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कोलकाता में प्रदर्शन।फोटो साभार: एक्स/@Indian__doctor/वीडियो ग्रैब

नवान्न अभियान: बंगाल में तैयार हो रही है नई राजनैतिक ज़मीन?

इन दिनों पश्चिम बंगाल प्रतिरोध की कई आवाजों से जूझ रहा है। नौ अगस्त को कोलकाता के आर जी कर अस्पताल में हुए युवा डॉक्टर के  बलात्कार और हत्या की ख़बर ने पूरे प्रदेश को उबाल पर ला दिया है। लगातार लोग सड़कों पर हैं। अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं। इस विरोध के केंद्र में युवा हैं। इन युवाओं में अधिकतर छात्र हैं जिनकी पुलिस से छिटपुट झड़प की ख़बरें भी लगातार आ रही हैं। इन घटनाओं को देखते हुए एक देजा वू होता है। साल 2005-06-07 का कोलकाता, सिंगूर और नंदीग्राम याद आता है। इस दौरान लगभग तीन दशक पुरानी कम्युनिस्ट सरकार राज्य में थी और ममता सड़कों पर... तीन आंदोलन और तीन अलग-अलग मुद्दे।

जब ममता प्रतिरोध में थीं...

2005 में ममता तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य के औद्योगिक विकास परियोजना के विरोध में थीं। इंडोनेशिया के सलीम ग्रुप ने पश्चिम बंगाल में निवेश की बात की थी। ममता बनर्जी का सरकार पर आरोप था कि औद्योगिक विकास के झांसे में किसानों की ज़मीन जबरन छीनी जा रही है। ममता बनर्जी और उनके साथियों ने तय किया कि वे इसका विरोध करेंगे। तेज बारिश में भी ममता सलीम ग्रुप के सीईओ बेनी सैंटोसो और सरकार के खिलाफ कोलकाता की सड़कों पर बनी रहीं।

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साल भर बाद सिंगूर में फिर ममता सरकार के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रही थीं। इस बार मामला पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा के फ़्लैगशिप प्रोजेक्ट नैनो कार से जुड़ी फैक्ट्री को लगाने से जुड़ा हुआ था। ममता ने अपने आंदोलन की शुरुआत पश्चिम बंगाल की विधानसभा से शुरू की थी। उन्होंने और उनकी पार्टी ने बारह घंटे के बंद का आह्वान किया था पर उन्हें उससे पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके प्रतिरोध में उनकी पार्टी के विधायकों ने पश्चिम बंगाल विधानसभा में खूब हंगामा किया था और फर्नीचर तक तोड़ डाले थे। चार दिसंबर को टाटा मोटर्स और सरकार के विरोध में ममता भूख हड़ताल पर बैठ गईं। इस आंदोलन का असर इतना गहरा था कि तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भी ममता के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हो गये और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से सौहार्दपूर्ण ढंग से रास्ता निकालने को कहा। ममता के सिंगूर आंदोलन को इतना जन समर्थन हासिल था कि टाटा के चेयरमैन रतन टाटा ने ममता के आंदोलन का हवाला देते हुए सिंगूर में कार प्लांट लगाने का विचार ही त्याग दिया। 

2007 में नंदीग्राम में ममता फिर से सलीम ग्रुप के खिलाफ झंडा उठाए खड़ी थीं। उनका आरोप था कि बुद्धदेब भट्टाचार्य की सरकार असंवैधानिक रूप से दस हज़ार एकड़ ज़मीन सलीम ग्रुप को स्पेशल इकनॉमिक ज़ोन बनाने के लिए दे रही है। 

इस योजना के खिलाफ़ भीषण जन-आंदोलन नंदीग्राम में हो रहा था कि पुलिस के एक दल ने इसे दबाने के लिए नागरिकों पर गोलियों की बौछार कर दी। इसमें कम से कम चौदह आमजन मारे गये थे और सत्तर से अधिक घायल। ममता बनर्जी ने इसे सत्ता-प्रायोजित हिंसा का नाम दिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं गृह मंत्री शिवराज पाटील को खत लिखा कि वे इसे रोकने के लिए कदम उठाएं।
अगर राजनैतिक दिग्गजों की राय ली जाए तो यही माना जाएगा कि नंदीग्राम में ही पश्चिम बंगाल का राजनैतिक भविष्य तय हो गया था। 2011 में पश्चिम बंगाल में चुनाव हुए और चौंतीस सालों से सत्ता में रही कम्युनिस्ट पार्टी हार गई। अब नई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी थीं।

ममता के शासन के तेरह साल और कोलकाता रेप केस 

पिछले तेरह सालों से ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। यह संभवतः पहला मौका है जब उनके खिलाफ इतना बड़ा जन-प्रतिरोध दिख रहा है। आश्चर्यजनक यह है कि यह जन-प्रतिरोध उस मुख्यमंत्री के खिलाफ है जिन्होंने सत्ता तक पहुँच बरास्ते आंदोलन ही बनाई थी। हालांकि मामले बिल्कुल अलग हैं पर गौर से देखा जाए तो उस वक़्त की बुद्धदेब भट्टाचार्य और वर्तमान की ममता बनर्जी सरकार में एक समानता नज़र आती है। बुद्धदेब भट्टाचार्य लोकहित के पक्ष में फैसला लेने से चूक गये थे जिसका खामियाजा कम्युनिस्ट पार्टी को चुनाव हारकर भुगतना पड़ा। 

लोकहित को दरकिनार करने की यही प्रवृत्ति वर्तमान की ममता बनर्जी सरकार में भी नज़र आ रही है। आर जी कर अस्पताल में 31 वर्षीय डॉक्टर की हत्या और बलात्कार के बाद जिस तरह से प्रशासन और सरकार ने मामले की लीपापोती की कोशिश की है, वह संदेहास्पद है। इस पूरे मामले में प्रशासन एक के बाद एक ग़लतियाँ करता गया। पहले हत्या के मामले को आत्महत्या बताकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की गई। फिर आनन फानन में हुआ अंतिम संस्कार और जांच में देरी के दौरान सबूतों से छेड़छाड़ के आरोपों ने लोगों को गुस्से में भर दिया। 

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हद तब हो गई जब चौदह अगस्त 2024 की रात ‘रिक्लेम द नाइट’ के शांतिपूर्ण प्रतिरोध को छिन्न-भिन्न करने के लिए हज़ारों की भीड़ आ गई। उस भीड़ ने न केवल प्रतिरोध कर रहे डॉक्टर को उनके जगह से हटने के लिए मज़बूर कर दिया बल्कि अस्पताल में भी तोड़-फोड़ मचाई। इस विषय में मेडिकल कॉलेज के कुछ छात्रों का कहना है कि भीड़ का उद्देश्य सबूत के साथ छेड़-छाड़ करना था। पुलिस इस पूरे मामले में विफल रही। ममता बनर्जी की सरकार ने इस बात की ज़िम्मेदारी लेने से इनकार करते हुए प्रतिरोधी डॉक्टरों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी। 

लोगों का गुस्सा भड़कता गया। प्रतिरोधों की शृंखला बढ़ती गई। छात्रों द्वारा आयोजित नवान्न रैली भी इसी प्रतिरोध शृंखला का हिस्सा थी। पश्चिमबंग छात्र समाज नामक एक नये-नवेले संगठन ने कोलकाता के छात्रों से 27 अगस्त को राज्य के नये सचिवालय नवान्न भवन तक शांतिपूर्ण यात्रा की अपील की थी। आर जी कर बलात्कार और हत्या के मामले में ममता सरकार की विफलता पर ममता बनर्जी का इस्तीफा मांगने वाली इस रैली को असंवैधानिक ठहराते हुए कोलकाता पुलिस ने छात्रों पर हिंसात्मक कार्रवाई शुरू कर दी। प्रशासन ने इसपर यह भी आरोप लगाया कि विपक्ष जनता को उकसा रहा है। पुलिस के वॉटर कैनन छिड़काव और लाठीचार्ज के बाद यह पूरी रैली हिंसात्मक हो गई।

विश्लेषण से और

क्या इतिहास अपने आप को दुहरा रहा है? 

इतिहास वर्तमान और भविष्य में अक्सर अपने आप को दुहराता है, बस चेहरे बदल जाते हैं। पश्चिम बंगाल की वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए यह दावा तो किया ही जा सकता है। 2006 में जहाँ ममता बनर्जी खड़ी थीं, वहीं कहीं आज सुवेन्दु अधिकारी नज़र आ रहे हैं। सुवेन्दु कभी ममता के सहयोगी थे और फिर उसी नंदीग्राम में ममता को हराकर विधानसभा के सदस्य बने जहाँ ममता की जीत की ज़मीन तैयार हुई थी।

ममता आज ठीक उस जगह हैं जहाँ कभी बुद्धदेब भट्टाचार्य थे। 

हालांकि हाल में हुए लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने अच्छी जीत दर्ज की है पर 2006 को फिर से नकारा नहीं जा सकता जब ममता की पार्टी बुरी तरह हारी थी। अतीत की झलकियां और वर्तमान की तस्वीरों को देखते हुए एक सवाल सायास ही ज़ेहन में आ जाता है, कहीं पश्चिम बंगाल खुद को नये राजनैतिक परिदृश्य के लिए तो नहीं तैयार कर रहा? 

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अणु शक्ति सिंह
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