भारत में जाति जनगणना का मुद्दा एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। हाल ही में केंद्र की मोदी सरकार ने अगली जनगणना के साथ जाति आधारित गणना कराने का ऐलान किया है, जिसने देश के राजनीतिक और सामाजिक माहौल को बदल दिया है। इस फैसले ने न केवल पहलगाम हमले और पाकिस्तान को लेकर चल रही बहसों को पीछे छोड़ दिया, बल्कि सामाजिक न्याय के लिए एक बड़े कदम के रूप में भी उभरा है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए तेलंगाना मॉडल पर जाति जनगणना कराने की मांग की है। लेकिन सवाल यह है कि क्या है यह तेलंगाना मॉडल? बिहार मॉडल से यह कैसे अलग है? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या जाति जनगणना भारत को जातिविहीन समाज की ओर ले जाएगी या जातिगत विभाजन को और गहरा करेगी?
जाति जनगणना पर बदले सुर
कुछ साल पहले तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जाति जनगणना को "पाप" तक करार दिया था। लोकसभा चुनाव में उन्होंने इसे मंगलसूत्र और संपत्ति छीनने से जोड़ा, जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने "बटेंगे तो कटेंगे" का नारा दिया। लेकिन 30 अप्रैल 2025 को अचानक सरकार ने जाति जनगणना की घोषणा की, जिसे कई लोग पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की उम्मीद के बीच एक अप्रत्याशित कदम मान रहे हैं। हालांकि, जनगणना कब होगी, इसकी समयसीमा अभी स्पष्ट नहीं है, खासकर जब यह प्रक्रिया पहले ही पांच साल देरी से चल रही है।