भगना! हाथरस ज़िले का गाँव है भगना। क़द में छोटा लेकिन हैसियत में बड़ा है भगना। ठाकुर परिवारों से अटा पड़ा है भगना। बीते शुक्रवार ठाकुरों की एक बड़ी पंचायत सज़ी थी भगना में। इस पंचायत में हाथरस सहित आसपास के कई ज़िलों के ‘प्रभावशाली' ठाकुर जुड़े थे। एजेंडा था बूलगढ़ी गाँव के 4 'अबोध' और 'निरपराध' लड़कों को 'बिलावजह' बलात्कार और हत्या के आरोप में जेल भेज देना। यह सब दलितों का 'षड्यंत्र' है। इसका मुक़ाबला करना होगा।
हाथरस : कितना तर्कसंगत है हुक़ूमत के दमन का जातिवादी तर्क?
- विश्लेषण
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- 3 Oct, 2020

हाथरस की निर्भया कांड में लखनऊ से लेकर हाथरस तक के हुक़्मरानों की क्रूर और अनैतिक कार्रवाइयों के पीछे क्या राजनीति काम कर रही थी, इसे समझा जाना ज़रूरी है। वस्तुतः समूचा ब्रज क्षेत्र ठाकुर बाहुल्य वाला क्षेत्र है। हाथरस, मथुरा, आगरा, फ़िरोज़ाबाद, एटा, मैनपुरी और अलीगढ़ ज़िलों में 250 से ज़्यादा गाँव हैं जहाँ ठाकुर जातियों का न सिर्फ़ बहुमत है बल्कि वे प्रभावशाली और दबंग समुदाय के रूप में वहाँ विचरते हैं।
इस पूरी पंचायत का संयोजन सिकन्दराराव (हाथरस) के बीजेपी विधायक वीरेन्द्रसिंह राणा कर रहे थे। बताते हैं कि इस पंचायत का आइडिया विक्रांतवीर सिंह (आईपीएस) का था जिन्हें 'टिप' मिल गई थी कि हाथरस पुलिस कप्तान पद पर रहते उनके ख़िलाफ़ कोई 'एक्शन' हो सकता है। विक्रांतवीर सिंह ख़ुद को 'खाँटी ठाकुर' मानते हैं। ज़िले के ठाकुर इस ख़ातिर उनका बड़ा सम्मान करते हैं। कप्तान साहब उनका बड़ा ख़याल रखते थे। इस पंचायत की बाबत उन्होंने डीएम से भी स्वीकृति ले ली थी। डीएम ख़ुद भले ही 'ठाकुर साब' नहीं थे लेकिन प्रदेश की सियासत और प्रशासन में ठाकुरों के प्रभुत्व के मानी बख़ूबी जानते थे। क्या यही ठाकुर एंगल था जिस पर लखनऊ से लेकर हाथरस तक के तार जुड़े थे और जो एक मासूम दलित लड़की के साथ हुए जघन्य काण्ड का बचाव कर रहा था या इसके पीछे दूसरी वजहें भी थीं?