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किरण बेदी का विवादों के साथ चोली-दामन का साथ रहा है। वह देश की पहली महिला आईपीएस बनकर सबसे पहले चर्चा में आई थीं। अब किरण बेदी पुडुचेरी के उपराज्यपाल पद से हटा दी गई हैं और उनकी जगह तेलंगाना की राज्यपाल तमिलसाई सुंदरराजन ने शपथ के बाद कामकाज संभाल लिया है। किरण बेदी को 16 फ़रवरी की रात को राष्ट्रपति द्वारा पुडुचेरी के उपराज्यपाल पद से हटाने पर सभी चौंक गए।
किरण बेदी के साथ कई विवाद जुड़े हैं। वह सिख फैमिली से हैं और छोटे बाल रखने के कारण भी कुछ लोगों ने ऐतराज किया था। वह जब ट्रैफ़िक पुलिस में आईं तो उन्होंने उस वक्त की पीएम इन्दिरा गांधी के स्टाफ की कार का नियम तोड़ने के कारण कनॉट प्लेस में चालान करने का साहस जुटाया था। वह जब उत्तरी ज़िले की डीसीपी बनीं तो उन्होंने वकीलों से ऐसा पंगा लिया कि सारी उम्र यह विवाद उनके साथ चस्पा हो गया। उन्हें जब तिहाड़ जेल का डीजी बनाया गया तो उन्होंने जेल में सुधार के ऐसे क़दम उठाए कि फिर से विवादों में घिर गईं। उनकी बेटी के एडमिशन पर भी विवाद हुआ।
जब उन्हें दिल्ली का सीपी नहीं बनाया गया तो वह फिर से चर्चा में आईं। उन्होंने इस्तीफ़ा भी दे दिया। पुलिस की नौकरी के बाद वह अन्ना आन्दोलन से जुड़ गईं। अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई तो किरण बेदी राजनीति में प्रवेश के सवाल पर वह केजरीवाल एंड पार्टी का भी विरोध कर बैठीं लेकिन ख़ुद बीजेपी में शामिल होकर उन्होंने भी राजनीति का ही रास्ता चुना। उन्हें 2015 के चुनावों में बीजेपी ने अचानक ही दिल्ली का सीएम प्रोजेक्ट कर दिया। बीजेपी तो हारी ही, वह ख़ुद भी कृष्णा नगर से आप के एस. के. बग्गा के हाथों हार गईं। यह सीट सबसे सुरक्षित मानी जाती थी क्योंकि इस पर बीजेपी के डॉ. हर्षवर्धन कभी नहीं हारे थे।
इस हार के बाद बाद किरण बेदी ने दिल्ली से किनारा कर लिया। तब उन्हें पुडुचेरी की उपराज्यपाल बनाकर भेजा गया था।
किरण बेदी को उपराज्यपाल पद से अचानक हटाए जाने से कई सवाल खड़े हुए हैं।
इन सवालों का एक-एक करके जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं। किरण बेदी को अचानक हटाने के पीछे ऐसा कारण नहीं है कि बीजेपी को कोई नैतिकता याद आ गई है। जिस तरह दिल्ली में अरविंद केजरीवाल उपराज्यपाल की शिकायत करते रहे हैं, उसी तरह पुडुचेरी के सीएम नारायणसामी किरण बेदी से नाखुश रहे हैं। सच्चाई यह है कि पुडुचेरी की विधानसभा को तो दिल्ली विधानसभा से ज़्यादा अधिकार हासिल हैं। दिल्ली में ज़मीन, क़ानून-व्यवस्था यानी पुलिस सर्विस विभाग उपराज्यपाल के रास्ते केंद्र के पास हैं लेकिन पुडुचेरी में ये विभाग भी राज्य सरकार के पास होते हैं। इसलिए राज्य सरकार के कामकाज में बहुत ज़्यादा दखल की संभावना नहीं रहती लेकिन इसके बावजूद किरण बेदी वहाँ सिर्फ़ रबर स्टांप बनकर नहीं रहीं और हर काम में दखलंदाजी की।
इसीलिए एक हफ्ता पहले भी नारायणसामी शिकायत लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के दरबार तक पहुँचे थे। मगर, यह कार्रवाई उस शिकायत के आधार नहीं हुई।
अब आते हैं सवाल नंबर तीन पर कि क्या कांग्रेस के चार विधायकों के इस्तीफे से इसका कोई कनेक्शन है? वह सीधा कनेक्शन दिखाई देता है। 30 सदस्यीय विधानसभा में इससे पहले ही कांग्रेस के 14 विधायक थे लेकिन किसी तरह सरकार चल रही थी। अब उनकी संख्या 10 रह गई है। जिस दिन यह संख्या दस हुई, उसी दिन किरण बेदी को हटा दिया गया। अब कोई भी सोच सकता है कि क्या किरण बेदी को ‘बिग बॉस’ ने यह खुफिया टास्क दिया था कि विधायकों की संख्या 10 तक ले आओ तो आपका काम पूरा मान लिया जाएगा। किरण बेदी को अब इसका कोई इनाम मिलेगा या नहीं, यह देखने की बात है लेकिन उसी दिन किरण बेदी को हटाए जाने का मतलब यह है कि नारायणसामी सरकार अल्पमत में आ चुकी है। बीजेपी के लिए दूसरी कांग्रेस सरकारों की तरह उसे हटाने में न तो कोई परेशानी होगी और न ही वह इसमें ज़्यादा देर भी लगाएगी। पुडुचेरी विधानसभा का कार्यकाल 6 जून को ख़त्म हो रहा है यानी उससे पहले ही वहाँ नई सरकार बनाई जानी है।
किरण बेदी की जगह तेलंगाना की राज्यपाल तमिलसाई सुंदरराजन को उपराज्यपाल पद का काम सौंपना भी एक राजनीतिक फ़ैसला है। नाम से ही जाहिर है कि सुंदरराजन तमिलनाडु से हैं और पुडुचेरी की राजनीति हमेशा ही तमिलनाडु से प्रभावित रही है। वहाँ भी डीएमके और अन्ना डीएमके की चलती है। सुंदरराजन इससे पहले तमिलनाडु बीजेपी की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। दरअसल, नारायणसामी अक्सर यह आरोप लगाते रहे हैं कि किरण बेदी की मार्फत नॉर्थ की राजनीति साउथ पर थोपी जा रही है। वह किरण बेदी को बाहरी बताते हुए बीजेपी पर कड़ा प्रहार करते रहे हैं। साउथ में वैसे भी लोकल का मामला ज़्यादा वोकल है। इसलिए नारायणसामी के पास बीजेपी के ख़िलाफ़ एक बड़ा मुद्दा था।
बीजेपी ने अपनी बाजी पूरी तरह बिछा ली है। जैसे ही उनके नारायणसामी के चार विधायकों ने इस्तीफ़ा दिया, किरण बेदी को हटाकर केंद्र ने एक चाल चली और फिर तमिलसाई सुंदरराजन को एक मोहरे की तरह आगे चल दिया।
पता नहीं कांग्रेस को यह चाल समझ में आई या नहीं क्योंकि कांग्रेसियों ने किरण बेदी को हटाए जाने का जैसा जश्न मनाया है, जैसे पटाखे फोड़े हैं या जैसे इसे अपनी बड़ी जीत बताया है, लगता है कि वे राजनीति की यह चाल समझ नहीं पाए।
किरण बेदी अब क्या करेंगी, क्या वह सक्रिय राजनीति में लौटेंगी- यह अगला सवाल है। किरण बेदी का जैसा स्वभाव है, वह सक्रिय राजनीति के लिए फिट नहीं हैं। अगर फिट होतीं तो दिल्ली बीजेपी में इस तरह बेआबरू नहीं हुई होतीं। अगर उन्हें किसी सोची-समझी योजना के तहत हटाया गया है तो यह भी तय माना जाएगा कि अगले कुछ दिनों में वह किसी और राज्य की राज्यपाल हो सकती हैं। चूंकि राष्ट्रपति ने खुद उन्हें रातों-रात हटाया है तो हो सकता है कि कुछ इंतजार किया जाए। किरण बेदी इस तरह हटाए जाने से आहत नहीं हैं वरना वह अब तक यह जाहिर कर चुकी होतीं और बगावत के सुर भी समझ में आ चुके होते लेकिन उन्होंने बड़ी शालीनता से इस तरह हटाया जाना मंजूर किया है तो लगता है कि हटाए जाने की नीति और नीयत से वह वाकिफ हैं। इतनी मासूमियत उन्होंने इससे पहले किसी भी पद से हटाए जाने या पद न मिलने पर नहीं दिखाई।
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