दिल्ली के शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन क़ानून, एनपीआर और एनआरसी के ख़िलाफ़ धरना शुरू हुए 44 दिन हो गये हैं। इस बीच वहाँ विरोध जताने के कई तौर-तरीक़े और रंग देखने को मिले हैं। यह धरना देश में देश के संविधान, लोकतांत्रिक व्यवस्था और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बचाने के नाम पर किया जा रहा है। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि आधुनिक भारत के निर्माता और देश में लोकतंत्र की नींव रखने वाले और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के सबसे बड़े पैरोकार भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की तसवीर इस धरना स्थल से ग़ायब है।
धरना स्थल पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, संविधान के रचयिता डॉ. भीमराव आम्बेडकर, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, शहीद सरदार भगत सिंह, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान और राजगुरु जैसे आज़ादी के मतवालों की तसवीरें तो लगी हुई हैं लेकिन पंडित नेहरू कहीं नज़र नहीं आते।
इस बारे में 'सत्य हिंदी' ने शाहीन बाग़ के धरने को संचालित करने वाली टीम के सदस्य आबिद शेख़ से सीधा सवाल किया कि धरना स्थल पर पंडित नेहरू का फ़ोटो क्यों नहीं है। आबिद शेख़ ने बताया कि धरना स्थल में पंडित नेहरू की तसवीर लगी हुई है। लेकिन उसके ऊपर वॉलिंटियर्स ने शायद कोई दूसरी तसवीर या पोस्टर लगा दिया है। उन्होंने कहा कि आज वह पंडित नेहरू की तसवीर पर लगा दूसरा पोस्टर या बैनर हटवा देंगे।
पंडित नेहरू की तसवीर पर ग़लती से किसी ने दूसरी तसवीर या पोस्टर लगा दिया है या जानबूझकर ऐसा किया गया? यह तो साफ़ नहीं है लेकिन इससे यह ज़रूर साबित हो गया है कि धरना स्थल पर पंडित नेहरू की तसवीर प्रमुखता से नहीं लगाई गई। अगर ऐसा होता तो उसके ऊपर दूसरी तसवीर या पोस्टर नहीं लगता। शाहीन बाग़ की तर्ज़ पर दिल्ली में ही कई जगह प्रदर्शन चल रहे हैं। इसके अलावा देश भर में 100 से ज़्यादा जगहों पर ऐसे ही प्रदर्शन चल रहे हैं। उनकी तसवीरें भी मीडिया और सोशल मीडिया में आ रही हैं। इनमें भी पंडित नेहरू नज़र नहीं आ रहे हैं।
इन धरना स्थलों पर होने वाले भाषणों में भी अक्सर पंडित नेहरू का ज़िक्र न के बराबर ही होता है। ज़्यादा ज़ोर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और संविधान के रचयिता डॉ. भीमराव आम्बेडकर पर होता है।
तो क्या यह मान लिया जाए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के कुछ और बड़े नेताओं ने पिछले 5 साल में पंडित नेहरू के ख़िलाफ़ जो ‘दुष्प्रचार’ किया है उसकी वजह से अब लोग पंडित नेहरू को आंदोलन का प्रतीक बनाने से परहेज करने लगे हैं? एक वजह यह भी हो सकती है कि नागरिकता संशोधन बिल संसद में पास कराते वक़्त गृह मंत्री ने ताल ठोक कर कहा था कि 1955 में पंडित नेहरू यह क़ानून बनाना चाहते थे, उस समय वह किन्हीं कारणों से नहीं कर पाए थे। अब मोदी सरकार पंडित नेहरू का ही सपना पूरा कर रही है।
नागरिकता संशोधन विधेयक संसद में पास कराते वक़्त गृह मंत्री अमित शाह ने बार-बार पंडित नेहरू और लियाकत अली ख़ान के बीच हुए समझौते का ज़िक्र किया था। इस समझौते के तहत दोनों देशों में रह गए धार्मिक अल्पसंख्यकों को बराबरी के अधिकार दे उनकी जान-माल की सुरक्षा की गारंटी देनी थी।
नेहरू की विरासत
नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता भी कहा जाता है। पंडित नेहरू एक विश्व नेता थे। उनके बाद देश में जितने भी प्रधानमंत्री बने, सभी का सपना पंडित नेहरू की ऊँचाई को छूने का रहा। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो हर मामले में पंडित नेहरू की ही नक़ल करते नज़र आते हैं। कई मामलों में तो वह ख़ुद को पंडित नेहरू से भी आगे ले जाकर खड़ा करते हैं और उनसे ऊँचा दिखने की कोशिश करते हैं। विदेश मंत्री को दरकिनार कर ख़ुद दुनिया भर के देशों में घूमना और उन देशों के प्रधानमंत्रियों या राष्ट्रपतियों से निजी ताल्लुकात स्थापित करना पीएम नरेंद्र मोदी की ख़ुद को पंडित नेहरु से आगे दिखाने की ही कोशिश है।
शाहीन बाग़ के धरने को संचालित करने वाली टीम के एक अन्य सदस्य का ध्यान जब इस तरफ़ दिलाया गया तो पहले तो वह हैरान हुए कि पंडित नेहरू की कोई बड़ी तसवीर वहाँ क्यों नहीं लगी है। लेकिन फिर अपना नज़रिया बताते हुए कहने लगे कि शायद इसलिए नहीं लगाई गई है कि लोग इसे कांग्रेस प्रायोजित न मान लें।
अगर शाहीन बाग़ में कथित तौर पर ‘ग़लती से छूट गई’ पंडित नेहरू की तसवीर को फिर से सामने लाया जाता है तो ठीक है। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता तो इससे यह संदेश जाएगा कि देश के संविधान, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की इस लड़ाई में इन मूल्यों के सबसे बड़े पैरोकार को ही दरकिनार किया जा रहा है।
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