जिस बात पर बीजेपी प्रवक्ता और संघ परिवार के लोग अचानक जोर देने लग़े हैं वह है पिछली यूपीए सरकारों द्वारा जारी ऑयल बॉन्ड की देनदारियाँ। और इस बात को आज ऐसे अन्दाज में बताया जा रहा है कि सरकार इन देनदारियों को सम्भालते सम्भालते परेशान है।
शेयर बाज़ार के खिलाड़ियों के लिए बुधवार का दिन भारी हंगामे से भरा रहा। सुबह से ही देश के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज एनएसई में गड़बड़ी की शिकायतें शुरू हुईं और 11.40 पर वहाँ कारोबार ही बंद हो गया।
पश्चिम बंगाल सरकार ने पेट्रोल पर लगने वाले मूल्य संवर्द्धित कर यानी वीएटी में एक रुपए की कमी कर दी है। ऐसा करने वाला यह चौथा राज्य बन गया है। इसके पहले असम, राजस्थान और मेघालय में भी इस तरह की कटौती की गई है।
देश भर के कई शहरों में 100 रुपये तक जा पहुंची पेट्रोल की क़ीमतों को लेकर मचे शोर के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सामने आए और उन्होंने सरकार का बचाव किया।
देश की 70 प्रतिशत आबादी के खेती-किसानी पर निर्भर रहने के बावजूद क्यों कोई सरकार उनकी मूलभूत समस्याओं का समाधान खोजने में गहरी दिलचस्पी नहीं लेती है या अब तक समाधान ढूंढ नहीं पायी है।
प्याज और सब्जी के आकाश छूते दाम, नए साल में 16 बार पेट्रोल - डीज़ल के भाव बढ़ गए, लेकिन इसकी चर्चा न संसद में है न ही अपने आप को मुख्यधारा का कहने वाले तथाकथित मीडिया के स्टूडियो में।
चारों तरफ धूम मची है कि वित्त मंत्री ने हिम्मत दिखाई, पॉपुलिस्ट या लोक लुभावन एलान करने के बजाय बड़े सुधारों पर ज़ोर दिया। आगे चलकर इससे आर्थिक तरक्क़ी रफ़्तार पकड़ेगी और तब नौजवानों को रोज़गार भी मिलेंगे और बाकी देश को फ़ायदे भी।
सरकार का मानना है कि अम्बानी (याने कॉरपोरेट घरानों) पर टैक्स लगाकर उस पैसे से ग़रीबों की स्थिति बेहतर करने की जगह सरकार को विकास के पहले दौर में ग़रीबों की निरपेक्ष ग़रीबी जैसे मौलिक सुविधाओं का अभाव ख़त्म करना होगा। उसके अनुसार सापेक्ष गरीबी (जो शुद्ध रूप से असामनता-जनित होती है) तो अमेरिका में भी है।
बजट पेश किए जाने के बाद पहली बार भारत के रिज़र्व बैंक ने सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर का अनुमान व्यक्त किया है। इसने कहा है कि 2021-22 में जीडीपी 10.5 फ़ीसदी रहने का अनुमान है।
‘शताब्दी में ख़ास बजट’ कहकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने जो वित्त विधेयक पेश किया उसमें किसी क़िस्म के ग़रीब समर्थक, किसान समर्थक, महिला समर्थक और गांव समर्थक दिखावे की भी ज़रूरत नहीं दिखी। आख़िर क्या था बजट में।
तीन राज्य सरकारों ने बजट 2021 में लगाए गए कृषि अधिभार (एग्रीकल्चरल सेस) का विरोध करते हुए इसे संघीय ढाँचे के ख़िलाफ़ बताया है और कहा है कि इससे केंद्र-राज्य रिश्तों पर बुरा असर पड़ेगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने कुछ सरकारी कंपनियों के निजीकरण करने के प्रस्ताव का ज़ोरदार शब्दों में विरोध किया है। उसने कहा है कि इन कंपनियों के कामकाज को सुधारने की ज़रूरत है न कि उन्हें बेच देने की।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में जो बजट पेश किया है, वह दिशाहीन और अवास्तविक है, हालांकि यह दावा किया गया है कि यह भारत को आत्मनिर्भर बना देगा।
बजट के बाद तो शेयर बाज़ार ने दो हज़ार पाइंट से ऊपर की जोरदार छलांग लगाई। इसकी क्या वजह हो सकती है? वजह एक नहीं अनेक हैं। सबसे बड़ी वजह तो है कि सरकार एक बड़ी सेल की तैयारी कर रही है।