी है। यह सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के
मामले में यह समान रही, जबकि साल 2022
के दौरान सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में नौकरी
छोड़ने वालों की दर में कमी आई।
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पांच सालों में सुरक्षा बलों की नौकरी छोड़ने वाले 50,155 कर्मियों में से सबसे ज्यादा बीएसएफ 23,553 उसके बाद सीआरपीएफ 13,640 और सीआईएसएफ 5,876 के जवान थे।
सुरक्षा बलों में नौकरी
छोड़ने वालों की संख्या कम करने के तरीकों पर सुझाव देते हुए समिति ने सिफारिश की
कि एक सर्वे करके पता लगाना चाहिए कि सुरक्षाकर्मी अपनी नौकरी क्यों छोड़ रहे हैं।
इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि मंत्रालय को वीआरएस
लेने वाले और इस्तीफा देने वाले सुरक्षा कर्मियों के बीच एग्जिट इंटरव्यू या सर्वे
करना चाहिए जिससे नौकरी छोड़ने वालों की चिंताओं का पता लगाया जा सके। उसके हिसाब
से सुरक्षाकर्मियों की चिंताओं को दूर करने के लिए उचित उपाय किए जा सकें ताकि सुरक्षाबल
में नौकरी छोड़ने वालों की बढ़ती संख्या पर रोक लगाई जा सके।
इस रिपोर्ट में नौकरी छोड़ने वालों के अलावा सुरक्षा कर्मियों द्वारा आत्महत्या
के बारे में भी जानकारी दी गई। केंद्रीय सशस्त्र अर्धसैनिक बलों में 2018-22 के बीच 654 आत्महत्याओं की जानकारी
दी गई। आत्महत्या के सबसे अधिक मामले
सीआरपीएफ (230 मौतें) में दर्ज
किए गए, इसके बाद बीएसएफ (174
मौतें) का स्थान रहा। असम राइफल्स में 43
मौतें हुईं, जो सभी छह सुरक्षा बलों में सबसे कम है।
सीआरपीएफ और बीएसएफ संख्या के आधार पर सबसे बड़े अर्धसैनिक बलों में से हैं। जहां सीआरपीएफ में करीब 3,24,654 और बीएसएफ में 2,65,277 जवान हैं। इसके साथ ही असम राइफल्स है जिसमें 66,414 जवान हैं।
सीआरपीएफ के वरिष्ठ
अधिकारियों ने अधिकारियों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार सबसे अधिक सुरक्षा कर्मियों
द्वारा सबसे ज्यादा आत्महत्याएं छत्तीसगढ़ में हुई हैं, जहां उन्हें माओवादियों से
निपटने के लिए तैनात किया गया है। छत्तीसगढ़ में राज्य पुलिस के अलावा सीआरपीएफ के
करीब 39,000 जवान तैनात किये गये हैं।
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गृह मंत्रालय ने पिछले
हफ्ते संसद में एक सवाल के जवाब में कहा था कि जोखिम कारकों के साथ-साथ जोखिम
समूहों की पहचान करने के लिए एक टास्क फोर्स का भी गठन किया गया है। टास्क फोर्स
आत्महत्या और भ्रातृहत्या को रोकने के लिए उपचारात्मक कदमों का भी सुझाव देगा। गृह
राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 15 मार्च को कहा था
कि टास्क फोर्स की रिपोर्ट तैयार की जा रही है।
आत्महत्याओं और नौकरी छोड़ने
वालों को रोकने के लिए उपचारात्मक कदमों का सुझाव देते हुए संसदीय समिति ने कहा कि
बल "तैनाती में रोटेशन नीति का पालन कर सकते हैं जिससे किसी भी सुरक्षाकर्मि
को लंबे समय तक एक तरह की कठिन और दुर्गम परिस्थितियों में न रहना पड़े।
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