मणिपुर में शनिवार को दूसरे चरण में 22 सीटों के लिए वोट डाले गए। इन सीटों पर कुल मिलाकर 77 फ़ीसदी वोट पड़े। पहले चरण का मतदान 28 फरवरी को 38 सीटों पर हुआ था और उसमें कुल मिलाकर क़रीब 78 फ़ीसदी वोटिंग हुई थी।
दूसरे चरण के प्रमुख उम्मीदवारों में पूर्व मुख्यमंत्री ओ इबोबी सिंह और पूर्व उपमुख्यमंत्री गैखंगम गंगमेई शामिल हैं। ये दोनों ही नेता कांग्रेस के हैं। इस चरण में कुल 8.38 लाख मतदाता थे। इस चरण में थौबल, चंदेल, उखरूल, सेनापति, तामेंगलोंग और जिरीबाम जिलों में मतदान हो रहा है।
इन 22 सीटों में से बीजेपी ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं जबकि कांग्रेस ने 18, नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) ने 11 सीटों पर, जनता दल यूनाइटेड और नागा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) ने 10-10सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारा है। इसके अलावा शिवसेना, एनसीपी, सीपीआई और कुछ अन्य दलों ने भी प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं।
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 60 सीटों वाले मणिपुर में 21 सीटों पर जीत मिली थी और कांग्रेस को 28 सीटों पर। लेकिन बीजेपी ने राज्य के छोटे दलों जैसे एनपीपी और एनपीएफ के साथ मिलकर सरकार बना ली थी।
एनपीपी और एनपीएफ को चार-चार सीटें मिली थीं जबकि लोक जनशक्ति पार्टी को 1 सीट पर जीत मिली थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 36.28 फीसद वोट मिले थे जबकि कांग्रेस ने 35.11 फीसद वोट हासिल किए थे।
चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी रैलियों में ओ इबोबी सिंह को लगातार निशाने पर बनाए रखा।
बीते 5 सालों में लगातार कांग्रेस के विधायकों ने उसका साथ छोड़ा है। 5 सालों में कांग्रेस के 16 विधायक टूटकर बीजेपी के पाले में गए हैं। लेकिन इस बार दोनों के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। चुनाव को निष्पक्ष ढंग से कराने के लिए चुनाव आयोग की तरफ से बड़ी संख्या में केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों की तैनाती की गई है।
कांग्रेस गठबंधन के साथ मैदान में
इस बार बीजेपी सभी 60 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ रही है। दूसरी ओर कांग्रेस ने 6 राजनीतिक दलों का गठबंधन बनाया है और इसे मणिपुर प्रोग्रेसिव सेक्युलर एलायंस का नाम दिया गया है। इस गठबंधन में कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), फॉरवर्ड ब्लॉक, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) और जनता दल (सेक्युलर) शामिल हैं।बीजेपी की मुश्किलें
मणिपुर में इस बार बीजेपी ने किसी भी नेता को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया। क्योंकि पार्टी को इस बात का डर था कि इससे राज्य इकाई के अंदर बवाल हो सकता है। वर्तमान मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह 2017 के विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए थे और तब पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था।
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सीएम चेहरे पर लड़ाई
बीरेन सिंह को सबसे बड़ी चुनौती कैबिनेट मंत्री विश्वजीत से मिल रही है। विश्वजीत के पास राज्य सरकार के 6 विभाग हैं और उन्हें मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शुमार किया जाता रहा है। इन दोनों के बीच राजनीतिक लड़ाई मणिपुर में साफ दिखती रही है।
विश्वजीत के समर्थक दो बार बीजेपी हाईकमान के पास गुहार भी लगा चुके हैं कि बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया जाए। लेकिन पार्टी हाईकमान ने तब जैसे-तैसे मामले को शांत करा दिया था।
विश्वजीत के अलावा दूसरा नाम गोविंदास कौनथुजाम का है। गोविंदास मणिपुर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं और पिछले साल उन्होंने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का हाथ थाम लिया था। हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक गोविंदास इस लड़ाई में बीरेन सिंह और विश्वजीत से आगे निकल सकते हैं क्योंकि उन्हें आरएसएस का भी समर्थन हासिल है।
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