प्रियंका गांधी से कितनी उम्मीदें रखी जानी चाहिए ? सवाल के जवाब के साथ कई संकट जुड़े हैं। मसलन, ज़्यादा उम्मीदें कीं और वे पूरी नहीं हुईं तो निराशा हाथ लगेगी। प्रियंका ने कुछ करके दिखा दिया तो पूछा जाने लगेगा वे पहले क्यों नहीं प्रकट हुईं ? इतने साल क्यों लगा दिए ? चिंता की जाने लगेगी कि जो प्रियंका कर रही हैं राहुल क्यों नहीं कर पाए ? या सवाल होने लगेंगे कि राहुल अब क्या करने वाले हैं ? प्रियंका क्या करने वाली हैं ? कांग्रेस के कितने इलाक़े में वे काम करने वाली हैं ? वे क्या नहीं करेंगीं ? इन सब सवालों को लेकर कार्यकर्ताओं-नेताओं, प्रशंसकों और पार्टी के स्थायी चापलूसों के मुक़ाबले प्रियंका का स्वयं का संकट भी काफ़ी बड़ा और चुनौतीपूर्ण बनने वाला है।

राहुल में नेहरू या राजीव की छवि नहीं ढूँढ़ी गई पर प्रियंका में इंदिरा गांधी की वापसी देखी जा रही है। हो सकता है ऐसा देखने वालोंकी असली मंशा ‘अब आया है ऊँट पहाड़ के नीचे’ की तर्ज़ पर भाजपा को (यहाँ मोदी-शाह भी पढ़ सकते हैं) डराने की हो। यह किसी अन्य आलेख का विषय हो सकता है कि प्रियंका को अपने नए अवतार में इंदिरा गांधी बनने या उनके जैसा दिखने की कितनी कोशिश करना या नहीं करना चाहिए !