ध्रुवीकरण की राजनीति करने का आरोप झेलती रहने वाली बीजेपी ने ईद के मौक़े पर देशभर के 32 लाख गरीब मुसलमानों को 'सौगात-ए-मोदी' किट देने की घोषणा की है। इस किट में खजूर, सेवइयाँ, ड्राई फ्रूट्स, चीनी और कपड़े जैसी चीजें शामिल होंगी। इसे बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के 32 हज़ार पदाधिकारी 32 हज़ार मस्जिदों के ज़रिए ज़रूरतमंदों तक पहुँचाएँगे।
यह वही बीजेपी है जिस पर अक्सर ध्रुवीकरण की राजनीति करने और सांप्रदायिक मुद्दों को भुनाने का आरोप लगता रहा है। हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने वाली पार्टी का यह क़दम कई सवाल खड़े करता है। क्या यह वास्तव में ग़रीब मुसलमानों की मदद का प्रयास है, या बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक सुनियोजित सियासी रणनीति?
बीजेपी का यह दावा है कि 'सौगात-ए-मोदी' अभियान उसकी 'सबका साथ, सबका विकास' नीति का हिस्सा है। पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने कहा, 'रमजान और ईद के पवित्र मौक़े पर ग़रीब मुसलमानों को त्योहार की खुशियाँ मनाने में मदद करना हमारा उद्देश्य है।' किट की क़ीमत 500 से 600 रुपये बताई जा रही है और इसे देशभर में बाँटने के लिए करोड़ों रुपये ख़र्च होंगे। लेकिन यह पहल उस बीजेपी से आ रही है जो अक्सर मुस्लिम समुदाय के प्रति सख़्त रुख के लिए जानी जाती है। नवरात्रि में मांस की दुकानों पर पाबंदी, बुलडोजर कार्रवाई और लव जिहाद जैसे मुद्दों पर पार्टी का आक्रामक स्टैंड उसकी छवि का हिस्सा रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या यह क़दम मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने की कोशिश है?
बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, और यह राज्य बीजेपी के लिए बेहद अहम है। यहाँ मुस्लिम आबादी क़रीब 17% है, जो कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती है।
अब 'सौगात-ए-मोदी' किट को बिहार में राजद और एआईएमआईएम जैसे दलों के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
समाजवादी पार्टी के सांसद अफजाल अंसारी ने तंज कसते हुए कहा, 'मुसलमानों को किट नहीं, इंसाफ और हक चाहिए। यह सिर्फ दिखावा है।' कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने भी इसे खारिज करते हुए कहा, 'शिक्षा, रोजगार और सम्मान की सौगात दें, किट से क्या होगा?' विपक्ष का मानना है कि यह क़दम बिहार में लालू यादव और ओवैसी जैसे नेताओं की सियासी जमीन को कमजोर करने की कोशिश है।
टीएमसी सांसद कीर्ति आजाद ने कहा, 'मगरमच्छ का मुंह देखा है कभी? मगरमच्छ का मुंह देखो तो लगता है कि हंस रहा है लेकिन पास जाओ तो काट लेता है। इनके पास कुछ नहीं है दिखाने के लिए, इसलिए अब ये सौगात ए मोदी लाए हैं। ये मजाक है।'
बीजेपी के इस अभियान का असर दोतरफ़ा हो सकता है। एक ओर, यह गरीब मुसलमानों तक सीधे मदद पहुँचाकर पार्टी की छवि को नरम करने की कोशिश कर सकता है। दूसरी ओर, इसके पीछे सियासी मंशा को देखते हुए ध्रुवीकरण का ख़तरा भी बना हुआ है। बीजेपी विधायक पवन जायसवाल ने कहा, 'हम सबका विकास चाहते हैं। विपक्ष सिर्फ़ डर फैलाता है, लेकिन मुसलमानों को लाभ मिले तो उसे जश्न मनाना चाहिए।' हालाँकि, अगर यह योजना सिर्फ़ चुनावी लाभ के लिए देखी गई, तो यह उल्टा भी पड़ सकता है।
'सौगात-ए-मोदी' किट बीजेपी की एक ऐसी पहल है, जो सतह पर सामाजिक समावेश का संदेश देती है, लेकिन इसके पीछे बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ साफ़ नज़र आती हैं। यह क़दम कितना असरदार होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मुस्लिम समुदाय इसे कितना स्वीकार करता है और विपक्ष इसका जवाब कैसे देता है। फिलहाल, यह साफ़ है कि बीजेपी अपनी पारंपरिक रणनीति से हटकर एक नया दाँव खेल रही है। क्या यह दाँव सफल होगा, या ध्रुवीकरण की राजनीति में उलझ जाएगा?
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