ख़ौफ़जदा पति-पत्नी एक दिन चुप रहे। अब इन दरिदों की हिमाक़त देखिए। 28 अप्रैल को उन्होंने पीड़िता के पति को फोन कर धमकाया कि 10 हजार रुपये दो नहीं तो वीडियो को वायरल कर देंगे। आख़िरकार पीड़िता ने अपने भाई को बताया।
केस दर्ज होने के बाद भी दरिंदों ने आपत्तिजनक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। फिर भी अलवर पुलिस नहीं जागी। फिर वही जबाब मिला कि चुनाव निपटाने दीजिए।
गिरफ़्तारी का चुनाव से क्या कनेक्शन
6 मई को राजस्थान में दूसरे चरण की 12 सीटों पर वोट पड़े। इसी चरण में दौसा सीट पर चुनाव था। दरिंदगी दौसा लोकसभा क्षेत्र के ही थानागाजी में हुई थी। हालाँकि ज़िला अलवर है।चुनाव ख़त्म होते ही पुलिस ने 07 मई को पहली गिरफ़्तारी की। पीड़िता का मेडिकल कराया। वह भी तब जब मीडिया ने पुलिस की इस लापरवाही को मुद्दा बनाया। सर्व समाज यानी सभी जातियों की पंचायत थानागाजी में हुई। जिसमें 24 घंटे में हैवानों की गिरफ़्तारी का अल्टीमेटम पुलिस को दिया गया। तब जाकर दरिंदे दबोचे गए। तब तक पीड़िता, उसका पति और परिवार ख़ौफजदा रहा। लेकिन अभियुक्त उसे धमकाते रहे। कुछ दलाल समझौते के लिए दबाव बनाते रहे।क्यों हुई गिरफ़्तारी में देरी
राजस्थान ही नहीं, देशभर में एक नियम लागू है कि बलात्कार जैसै मामले में तत्काल केस दर्ज कर पीड़िता का धारा 164 में मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराना चाहिए। अगर पीड़ित दलित हो तो एससी-एसटी एक्ट की गाइडलाइन के मुताबिक़, रिपोर्ट दर्ज कर सूचना तत्काल पुलिस के सीनियर अधिकारियों को दी जानी चाहिए।अब सवाल यह है कि अलवर, निर्भया जैसा घिनौना अपराध घटित होने, लगातार पीड़िता को धमकाने और पीड़िता के दलित होने के बाजवूद केस क्यों नहीं दर्ज हुआ। क्या यह सिर्फ़ थाने की गलती है, नहीं, पीड़ित पति-पत्नी एसपी के सामने 30 अप्रैल को ही पेश हो चुके थे। क्या अलवर के एसपी राजीव पचार क्या इस घिनौने अपराध की गंभीरता को नहीं समझ पाए। क्या वह ऐसे अपराध पर कानूनी प्रावधान नहीं जानते थे। जैसा ऊपर बताया कि जब पीड़ित की नहीं सुनी गई तो स्थानीय विधायक एसपी के पास अपनी बात लेकर पहुँचे। इससे यह तो साफ़ हो गया कि एसपी जानते होंगे कि अपराध कितना गंभीर है।लेकिन बावजूद इसके एसपी इसकी गंभीरता नहीं समझ पा रहे थे तो फिर उन्हें पद पर बने रहने का हक़ नहीं। सवाल यह भी है कि क्या हकीक़त में एसपी राजीव पचार ने अपने सीनियर अधिकारियों या गृह मंत्री को इस घटना की सूचना नहीं दी थी। राजस्थान में गृह मंत्री ख़ुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं, इसलिए ऐसा मुमकिन नहीं है।पीड़ित का यह आरोप कि अलवर पुलिस ने चुनाव का बहाना कर उसे टरकाया। सवाल यह है कि क्या चुनाव के वक़्त पुलिस सिर्फ़ चुनाव देखती है। अपराधियों को उस वक़्त क्या वारदातों को अंजाम देने की पूरी छूट रहती है।
क्या वारदात को दबाया गया?
राजस्थान की दौसा समेत 12 सीटों पर 6 मई को मतदान होना था। यह घटना 26 अप्रैल की है। 30 अप्रैल को एसपी के सामने पीड़ित के पेश होने के बाद सरकार की नोटिस में पूरा मामला आ गया था। दौसा सुरक्षित लोकसभा सीट है। लेकिन इस सीट पर 2.50 लाख गुर्जर मतदाता निर्णायक हैं। दलित कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक हैं। लेकिन दौसा में जीत-हार का भाग्य गुर्जर मतदाताओं पर टिका था। दौसा में इस बार गुर्जर बीजेपी औऱ कांग्रेस में से जिसके साथ होंगे सीट भी उसकी ही झोली में जाएगी। सुरक्षित सीट होने से कांग्रेस से उम्मीदवार सविता मीणा और बीजेपी से उम्मीदवार जसकौर मीणा दोनों ही एक ही जाति से हैं।उधर, कांग्रेस प्रवक्ता अर्चना शर्मा ने सफ़ाई दी कि इस घटना का चुनाव से कोई सरोकार नहीं है। यह पुलिस की लापरवाही है जिसके लिए एसएचओ को निलंबित कर दिया गया है।
काफ़ी देर से जागे गहलोत
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत काफ़ी देर बाद जागे हैं। सरकार की छवि पर आई आँच के बाद अलवर के एसपी राजीव पचार को हटाकर नए एसपी पारिश देशमुख अनिल को तैनात किया गया है और थानागाजी के थानाधिकारी को सस्पेंड कर दिया गया। पुलिस की लापरवाही की जाँच के लिए जयपुर के संभागीय आयुक्त को जाँच सौंपी गई है। आईजी विजिलेंस से भी रिपोर्ट माँगी गई है।
राजस्थान में महिलाओं के ख़िलाफ़ बलात्कार, गैंगरैप जैसे अपराधों पर रोकथाम के लिए हर जिले में डीएसपी महिला सुरक्षा का नया पद सृजित करने का फ़ैसला किया गया है। थानेदार के रिपोर्ट दर्ज नहीं करने पर सीधे एसपी को रिपोर्ट दर्ज कराने और थानेदार के रिपोर्ट दर्ज नहीं करने पर जाँच का प्रावधान किया गया है।
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