मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को क्या अब शिवराज सिंह चौहान कुंठित कर रहे हैं? यह सवाल, मध्य प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिकाओं के साथ आमजन में भी उठ रहा है!
मोदी सरकार में मंत्री रहीं उमा भारती मनमौजी और तुनकमिज़ाज हैं, यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है। वे कब क्या कर बैठें? यह भी जगजाहिर है। अपने इसी स्वभाव और अंदाज के कारण, उमा भारती ने राजनीतिक चौसर पर पाया कम, और गंवाया ज्यादा है।
उमा भारती पिछले दो दिनों से मध्य प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का केन्द्र बनी हुई हैं। उमा भारती ने रविवार को भोपाल में एक शराब की दुकान में घुसकर तोड़फोड़ की थी।
ईंट हाथ में लेकर अनायास दुकान में दाखिल हुईं उमा भारती ने शराब की बोतलों को चकनाचूर कर दिया था। पूर्व केन्द्रीय और पूर्व मुख्यमंत्री के इस आचरण ने सभी को हैरत में डाल दिया था।
दिलचस्प बात यह है कि रविवार की इस अचरज भरी घटना पर अभी तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अथवा उनकी काबीना के सदस्यों की और से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी।
प्रदेश भाजपा ने अलबत्ता इतना कहा, ‘प्रदर्शन पार्टी का नहीं था। उमा जी का निजी आंदोलन था। पत्थर फेंके जाने का घटनाक्रम भी उमा जी, और प्रशासन के बीच का मसला है - लिहाजा पार्टी, कोई प्रतिक्रिया नहीं देगी।’
वास्तव में उमा भारती द्वारा दुकान में पत्थरबाजी, और दंबगई का मसला सीधे कानून से जुड़ा हुआ है। भोपाल कलेक्टर अविनाश लावनिया (वे राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के दामाद हैं) ने भी मीडिया के सामने मसले को लेकर मुंह नहीं खोला है।
भोपाल में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू है, लेकिन पुलिस भी उमा भारती के हाई वोल्टेज वाले इस ड्रामे को लेकर चुप्पी साधे हुए है। कोई मामला या मुकदमा उसने कायम नहीं किया है। पुलिस अधिकारी ऑन रिकार्ड मीडिया से इस मसले पर बात भी नहीं कर रहे हैं।
प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ सख्त एक्शन के लिए कानून बना रखा है। इस कानून के तहत सरकारी अथवा निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों को जेल भेजने से लेकर बड़े जुर्माने तक की सजा का प्रावधान है।
इस ‘उमा पत्थर एपीसोड’ का एक पेंच यह भी है कि तोड़फोड़ और नुकसान का शिकार हुई शराब दुकान के प्रबंधन अथवा मालिक ने अपने तई कोई शिकायत पुलिस को नहीं की है। बावजूद इसके आमजन सवाल उठा रहा है, यदि किसी साधारण आदमी ने उमा भारती की तरह दुकान में पत्थर मारा होता और रिपोर्ट नहीं होती तो कानून को अपने हाथ में लेने वाले को क्या पुलिस बख्श देती?
पूरे मामले पर कांग्रेस भी जमकर चुटकियां ले रही है। उमा भारती के कदम को ‘साहसिक’ बताया जा रहा है। कांग्रेस कह रही है, उमा भारती हैं जिन्होंने भाजपा में कथनी और करनी को एक रखा है। कांग्रेस ने भी उमा भारती की तरह पत्थर फेंकने की ‘आजादी’ देने की मांग प्रदेश के होम मिनिस्टर नरोत्तम मिश्रा से की है!
बहरहाल यह सवाल सोलह आने सही है कि आम आदमी पत्थर फेंककर दुकान में तोड़फोड़ करता तो क्या उसे पुलिस और प्रशासन उमा भारती की तरह ‘बख्श’ देता?
पहला - उमा भारती के शराब और नशा विरोधी आंदोलन को हवा पकड़ने नहीं देना है।
दूसरा - उमा भारती को ज्यादा कुंठित करना है।
तीसरा - आमजन के बीच उनकी छवि को धुंधला बनाना है।
चार - इस हवा को बल देना है कि पॉवरलेस उमा भारती अपना विवेक खोने लगी हैं।
यहां बता दें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा संगठन के लोग काफी वक्त से उमा भारती से किनारा किये हुए हैं। लोकसभा का टिकट नहीं दिया गया। यूपी में चाहकर भी उमा भारती को पार्टी ने तवज्जो नहीं दी।
बताया तो यह भी जा रहा है कि केन्द्र के नेता बार-बार मिलने के लिए समय मांगने पर भी कथित तौर पर उमा भारती को समय नहीं दे रहे हैं। मध्य प्रदेश के कई पॉवर वाले नेताओं का भी उमा को लेकर यही रवैया है।
गंगा किनारे और हिमालय की तराई होते हुए, उमा भारती मध्य प्रदेश में अब ठोर तलाशने की जुगतबाजी में जुटी हुई बताई जा रही हैं।
मध्य प्रदेश में शराब और नशाबंदी के खिलाफ आंदोलन चलाने की घोषणाएं उमा भारती पिछले डेढ़ साल के करीब से कर रही हैं। कई बार उन्होंने तारीखें दीं। साल 2022 में जनवरी की नई तारीख आंदोलन को लेकर उन्होंने दी। फिर उमा की तरफ से 14 फरवरी की डेट आयी। ये दो तारीखें भी पूर्व में दिये गये समय के अनुसार निकल गईं।
तीन दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उमा भारती से मिलने उनके घर पहुंचे थे। दोनों के बीच बंद कमरे में 15-20 मिनट तक गुफ्तगू हुई थी। मुलाकात के बाद चौहान ने ट्वीट करके शराब और नशाबंदी के खिलाफ उमा भारती के आंदोलन को जन आंदोलन बनाने की बात कही थी।
जन आंदोलन खड़ा हो पाता, इसके पहले उमा भारती सड़क पर उतर गईं। एक्शन दिखला दिया। दुकान में पत्थर फेंक शराब की बोतलें चकनाचूर कर दीं।
घटना के बाद सोमवार को उमा भारती ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को पत्र लिख दिया। पत्र में अपने कदम को जस्टिफाई करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा, “शराब के कारण सूबे की बिटियाओं और महिलाओं की दुर्दशा ने उन्हें दुकान में पत्थर फेंकने को मजबूर किया।”
सूबे के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अरूण दीक्षित का कहना है, “पहले नरेंद्र मोदी और उनकी टीम ने उमा भारती को बहुत तरीके से साइड लाइन किया। सक्रिय राजनीति से बाहर कर दिया।”
दीक्षित आगे कहते हैं, “अब उमा भारती जब शराब और नशाबंदी आंदोलन के माध्यम से मध्य प्रदेश की अपनी राजनीतिक जमीन की वापसी के लिए सक्रियता दिखला रही हैं तो शिवराज सिंह ने बहुत धीरे से उन्हें जोर का झटका दे दिया है।”
अरूण दीक्षित का यह भी कहना है, “केन्द्र एवं मध्य प्रदेश के पुराने नेताओं की कथित बेरूख़ी/दूरी ने उमा भारती को बेचैन और बावला कर दिया है।”
अंत में, अरूण दीक्षित ने मुद्दे की बात रखते हुए कहा, “शराब की दुकान में पत्थर फेंककर उमा भारती ने जतला दिया है कि उनका दुश्मन कोई और नहीं, स्वयं वे (उमा भारती) ही हैं।”
कोई भी राज्य हो, शराब बंदी उसके लिए आसान नहीं है। गुजरात, बिहार समेत कुछ राज्यों ने यह कदम उठाया है, लेकिन भारी आर्थिक नुकसान का सामना ऐसे सूबों को करना पड़ रहा है।
आर्थिक नुकसान के अलावा शराब की तस्करी, अवैध बिक्री और मिलावटी शराब की शिकायतें भी आम हैं। बिहार और शराबबंदी वाले अन्य राज्यों में जहरीली शराब से मौतों के मामले भी लगातार हो रहे हैं।
शिवराज सरकार, मध्य प्रदेश के शराब मॉफिया की कमर तोड़ने में जुटी हुई है। इस धंधे पर बरसों से कब्जा जमाए बैठी ताकतवर लॉबी को छिन्न-भिन्न करने की कोशिश सरकार कर रही है।
नई शराब नीति में मॉफिया और शराब लॉबी को किनारे लगाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम मध्य प्रदेश सरकार ने उठाये हैं। आने वाली एक अप्रैल से खालिस, और कम कीमतों पर शराब बेचने का एलान सरकार ने किया हुआ है।
तमाम रणनीति जोर पकड़ पाने के पहले ही उमा भारती का शराब विरोधी आंदोलन, सरकार की मंशा को चोट पहुंचाते हुए माफिया और धंधे पर कब्जा जमाये रखने को आतुर लॉबी को मजबूती प्रदान करने वाला माना जा रहा है!
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