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तीन तलाक़ क़ानून को जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। मुसलिम संगठन ख़ासकर ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस क़ानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है। इस बारे में आख़िरी फ़ैसला बोर्ड की लीगल कमेटी की बैठक में लिया जाएगा। अभी तक इस बैठक के लिए कोई तारीख़ तय नहीं की गई है। अगले एक-दो दिन में इस पर फ़ैसला होने के आसार हैं।
ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव ज़फरयाब जिलानी ने 'सत्य हिंदी' से कहा कि केंद्र की बीजेपी सरकार अपने तय एजेंडे पर काम कर रही है। ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड अपने रुख़ पर कायम है। यह क़ानून मुसलिम समाज पर ज़बरदस्ती थोपा जा रहा है और मुसलिम समाज अपने निजी मामलों में सरकार की दख़लअंदाज़ी क़तई बर्दाश्त नहीं करेगा।
ऑल इंडिया इमाम काउंसिल के महासचिव मौलाना सूफ़ियान निज़ामी का कहना है कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का हक़ है। संसद में जिसका बहुमत होता है, उसी की जीत होती है। लिहाज़ा संवैधानिक तरीक़े से बिल पास हुआ है। उन्होंने कहा कि यह अलग बात है कि इसे पास कराने में संसदीय परंपराओं की अनदेखी की गई है। क़ायदे से यह विधेयक पहले संसद की स्थाई समिति को भेजा जाना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि राज्यसभा में विधेयक पास करवाने में उन पार्टियों का भी अहम योगदान है, जिन्होंने इस विधेयक पर वोटिंग के वक़्त राज्यसभा से वॉकआउट किया। अगर वे पार्टियाँ इस विधेयक के ख़िलाफ़ वोट करतीं तो निश्चित रूप से यह विधेयक राज्यसभा में पास नहीं हो पाता।
हैरानी की बात यह है कि आए दिन तीन तलाक़ को जायज़ ठहराने वाले, फ़तवे जारी करने वाले दारुल उलूम देवबंद ने संसद के दोनों सदनों में पास कराए गए इस विधेयक को लेकर चुप्पी साध ली है। दारुल उलूम ने विधेयक के पास होने पर यह कहते हुए बात करने से इनकार कर दिया कि इस पर उनका कोई नया रुख़ नहीं है। एक तरफ़ जहाँ अन्य मुसलिम संगठनों से जुड़े उलेमा विधेयक का विरोध करते हुए कह रहे हैं कि कोई भी क़ानून शरीयत से बड़ा नहीं है, वहीं दारुल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल क़ासिम नौमानी ने कहा कि दारुल उलूम का इस बिल को लेकर कोई नया रुख़ नहीं है। दारुल उलूम अपने पुराने रुख़ पर क़ायम है। बता दें कि इससे पहले तीन तलाक़ विधेयक को हर बार दारुल उलूम क़ानून के रास्ते से शरीयत में दख़लअंदाज़ी क़रार देते रहे थे।
तीन तलाक़ विधेयक के संसद में पास होने से पहले इसकी जमकर मुख़ालफ़त करने वाले दारुल उलूम देवबंद का चुप्पी साध लेना थोड़ा अटपटा लगता है। इसे कुछ दिनों पहले राष्ट्रीय मुसलिम मंच के अध्यक्ष इंद्रेश कुमार के दारुल उलूम देवबंद के दौरे से जोड़कर देखा जा रहा है। बता दें कि इंद्रेश कुमार मंच से जुड़े मुसलमानों के बीच तीन तलाक़ को लेकर माहौल बनाने में जुटे हैं। वे इस मुद्दे पर मुसलमानों से सरकार का समर्थन की अपील करते हैं।
हालाँकि जब इंद्रेश कुमार दारुल उलूम देवबंद गए थे तब दारुल देवबंद की तरफ़ से बाक़यदा बयान जारी करके कहा गया था कि दारुल उलूम के मोहतमिम मौलाना कासिम के साथ इंद्रेश कुमार की मुलाक़ात महज एक शिष्टाचार भेंट थी। इसमें किसी भी सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे पर विचार विमर्श नहीं हुआ है। लेकिन क़यासों का बाज़ार गर्म है।
ख़ैर, सभी दल घुमाफिरा कर एक ही बात कह रहे हैं कि यह विधेयक मुसलमानों के मज़हबी मामलों में सरकार की ग़ैर-जरूरी दख़लअंदाज़ी है और इसे क़तई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ये सभी विधेयक को पास कराने में सपा, बसपा, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस की भूमिका की कड़ी आलोचना भी करते हैं। ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाक़ात करके इस विधेयक को राज्यसभा में अटकाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया था। लेकिन वह अपने मक़सद में कामयाब नहीं हो पाया। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बोर्ड इस विधेयक (अब क़ानून बना) को किन बिंदुओं पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देता है और सुप्रीम कोर्ट बोर्ड की इस चुनौती को किस रूप में लेता है।
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