हरियाणा में कांग्रेस की आपसी लड़ाई इन दिनों काफी चर्चा में है। कहा जा रहा है कि वहां माहौल भले ही कांग्रेस के पक्ष में हो लेकिन ये लड़ाई कांग्रेस को डुबा सकती है। जैसे कि मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में हुआ था। कांग्रेस के बड़े नेता भी अपने बयानों और सक्रियता से ऐसी आशंकाओं को शह देते दिखाई देते हैं। इसके साथ ही यह भी जोड़ दिया जाता है कि माहौल पक्ष में होने के कारण अति-आत्मविश्वास भी कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकता है। जैसा कि छत्तीसगढ़ में हुआ था।
दूसरी तरफ़ भाजपा के बारे में भी ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वह आपसी लड़ाई झगड़ों से दूर है। तरह-तरह की बगावत और विरोध की आवाजें उसके भीतर से भी दिखाई और सुनाई दे रही हैं। लेकिन इस सब की चर्चा बहुत ज्यादा नहीं है। विश्लेषण करने वालों का सारा नजला कांग्रेस पर ही गिर रहा है।
दोनों पार्टियों की तुलना करते समय कहा जाता है कि भाजपा के पास एक सुगठित, सुव्यवस्थित संगठन है। यह संगठन बिलकुल नीचे तक है। बूथ इंचार्ज से लेकर पन्ना प्रमुख तक सारे पदों पर लोग तैयार हैं और उनकी भूमिका तय है। वे इन भूमिकाओं को पूरी ईमानदारी से भी निभाते हैं और जी-जान से जुटते भी हैं। यह भी कहा जाता है कि भाजपा हर समय चुनाव लड़ते रहने वाली दुनिया की एक सबसे बड़ी मशीन है। यह पार्टी का अनुशासन ही है जो भाजपा को भाजपा बनाता है।
इसके विपरीत कांग्रेस में संगठन नाम मात्र के लिए ही है। अगर हरियाणा को लें तो वहां शायद ब्लाॅक अध्यक्ष और जिला अध्यक्ष भी सभी जगह नहीं होंगे। कांग्रेस अपने-अपने क्षेत्र, जाति वगैरह के ताक़तवर नेताओं का ढीला-ढाला और अनुशासनहीन समूह भर है। वे संगठन या पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व छाते तले जमा रहते हैं और चुनाव हो या न हो एक दूसरे की टांग खींचते रहते हैं। अक्सर लगता है कि यही उनकी मूल प्रवृत्ति है। यह अनुशासनहीनता ही है जो कांग्रेस को न तो भाजपा बनने देती है और न ही कम्युनिस्ट पार्टी की तरह का कोई संगठन।
एक जमाने में शरद जोशी ने कांग्रेस पर एक व्यंग्य लिखा था - कांग्रेस क्या है। वे इसमें लिखते हैं कि कांग्रेस वह अखाड़ा है जिसमें जीतने वाला मंत्री और मुख्यमंत्री बनता है और हारने वाले को राज्यपाल का पद प्राप्त होता है।
अगर हम हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव को लें तो हरियाणा में यह चुनाव भाजपा ने अपनी पूरी संगठन शक्ति, अपनी अनुशासित चुनावी मशीनरी के साथ लड़ा था। जबकि कांग्रेस की तरफ से यह चुनाव उसे सभी अनुशासनहीन गुट लड़ रहे थे। नतीजे क्या रहे हम जानते हैं।
अभी जो हरियाणा में हो रहा है उसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस अपनी मूल प्रवृत्ति के हिसाब से ही चल रही है। जबकि भाजपा से सुनाई पड़ रहे बगावत के सुर यह बताते हैं कि पार्टी कम से कम हरियाणा में अपनी मूल प्रवृत्ति से हट गई है।
अनुशासनहीनता दोनों में ही दिख रही है, लेकिन इस बार भाजपा की अनुशासनहीनता पार्टी के लिए कांग्रेस की अनुशासनहीनता से ज्यादा ख़तरनाक साबित होने वाली है।
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