सुप्रीम कोर्ट से आशीष मिश्रा की ज़मानत रद्द हो चुकी है। वह दोबारा जेल में होगा। मगर, सवाल यह है कि वह जेल से बाहर आया क्यों? और, इससे भी बड़ा सवाल है कि वे किसान जेलों में क्यों बंद हैं जो आंदोलनकारी हैं?
प्रश्न सिर्फ लखीमपुर खीरी केस से जुड़े किसानों के जेलों में बंद होने का नहीं है। तिहाड़ जेल में अब भी बंद 122 किसानों का भी है।
आखिर क्यों लखीमपुर खीरी केस में सुप्रीम कोर्ट को बारंबार दखल देना पड़ा? हर दखल के नतीजे निकले, वे बेनतीजे नहीं रहे। फिर भी सुप्रीम कोर्ट के लिए दखल देने की स्थिति बरकरार है तो क्यों? इससे पता चलता है कि लखीमपुर खीरी केस कितना हाईप्रोफाइल है और इसके कितने बहुआयामी असर हैं। स्पष्ट यह भी हो रहा है कि लखीमपुर खीरी केस को प्रभावित करने वाली शक्तियां सक्रिय हैं और सुप्रीम कोर्ट देख-समझ करके भी रूटीन हस्तक्षेप से आगे नहीं बढ़ सका है।
जेलों में क्यों हैं किसान?
किसानों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एमएसपी की मांग को लेकर किसानों को एकजुट कर रहे किसान नेता डॉ राजाराम त्रिपाठी सवाल उठाते हैं कि जब उस आशीष मिश्रा को जमानत मिल सकती है जिसे हजारों किसानों ने अपराध करते देखा तो निर्दोष किसान आज भी जेलों में बंद क्यों हैं? लखीमपुर जेल में आशीष मिश्रा को वीआईपी ट्रीटमेंट और उसी जेल में बंद 12 किसानों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार भी बड़ा सवाल है जिसे सुप्रीम कोर्ट को देखना चाहिए।
डॉ त्रिपाठी का दावा है कि किसानों पर दबाव डाले जा रहे हैं। उन्हें धमकी दी जा रही है और लोभ भी दिया जा रहा है। अगर लखीमपुर खीरी केस में आशीष मिश्रा का सहयोग करें तो जमानत मिल जाने और सज़ा से बचा लेने का ऑफर भी किसानो को दिए जा रहे हैं।
ज़मानत देने पर सवाल
लखीमपुर खीरी केस में मुख्य अभियुक्त आशीष मिश्रा टेनी की जमानत को रद्द करने से अहम है सुप्रीम कोर्ट की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच के आदेश पर कड़ी टिप्पणी। सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत देने के तरीके पर सवाल उठाए हैं।
सोचने की बात है कि जब इलाहाबाद हाईकोर्ट इस हाई प्रोफाइल मामले में आशीष मिश्रा टेनी को ज़मानत देता है तो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही जांच प्रक्रिया का मकसद क्या बेमतलब नहीं हो जाता? अगर हां, तो इस दिशा में कोई उपचारात्मक कदम सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं उठा पा रहा है?
अभियोजन पक्ष के वकील दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वे इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से कहे कि अगली बार आशीष मिश्रा की जमानत का मामला किसी और बेंच के पास जाए। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने को अनुचित बताया। संभव है इससे इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रतिष्ठा पर आंच आती हो।
लेकिन, जिन आधारों पर आशीष मिश्रा को ज़मानत दी गयी और जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मान्य प्रक्रिया के विरुद्ध बताते हुए खारिज किया, उसके लिए भूल-सुधार और दंडात्मक प्रावधान कहां हैं?
302 के आरोपी को नोटिस देकर बुलाते हैं क्या?
लखीमपुर खीरी कांड 3 अक्टूबर 2021 को हुआ था। केंद्रीय गृहराज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी की गाड़ी से आंदोलनकारी किसानों को कथित रूप से कुचला गया। केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा पर जानबूझकर किसानों को रौंदने और गोली चलाने के आरोप लगे। किसानों ने भी जवाबी कार्रवाई की। गाड़ी फूंक दी। ड्राइवर समेत 3 लोगों को भीड़ ने मार डाला। कुल 8 लोग मारे गये। इनमें एक पत्रकार भी शामिल थे। बाद में पत्रकार के भी गाड़ी से कुचले जाने की पुष्टि हुई।
जब 3 अक्टूबर के बाद 6 दिन बीत गये और आशीष मिश्रा गिरफ्तार नहीं हुआ तो सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा और यूपी पुलिस को लताड़ लगानी पड़ी। तब सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस के व्यवहार पर सख्त टिप्पणी की थी, “आरोप 302 (हत्या) का है। आप उसे भी वैसे ही ट्रीट करें जैसे बाकी केसों में मर्डर केस में आरोपी के साथ ट्रीट किया जाता है…यह नहीं होता कि प्लीज आ जाएं नोटिस किया गया है। प्लीज आइए।”आखिरकार 10 अक्टूबर को आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी हुई और पूछताछ शुरू हो सकी।
एसआईटी तक को बदल डाला
सुप्रीम कोर्ट यूपी सरकार की ओर से गठित एसआईटी से भी संतुष्ट नहीं हुई। 15 नवंबर 2021 को एसआईटी का पुनर्गठन करते हुए इसमें ऐसे अफसरों को रखा जो यूपी से नहीं थे और निगरानी का जिम्मा रिटायर्ड जज राकेश कुमार जैन को सौंप दिया।
15 दिसंबर 2021 को पुलिस ने अदालत को बताया कि किसानों को रौंदने का कारण लापरवाही नहीं, पूर्व नियोजित साजिश थी। लखीमपुर खीरी केस में यह बड़ी बात थी। अब तक गाड़ी से किसानों को रौंदने और जान लेने की इस घटना को हादसा और उग्र किसानों से जान बचाने की खातिर उठाए गये कदम के तौर पर पेश किया जा रहा था।
आशीष को ज़मानत, गवाहों को सुरक्षा तक नहीं
आश्चर्यजनक ढंग से 10 फरवरी को आशीष मिश्रा को जमानत दे दी गयी। अभियोजन पक्ष को सुना तक नहीं गया।वीडियो कान्फ्रेन्सिंग में एकतरफा हुई सुनवाई में यह फैसला दे दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इसी फैसले को पलटा है। बड़ा सवाल यही है कि लखीमपुर खीरी केस में मुख्य अभियुक्त के साथ लगातार विशेष व्यवहार तब हो रहा है जब इस मामले की निगरानी खुद सुप्रीम कोर्ट करा रहा है और एसआईटी बनी हुई है?
मुख्य अभियुक्त से सहानुभूति और अभियोजन पक्ष से भेदभाव लखीमपुर खीरी केस का अनन्य पहलू है। अब तक दो गवाहों पर हमले हो चुके हैं। लखीमपुर खीरी की घटना में घायल किसानों और प्रत्यक्षदर्शी गवाहों को सुरक्षा देने के निर्देश के बावजूद उन्हें सुरक्षा नहीं मिल रही है। इस घटना में घायल हुए किसान नेता तेजिन्दर सिंह विर्क की मानें तो उनके उत्तराखण्ड स्थित गृहजिले में सुरक्षा के नाम पर उनसे यही कहा गया कि जिस दिन केस की तारीख लगेगी, आपको एक कान्स्टेबल दे दिया जाएगा। यह ‘सुविधा’ भी सिर्फ दो लोगों को मुहैया करायी गयी, बाकी लोगों को नहीं।
खत्म नहीं हुई है सुप्रीम कोर्ट की चिंता
लखीमपुर खीरी की घटना के 6 महीने बीत चुके हैं। इस दौरान यह बात साफ हो चुकी है कि किसान आंदोलन पर यह सुनियोजित हमला था। खुद सुप्रीम कोर्ट इससे चिंतित है। इसके अलावा आंदोलनकारी किसान आज तक जेलों में बंद हैं। उन्हें जमानत नहीं मिलना भी आंदोलन पर जारी हमले का ही सबूत है।
सवाल यह है कि आंदोलनरत किसानों को गाड़ी से रौंदने के आरोपी केंद्रीय गृहराज्यमंत्री के बेटे आशीष मिश्रा टेनी को जमानत कैसे मिल जाती है? जबकि, आंदोलनकारी किसान लंबे समय से जेलों में बंद हैं और उन्हें जमानत नहीं मिल रही है?
ऐसे में किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे नेताओं की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। उन्हें अपने साथियों के साथ खड़ा होना होगा। अगर अभी यह काम नहीं हुआ तो आने वाले समय में आंदोलन करना सरकार की मर्जी पर ही संभव होगा।
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