आरएसएस-भाजपा और उनसे जुड़े संगठन हर मौके का उपयोग अल्पसंख्यकों के दानवीकरण के लिए करते आए हैं. यद्यपि नफरत फैलाने वाले भाषण देना अपराध है, और उसके लिए सजा का प्रावधान भी है मगर अधिकांश मामलों में दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती. पिछले एक दशक से एक सांप्रदायिक पार्टी के सत्ता में होने के कारण नफरत-भरी बातें खूब कही जा रही हैं. इससे धार्मिक अल्पसंख्यकों के बारे में आम लोगों में नकारात्मकता का भाव जड़ पकड़ रहा है. व्हाट्सएप समूहों में जिस तरह की बातें होती हैं और आम मानसिकता जैसा बनती जा रही है, उससे ऐसा लगता है कि अल्पसंख्यकों से नफरत करना एकदम सामान्य बात है. इसकी जड़ में है नफरत फैलाने वाला तंत्र, जिसके चलते नकारात्मक सामाजिक धारणाएं विकसित होती हैं और बंधुत्व व सामाजिक सद्भाव की अवधारणाओं - जो भारतीय संविधान के तीन मूलभूत आधारों में से एक हैं - को धक्का पहुँचता है.