राहुल गांधी को 'पप्पू' घोषित करने वाली भारतीय जनता पार्टी अब उन्हें देशद्रोही कह रही है। जो भारतीय जनता पार्टी राहुल गांधी को कभी गंभीरता से नहीं लेती थी, वह आज राहुल गांधी पर हमलावर है। विपक्ष के नेता को देशद्रोही घोषित करना क्या संसदीय मर्यादाओं और लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या नहीं है? लेकिन उस पार्टी से क्या उम्मीद की जा सकती है, जिसका एजेंडा ही संविधान को खत्म करना है।
पिछले लोकसभा चुनाव में डंके की चोट पर भाजपा ने 400 सीटें जीतकर संविधान बदलने का एलान किया था। अलबत्ता, सवाल यह है कि राहुल गांधी को भारतीय जनता पार्टी देशद्रोही क्यों कह रही है? एक सवाल यह भी है कि अगर राहुल गांधी देशद्रोही हैं तो नरेंद्र मोदी की सरकार और गृह मंत्रालय क्या बधिया है जो राहुल गांधी पर मुकदमा नहीं कर पा रहा है और उनको जेल नहीं भेज पा रहा है? इसका मतलब है कि प्रेस कॉन्फ्रेंस से लेकर पार्लियामेंट तक, राहुल गांधी को लेकर दिए जा रहे बयान केवल राहुल गांधी की छवि को दूषित करने के लिए हैं।
आश्चर्य तो इस बात का है कि जो राज्यसभा के सभापति जगदीप धनगढ़ अडानी शब्द को कार्यवाही में नहीं जाने दे रहे हैं लेकिन राहुल गांधी को देशद्रोही करार दिए जाने पर वह खामोश बैठे हैं। यह बयानबाजी सदन की कार्यवाही में दर्ज हो रही है। इसका सीधा मतलब है कि कार्यपालिका और विधायिका के सर्वोच्च पदों पर बैठे नुमाइंदे संबंधित पार्टी और विचारधारा के लिए संवैधानिक मान्यताओं और सांस्थानिक मूल्यों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। यह पूरी प्रक्रिया अनकहे ढंग से संविधान को खत्म करने की बड़ी साजिश की तरफ इशारा करती है। दरअसल, यह आरएसएस की जानी पहचानी प्रणाली है। संघ जिस विचार को सामने से नहीं खत्म कर पाता तो पीठ पीछे बार करके उसकी हत्या करने की साजिश रचता है।
पिछले एक दशक से राहुल गांधी की जो कमजोर और बेपरवाह छवि बनाई गई थी, उसको उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा के जरिए ध्वस्त कर दिया। खुद राहुल गांधी के ही शब्दों में, ' मोदी एंड कंपनी ने सैकड़ों करोड़ों रुपए उनकी छवि खराब करने के लिए खर्च कर दिए।'
भारत जोड़ो यात्रा का हासिल यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों और संघ के विचारों की दुरभिसंधि के बीच पिसती भारत की जनता एक बार फिर राहुल गांधी की तरफ देखने लगी। उनके प्रति लोगों का विश्वास पुख्ता हुआ। इससे भयभीत भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता और नेता उनका मजाक उड़ाने के बजाय गंभीर आरोप लगाने लगे। नरेंद्र मोदी ने उन्हें अर्बन नक्सल तक कहा। राहुल गांधी ने जब विदेशी यात्राओं में मोदी सरकार की आलोचना की, तो भाजपा ने उनकी बातों को देश विरोधी करार दिया।
2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को जो झटका लगा, उससे उबरने के लिए सबसे पहले उन्होंने उस संविधान के सामने नाक रगड़ी, जिसे मिटाने का संकल्प उनके वैचारिक पुरखों का है और जिसे वह बड़ी शिद्दत से अंजाम देना चाहते हैं। लेकिन दलित, पिछड़ा और आदिवासी समाज के बीच चल रहे जागरूकता अभियान और राहुल गांधी के संविधान बचाने के संकल्प ने तमाम षडयंत्रों के बावजूद नरेंद्र मोदी को 240 सीटों पर समेट दिया।
अब राहुल गांधी नेता विपक्ष बन चुके हैं। विपक्ष में राहुल गांधी ही एक मात्र ऐसे नेता हैं जो नरेंद्र मोदी के सामने वैचारिक और राजनीतिक रूप से मजबूती के साथ खड़े हैं। राहुल गांधी लगातार आरएसएस और उसकी हिंदुत्व की राजनीति की आलोचना कर रहे हैं। देश और समाज विरोधी गतिविधियों के कारण तीन बार प्रतिबंधित हो चुके संघ के साम्प्रदायिक और मनुवादी एजेंडे को राहुल गांधी ने देश के सामने बार बार नंगा किया है। यही कारण है कि राहुल गांधी सबसे ज्यादा संघ के निशाने पर हैं।
नरेंद्र मोदी के लिए राजनीतिक चुनौती भी कांग्रेस और राहुल गांधी हैं। मोदी जानते हैं कि क्षेत्रीय दलों को डर और प्रलोभन से आसानी से झुकाया और तोड़ा जा सकता है। पिछले दस साल में नीतीश कुमार, चन्द्रबाबू नायडू, जगह मोहन रेड्डी, नवीन पटनायक, रामदास अठावले, मायावती, ममता बनर्जी, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, शिव सेना, एनसीपी जैसी दर्जनों पार्टियों और नेताओं को मोदी ने आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन राहुल गांधी ने निर्भय होकर मोदी सरकार की तानाशाही का डटकर मुकाबला किया।
राहुल गांधी पर हमले का एक और कारण है कि उन्होंने बार-बार नरेंद्र मोदी और गौतम अडानी के रिश्तों को बेपर्दा किया है। नरेंद्र मोदी की यह सबसे कमजोर नस है। मोदी जानते हैं कि लोगों ने अगर इस रिश्ते के दुष्प्रभाव को समझ लिया तो उनकी राजनीति हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। मोदी और अडानी का रिश्ता सिर्फ भ्रष्टाचार तक सीमित नहीं है बल्कि इसका सीधा संबंध मंहगाई, बेरोजगारी और बढ़ती आर्थिक असमानता से है। आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत का सबसे ज्यादा लाभ अडानी की झोली में जा रहा है। मोदी ने देश की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा अडानी के सुपुर्द कर दिया है।
महाराष्ट्र चुनावी नतीजों से यह भी साफ हो चुका है कि अडानी केवल अपनी पूंजी के दम पर भारतीय जनता पार्टी को चुनाव जिता भी सकते हैं। महाराष्ट्र में चुनाव के दौरान जमीनी हालात और चुनाव नतीजे में जो फर्क है, उसके बीच में दरअसल, अडानी की पूंजी और मोदी-शाह का चुनावी तंत्र खड़ा हुआ है। इसलिए अडानी और मोदी के रिश्तों को बेपर्दा होने से बचाने के लिए राहुल गांधी को देश विरोधी, देशद्रोही और गद्दार कहा जा रहा है।
राहुल गांधी को देशद्रोही साबित करने का एक और बड़ा कारण है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने जिस भारत को पहचाना, वह दरअसल बहुजन भारत है; जहां गरीबी है, अन्याय है, शोषण है और सबसे बढ़कर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष की चेतना है। हजारों साल तक मनुवादी गुलामी और वंचना के शिकार इस समाज को बाबा साहब डॉ. अंबेडकर के संविधान और नेहरू की लोकतांत्रिक व्यवस्था से मुक्ति और प्रगति का अवसर मिला।
भाजपा और संघ की राजनीति इस समाज को फिर से गुलामी, अशिक्षा और गरीबी के दलदल में धकेलने चाहती है। दरअसल, ब्राह्मणवाद हमेशा परजीवी रहा है। ब्राह्मणवाद दलितों और शूद्रों का खून पीकर ही जिंदा रह सकता है। सदियों तक जोंक की तरह यह दलितों वंचितों का शोषण करता और फलता फूलता रहा। समता, न्याय, स्वतंत्रता और भाईचारा जैसी भावनाएं उसके डीएनए में ही नहीं हैं। संविधान और लोकतंत्र ने सैद्धांतिक तौर पर इस व्यवस्था को स्थापित किया।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया में धीरे-धीरे इस व्यवस्था की ओर देश बढ़ रहा था। शिक्षण संस्थाओं और आरक्षण जैसी व्यवस्था ने दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और महिलाओं को अवसर प्रदान किए। लेकिन भाजपा और संघ की नीतियां इस व्यवस्था को ध्वस्त करके दलितों-वंचितों को गुलामी के अंधेरे में फिर से धकेल रही हैं। राहुल गांधी लगातार इस साजिश का खुलासा कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव से लेकर अन्य दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी ने लगातार दलितों, आदिवासियों के सम्मान- स्वाभिमान की रक्षा की बात की। आबादी के अनुपात में आरक्षण बढ़ाने का वादा किया। राहुल गांधी ने उनके बच्चों की शिक्षा और सरकारी नौकरियों को खत्म करने की मोदी सरकार की साजिश को बेपर्दा किया। भाजपा सरकारों में दलितों और आदिवासियों पर लगातार शारीरिक हमले बढ़ रहे हैं।
गुजरात के ऊना से लेकर उत्तर प्रदेश के हाथरस तक सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा का नेता सत्ता और शराब के मद में चूर होकर एक आदिवासी के मुंह पर पेशाब करता है। राहुल गांधी ने बार बार इन मुद्दों को उठाया। मीडिया, उच्च न्यायपालिका, सरकारी तंत्र और निजी क्षेत्र में आरक्षण बहाल करने की पहल भी राहुल गांधी कर रहे हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वे जाति जनगणना की मांग उठा रहे हैं। जाति जनगणना से केवल लोगों की संख्या ही नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक डेटा भी सामने आएगा। इससे भाजपा और संघ बेहद डरा हुआ है।
जाति जनगणना के आंकड़ों से जाहिर हो जाएगा कि देश के प्राकृतिक और आर्थिक संसाधनों पर किसका कब्जा है। समाज, राजनीति, प्रशासन, मीडिया और कॉर्पोरेट में सवर्ण वर्चस्व बेपर्दा हो जाएगा। इससे संघ और भाजपा बेचैन हैं। इसीलिए इन मुद्दों को मुखरता से उठाने वाले राहुल गांधी को देशद्रोही, अर्बन नक्सल, गद्दार करार देकर भाजपा उनके विचारों और मुद्दों को बेमानी बना देना चाहती है।
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