अन्ना आये, अनशन आया, 2014 में नयी सरकार आयी लेकिन लोकपाल नहीं आया। देश को बताया गया कि अब लोकपाल की ज़रूरत नहीं है क्योंकि लोकपाल का बाप यानी चौकीदार आ चुका है। ‘भूतो ना भविष्यवति’ वाला पद है, चौकीदार। चौकीदारी एकदम बिंदास चली ‘मैं ही मैं हूँ, दूजा कोई नहीं’ वाले अंदाज़ में। लेकिन अचानक जब चोर-चोर का शोर उठा तो मालूम हुआ कि चौकीदारी जन-धन योजना में बदल दी गई है। सब्सिडी के डायरेक्ट ट्रांसफ़र की तरह चौकीदारी ट्रांसफ़र की जा रही है। ‘मैं भी चौकीदार’ का स्लोगन रातो-रात ऐसा चला कि ‘मी टू’ से हलाल हुए मंत्रीजी भी बोल पड़े— मैं भी हूँ चौकीदार। मोदीजी जो भी करते हैं, वह मास्टर स्ट्रोक होता है। लेकिन ये वाला तो हेडमास्टर स्ट्रोक है।
ख़बर यह है कि चौकीदारी को ग़रीब जनता में बाँटने के बाद मोदीजी अब लोकपाल लाने की तैयारी कर रहे हैं। तो क्या आनेवाले दिनों में एक और हैशटैग ट्रेंड करेगा- मैं भी लोकपाल।
लोकपाल को फ़िलहाल अलग रखिये। फ़िलहाल सवाल यह है कि आख़िर पाँच साल तक ठाट से चौकीदारी चलाने के बाद अचानक मोदीजी ने इस सबसे सम्मानजनक पद को `सहकारिता आंदोलन’ में क्यों बदल दिया?
सम्मान का ऐसा समान वितरण देखकर लगा कि उमा भारती का मोदीजी को कार्ल मार्क्स कहकर बुलाया जाना वाक़ई सही था। लेकिन दुश्मनों की राय कुछ और है। वे सोशल मीडिया पर एक पुराना चुटकुला बाँटने में लगे हैं, जिसका सार यह है कि ट्रेन में सीट के झगड़े में पिटते एक आदमी ने अपने पूरे परिवार को पिटवा दिया था, जिससे उसकी बेइज्ज़ती बँट जाये। हरिशंकर परसाई ने भी लिखा है— अगर अपनी बेइज्ज़ती में किसी को भागीदार बना लो तो आधी इज्ज़त बच जाती है। राहुल गाँधी ने चौकीदार शब्द को चोर का लगभग समानार्थी बना दिया है।
मोदीजी का हेडमास्टर स्ट्रोक क्यों?
लेकिन मोदीजी का हेडमास्टर स्ट्रोक सिर्फ़ अपमान कम करने के लिए नहीं है। वे हमेशा दूर की कौड़ी खेलते हैं और दाँव सही बैठता है। उन्हें भारतीय मानस को ठीक से पढ़ना आता है। हिंदी फ़िल्मों में कुछ सीन ऐसे होते हैं, जिन्हें अंग्रेज़ी में क्लिशे आइडिया कहते हैं- यानी घिसे-पिटे पुराने फ़ॉर्मूले, लेकिन चलते ख़ूब हैं। जैसे लड़की का ग़रीब बाप अपनी पगड़ी उतारकर लड़के के बाप के कदमों में रख देता है, जैसे- हीरोइन बेवफ़ा आशिक से कहती है, मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ। जैसे चोर चोरी करके भगवान की मूर्ति के पीछे छिप जाता है या फिर माल फेंककर भाग रहा स्मगलर ऐसी भीड़ में शामिल हो जाता है, जहाँ चेहरे एक जैसे दिखाई देते हैं।
- ये क्लिशे आइडिया इस तरह चलते हैं कि घुमा-फिराकर रिपीट होते रहते हैं और दर्शकों की ख़ूब तालियाँ बटोरते हैं। मोदीजी को किसी क्लिशे आइडिया से परहेज नहीं है क्योंकि वे जानते हैं कि भारतीय समाज को यही पसंद है। दरअसल, ये सक्सेस फ़ॉर्मूले भारतीय समाज में सिनेमा के आने से भी बहुत पहले से रहे हैं। माखन चोरी में फँसे कान्हा के जब सारे दाँव विफल हो गये तो उन्होंने मास्टर स्ट्रोक दागा और बोले--
मईया जिया तेरे कछु भेद उपजिहैं
तूने मोहे जानो परायो...
मोदी के विरोधी नेताओं में ममता नहीं?
बेचारी यशोदा क्या करतीं। सौतेले व्यवहार का इल्ज़ाम इतना बड़ा था कि उन्होंने फ़ौरन चार्जशीट वापस ले ली। लेकिन विरोधी नेताओं में मोदीजी के लिए यशोदा जैसी ममता होती तो फिर कहना ही क्या था। वे सबके सब बहुत घामड़ हैं। लेकिन मोदीजी `जिया तेरे कछु भेद उपजिहै’ वाला फॉर्मूला छोड़ नहीं रहे हैं। वे जानते हैं कि विरोधियों पर ना सही वोटर पर यह फ़ॉर्मूला बख़ूबी काम करता है। इसलिए जब सर्जिकल स्ट्राइक में बीजेपी नेताओं की गिनती के बाद यह पूछा जा रहा है कि आँकड़े कहाँ से आये तो मोदीजी एक ही बात कह रहे हैं— सेना पर भरोसा नहीं है क्या?
- पाप चढ़वाना भी ऐसा ही एक फ़ॉर्मूला है, जो हमेशा से शत-प्रतिशत कामयाब रहा है, भले ही आप इसे क्लिशे मानें। राहुल गाँधी ने `चौकीदार चोर है’ का नारा दिया है। पाँच साल चौकीदारी निभाने बाद अब मोदीजी ने रातो-रात सोशल मीडिया पर करोड़ों चौकीदार भर्ती कर दिये हैं। यह चौकीदार कोई और नहीं इस देश की महान जनता है। गाली दोगे तो सीधे जनता को लगेगी और जनता लोकतंत्र में भगवान होती है।
चोर बोलने का इतना पाप चढ़ेगा, इतना पाप चढ़ेगा कि गंगा स्नान करके भी जनेऊधारी पंडित राहुल गाँधी धो नहीं पाएँगे। भलाई इसी में है कि आ जाएँ प्रभु की शरण में, भूल जाएँ राफेल-वाफेल और ठोक दे एक ट्वीट— मैं भी चौकीदार हूँ।
‘मैं भी प्रधानमंत्री’ हैशटैग कौन चलवाएगा?
फ़र्ज़ कीजिये अगर पूरा देश चौकीदार हो गया तो फिर चोर कौन बचेगा? अगर कोई चोर नहीं है तो फिर इसका मतलब रामराज आ गया है। अगर रामराज आ गया है तो फिर चुनाव काहे का? घोषणा हो चुकी है, इसलिए चुनाव अब टल नहीं सकते हैं। अपन को संतोष इस बात का है कि मोदीजी ने इस देश के सभी नाराज़ नेताओं के लिए एक नया रास्ता खोल दिया है। 2019 के बाद जिसे भी मंत्री की कुर्सी ना मिले वो ‘मैं भी मंत्री’ कैंपेन चलवा सकता है। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि चुनाव के बाद ‘मैं भी प्रधानमंत्री’ हैशटैग कौन चलवाता है?
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