अमित शाह ने 300 सीटों से ज़्यादा जीतने का दावा किया है। लेकिन पहले के चुनावों के आँकड़े तो तसवीर कुछ अलग ही पेश करते हैं। ये आँकड़े अमित शाह के दावे के विपरीत कहानी कहते हैं।
जब ममता बनर्जी ने कहा कि प्रधानमंत्री हमारे बारे में जिस तरह की बातें करते हैं कि मैं उनको लोकतंत्र का झन्नाटेदार थप्पड़ मारना चाहती हूँ तो मोदी ने उसे दीदी का थप्पड़ क्यों बना दिया?
अख़बार ‘ल मोंद’ में हुआ रहस्योद्घाटन नरेंद्र मोदी की छवि को धूल-धूसरित कर रहा है। इसके बाद राहुल गाँधी ने रफ़ाल सौदे में गड़बड़ी को लेकर मोदी पर हमला तेज़ कर दिया है।
यूपी, बिहार की सामाजिक न्याय की लड़ाई कुनबे की लड़ाई में तब्दील हो गई है। नेता वंचित तबके़ को एकजुट करने में नहीं बल्कि जातीय गोटियाँ बैठाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी परिवारवाद, वंशवाद को लेकर कांग्रेस पर लगातार हमला बोलते रहे हैं। लेकिन यह जानना ज़रूरी है कि बीजेपी ख़ुद इस मामले में कितनी दूध की धुली है।
समझौता एक्सप्रेस बम कांड में असीमानंद के ख़िलाफ़ सबसे बड़ा सबूत उनका 42 पेज का क़बूलनामा था। उनके वकीलों ने बाद में उनसे कहा भी कि आपके इस क़बूलनामे के बाद हम भी आपको नहीं बचा पाएँगे। लेकिन वह बच गये।
अमित शाह राज्य सभा के सदस्य हैं तो फिर वह लोकसभा का चुनाव क्यों लड़ रहे हैं? क्या शाह ने ख़ुद को भविष्य के प्रधानमंत्री के तौर पर देखना शुरू कर दिया है?
कांग्रेस अध्यक्ष ने सही समय पर हस्तक्षेप कर बीजेपी के सर्जिकल स्ट्राइक से पार्टी को बचा लिया और जितिन प्रसाद ने पार्टी नहीं छोड़ी, पर जितिन अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर दुविधा में हैं।
मोदी 2014 के चुनावों के महानायक बने। लोगों को उम्मीद थी कि वह भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए ठोस क़दम उठाएँगे। 2014 में लोकपाल की नियुक्ति भी बड़ा मुद्दा थी।
अन्ना आंदोलन के दौरान बने नारे की तर्ज पर बीजेपी ने ‘मैं भी चौकीदार’ नारा तो बना लिया, लेकिन देखना होगा कि क्या यह नारा लोगों को लोकसभा चुनाव में लुभा पाएगा।