मोदी सरकार 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक के लिए भले ही अपनी पीठ थपथपा ले, पर उससे बहुत बड़ी योजना 2001 में ही भारतीय सेना ने बनाई थी। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे।इसके तहत कई ब्रिगेड मिल कर सीमा पार ज़बरदस्त हमले कर 25-30 पाकिस्तानी पोस्ट पर कब्जा कर लेते। पूरी नियंत्रण रेखा ही बदल जाती, पाकिस्तानी ज़मीन पर भारत का कब्जा होता और पाकिस्तान घुसपैठ कराने और आतंकवादी हमले कराने की स्थिति में नहीं कभी नहीं आ पाता।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर हैप्पीमॉन जैकब ने अपनी किताब, 'लाइन ऑन फ़ायर : सीज़फ़ायर वॉयलेशन्स एंड इंडिया-पाकिस्तान एस्केलेशन डायनामिक्स' में यह सनसनीखेज दावा किया है। ऑक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने यह पुस्तक छापी है।
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क्या थी योजना?
प्रोफ़ेसर जैकब ने लेफ़्टिनेंट जनरल रुस्तम के नानावती और लेफ़्टनेंट जनरल एच. एस.पनाग के हवाले से इस पूरे ऑपरेशन का ज़िक्र किया है। लेफ़्टिनेंट जनरल नानावती उत्तरी कमान के कमांडर थे जबकि लेफ़्टिनेंट जनरल पनाग उत्तरी कमान के जनरल ऑफ़िसर कमांडिंग इन चीफ़ यानी प्रमुख थे। पुस्तक में दावा किया गया है कि 'ऑपरेशन कबड्डी' नाम की इस कार्रवाई पर बैठक नई दिल्ली में थल सेना के प्रमुख के दफ़्तर में जून 2001 में हुई थी।पुस्तक के लेखक का दावा है कि सेना के एक आला अफ़सर ने उन्हें बताया कि लेफ़्टीनेंट जनरल नानावती ने उन्हें यह जानकारी दी थी और विस्तार से इस पर चर्चा की थी। उस अफ़सर ने कहा, इस ऑपरेशन का नाम तो उन्हें नहीं मालूम, पर इस योजना के बारे में पता है। इसकी जानकारी सेना में कुछ और लोगों को भी थी और हर बटालियन इससे जुड़ा कुछ न कुछ काम कर रहा था।
'ऑपरेशन कबड्डी' के तहत योजना यह बनाई गई थी कि लद्दाख के बटालिक सेक्टर और जम्मू के चंब-जौरियाँ सेक्टर में लगभग 25-30 पाकिस्तानी पोस्ट पर कब्जा कर लिया जाए। यह एक बहुत बड़ा ऑपरेशन था और हर ब्रिगेड को 2-3 पोस्ट पर कब्जा करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी।
इस पुस्तक के लेखक जैकब ने 'सत्य हिन्दी' से इस पूरे ऑपरेशन पर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा, 'उस साल आतंकवादी हमलों और सीमा पार घुसपैठ से भारत परेशान हो गया था। इससे भारतीय सेना ने पूरी नियंत्रण रेखा ही बदल डालने की योजना बना डाली ताकि पाकिस्तान उसके बाद इस लायक नहीं रहे कि वह घुसपैठ करा सके।'
क्यों पीछे हटना पड़ा?
जैकब ने 'सत्य हिन्दी' से कहा, 'भारतीय सेना ने मई-जून में इस हमले की योजना बनाई। जुलाई से लेकर सितंबर तक उस पर तरह-तरह की तैयारियाँ की गईं। लेकिन, उसी समय साल 2001 में 11 सितंबर को अमेरिका में वर्ल्ड ट्रे़ड टॉवर पर आतंकी हमला हो गया। अमेरिकी दबाव में पाकिस्तान आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ने को तैयार हो गया। एक तरह से पाकिस्तान अमेरिका का सहयोगी देश बन गया। ऐसी हालत में पाकिस्तान पर हमला करने से अमेरिका को बुरा लगता और एक ग़लत संकेत जाता। भारत-अमेरिका रिश्तों पर इसका असर पड़ सकता था।' इसके अलावा भारतीय सेना यह संकेत भी नहीं देना चाहती थी कि इस दुखद अंतरराष्ट्रीय वारदात का वह फ़ायदा उठा रही है। भारतीय सेना ने पूरी योजना को ही रोक दिया।पाकिस्तान की क्या प्रतिक्रिया थी? इस पर जैकब ने बताया कि इस्लामाबाद को इस पूरी योजना का पता ही नहीं चला। यह एक बेहद गोपनीय योजना थी और पाकिस्तान को इसकी भनक तक नहीं मिली।
वाजपेयी को पता था?
'ऑपरेशन कबड्डी' कई चरणों में होना था और इसका ख़ास ख्याल रखा जाना था यह दोनों देशों के बीच लड़ाई में न तब्दील हो जाए। क्या इस ऑपरेशन की जानकारी तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा, रक्षा मंत्री जॉर्ज फ़र्नाडीस और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को थी? जैकब के पास इसका कोई पुख़्ता सबूत नहीं है। पर वह यह ज़रूर कहते हैं कि इतनी बड़ी कार्रवाई सरकार की अनुमति के बग़ैर नहीं की जा सकती थी। छोटी-मोटी कार्रवाइयाँ स्थानीय स्तर पर होती रहती हैं, पर जब पूरी नियंत्रण रेखा को ही बदलने की योजना हो तो सरकार की रज़ामंदी ज़रूरी है। उस समय थल सेना के प्रमुख जनरल एस पद्मनाभन थे और उन्होंने उस बैठक की अध्यक्षता की थी, जिसमें इस पर विस्तार से चर्चा की गई थी।
इस पुस्तक और इस योजना का आज राजनीतिक और सामरिक महत्व है। दोनों देशों के डीजीएमओ (डाइरेक्टनर जनरल ऑफ़ मिलिटी ऑपरेशन्स) के बीच 2003 में युद्धविराम समझौता हुआ। हालाँकि उसके बाद से पाकिस्तान लगातार इस समझौते का उल्लंघन करता रहा है।
यह ऑपरेशन जो कभी हुआ ही नहीं, आज अधिक ज़रूरी लगता है क्योंकि भारत-पाकिस्तान के बाच युद्धविराम उल्लंघन की वारदात बढ़ती ही जा रही है। पहले से अधिक सैनिक सीमा पर मारे जा रहे हैं। रक्षा राज्यमंत्री सुभाष भामरे ने एक प्रश्न के जवाब में राज्यसभा को बताया कि पाकिस्तान सीमा पर होने वाले युद्धविराम उल्लंघन और गोलाबारी में 2015 से 2018 के बीच भारतीय सेना के 44 और सीमा सुरक्षा बल के 25 जवान मारे गए हैं। यानी भारत ने अपने कुल 69 जवान इन झड़पों में खोए हैं। उन्होंने लिखित प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि साल 2015 में युद्धविराम उल्लंघन की 152 घटनाएँ हुईं। ये घटनाएँ बढ़ती गईं। साल 2016 में 228, 2017 में 860 और 2018 में 942 बार पाकिस्तान सीमा पर युद्धविराम उल्लंघन की घटनाएँ हुईं।
इसका राजनीतिक मतलब भी है। साल 2016 में हुई सर्जिकल स्ट्राइक का सरकार ने खूब ढिंढोरा पीटा और उसका राजनीतिक इस्तेमाल किया। लेकिन सेना के आला अफ़सरों और रक्षा मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की घटनाएँ छोटी-मोटी बातें हैं, जो होती ही रहती हैं। जैकब कहते हैं कि दोनों योजनाओं के बीच कोई तुलना ही नहीं है। 'ऑपरेशन कबड्डी' सर्जिकल स्ट्राइक की तुलना में बहुत ही बड़ी चीज थी।
सर्जिकल स्ट्राइक से तत्कालिक मनोवैज्ञानिक लाभ के अलावा कोई सामरिक या कूटनीतिक फ़ायदा नहीं हुआ, ज़मीन पर कब्जा नहीं हुआ। लेकिन 'ऑपरेशन कबड्डी' से ज़मीन पर कब्जा होता और उसका सामरिक और रणनीतिक ही नहीं, कूटनीतिक फ़ायदा होता।
जिस समय नियंत्रण रेखा को बदलने की इस बड़ी कार्रवाई पर योजना बनाई गई थी, बीजेपी की अगुआई में सरकार थी, आज भी बीजेपी के नेतृत्व में ही सरकार है। इस सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक का भरपूर राजनीतिक लाभ उठाया। इस पुस्तक के बाज़ार में आने के बाद इस मुद्दे पर गरमागरम चर्चा होगी और इस पर राजनीति भी होगी, यह साफ़ दीखता है।
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