पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में इसी साल नवंबर-दिसंबर मे होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारियां प्रमुख दलों ने शुरू कर दी हैं। इसी के मद्देनजर भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) की बैठक बुधवार 13 सितंबर को शाम को पार्टी मुख्यालय में बुलाई गई है। इस बैठक में पार्टी की रणनीति और उम्मीदवारों के नामों पर विचार हो सकता है। हालांकि यह सीईसी की बैठक है लेकिन भाजपा में हर चुनाव को लेकर सबकुछ पीएम मोदी और अमित शाह ही तय कर रहे हैं। यहां तक राज्यों के चुनाव पीएम मोदी के नाम पर लड़े जा रहे हैं। अभी यूपी के घोसी उपचुनाव में भाजपा ने पीएम मोदी के नाम पर वोट मांगे।
हालांकि भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्यों में नरेंद्र मोदी, अमित शाह के अलावा भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, धर्मेंद्र प्रधान और कई अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हैं।
भाजपा 17 अगस्त को ही मध्य प्रदेश में 39 और छत्तीसगढ़ में 21 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है। आमतौर पर यह पार्टी की परंपरा से हटकर है। लेकिन ये प्रत्याशी उन सीटों पर घोषित किए गए, जहां पार्टी पिछले चुनाव में हार गई थी। प्रत्याशी ठीक से इन सीटों पर प्रचार कर सकें, इसलिए यह पहल की गई है।
भाजपा की सीईसी अब बुधवार को और अधिक उम्मीदवारों को अंतिम रूप देगी ताकि पार्टी उन चुनावों के लिए अच्छी तरह से तैयार हो सके जिनमें कड़ी टक्कर होने की उम्मीद है। मध्य प्रदेश में भाजपा सत्ता में है, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का शासन है, और तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) का शासन है।
मध्य प्रदेश में भाजपा खुद को काफी मुश्किल में पा रही है। कई सर्वे बता रहे हैं कि एमपी में भाजपा की हालत पतली है। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई लोकलुभावन घोषणाएं की हैं लेकिन पार्टी को जीत का भरोसा फिर भी नहीं हो रहा है।
2018 में एमपी में कांग्रेस की सरकार बन गई थी लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खुद को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज होकर विद्रोह कर दिया। उनके समर्थक सारे कांग्रेस विधायक भाजपा में चले गए। एमपी में कमलनाथ की सरकार गिर गई। लेकिन सिंधिया भाजपा में जिस उम्मीद से गए थे, वो पूरी नहीं हुई। लेकिन वक्त ने पलटा खाया है। अब सिंधिया समर्थक विधायक और अन्य भाजपा नेता वापस कांग्रेस में लौट गए हैं। भाजपा में सिंधिया की स्थिति बेहद कमजोर हो गई है। लेकिन इसका असर भाजपा पर भी पड़ा है। उसके कई संभाग के नेता टूट गए हैं।
छत्तसीगढ़ और राजस्थान में भाजपा संभावनाएं तलाश रही है लेकिन इन दोनों राज्यों में उसके लोकल नेताओं में तालमेल नहीं है। जिस राजस्थान में भाजपा अपनी जीत आसान समझ रही थी, वहां वसुंधरा राजे को पहले से ही सीएम चेहरा घोषित नहीं करने पर उनके समर्थक भाजपा छोड़ रहे हैं। खुद वसुंधरा के तेवर कड़े हैं। राजस्थान में भाजपा की तिरंगा यात्रा को वसुंधरा का समर्थन नहीं है। इसी तरह तेलंगाना में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और केसीआर की सत्तारूढ़ बीआरएस के बीच है। भाजपा यहां क्षेत्रीय दलों को समर्थन देकर या गठबंधन करके ही सत्ता में आ सकती है। पूर्वोतर के मिजोरम में भी चुनाव होना है लेकिन वहां राष्ट्रीय दलों का कोई महत्व नहीं है। कांग्रेस और भाजपा क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता करके ही चुनाव लड़ते हैं।
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