देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में क़रीब दो दशक बाद ग़ैर-गांधी परिवार का कोई नेता अध्यक्ष रूप में मिला है। वर्तमान राजनैतिक माहौल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए सफलतापूर्वक हुआ चुनाव देश की अन्य पार्टियों के लिए एक उदाहरण है। कांग्रेस अध्यक्ष के लिए हुए चुनाव में खड़गे ने शशि थरूर को 6825 मतों से हराया है। लेकिन कांग्रेस आज जिस मोड़ पर खड़ी है, नए निर्वाचित अध्यक्ष के लिए आने वाले समय में चुनौतियों का अंबार खड़ा है।
उनके सामने प्रमुख रूप से 2022-2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के अलावा, 2024 लोकसभा चुनाव और पार्टी में जारी टूट जैसी चुनौतियाँ भी हैं। एक तरफ़ पार्टी को मज़बूत करना है और दूसरी तरफ़ मोदी-शाह जैसे तेज तर्रार सेनापति से लैश मज़बूत संगठन वाली भाजपा को चुनौतीपूर्ण टक्कर देना।
1. पार्टी और संगठन को मजबूत करना
वर्तमान हालात में कांग्रेस जिस मोड़ पर खड़ी है, अध्यक्ष रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे की सबसे बड़ी जिम्मेदारी पार्टी और संगठन को मज़बूत करना है। चुनावी समर में मिलती लगातार हार और गुटबाजी के कारण पार्टी से एक से एक बड़े नेता छोड़ कर जा चुके हैं या जाने वाले हैं। इस सिलसिले को रोकना उनकी पहली प्राथमिकता होगी। जमीनी स्तर पर कांग्रेस संगठन के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल पैदा करने के लिए कुछ ऐसे क़दम उठाने होंगे, जिससे कार्यकर्ताओं में भविष्य को लेकर कोई उम्मीद जगे।
2. गुजरात, हिमाचल में जीत दिलाना
अध्यक्ष के रूप में दूसरी बड़ी चुनौती खड़गे के लिए गुजरात और हिमाचल प्रदेश में पार्टी को आगामी विधानसभा में चुनाव जितवाना है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस को पूरे 51 वर्ष बाद कोई दलित नेता पार्टी अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी संभाल रहा है। चूँकि गुजरात, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में दलित मतदाता चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे से उक्त सभी चुनावों में अपेक्षाएँ ज़्यादा होंगी। गुजरात में 24 साल से बीजेपी की सरकार है, तो वहीं हिमाचल में भी बीजेपी का कब्जा है। दोनों राज्यों में भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस को आम आदमी पार्टी का भी सामना करना होगा। जिस प्रकार से अरविंद केजरीवाल गुजरात में सक्रिय हैं ये कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बन चुका है।
3.जमीनी, जनाधारवाले नेताओं को हक दिलाना
4. दलितों को पार्टी के साथ जोड़ना
खड़गे दक्षिण भारत के एक बड़े दलित नेता हैं और गांधी परिवार से नजदीकियों की वजह से राष्ट्रीय राजनीति में भी उन्हें अलग पहचान मिली है।
ऐसे में अगर मल्लिकार्जुन खड़गे अब कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं तो उनकी पूरी कोशिश होगी कि उत्तर भारत में, खासकर, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से रूठे दलित वाटों की वापसी करवाई जाए। आज़ादी के बाद कई सालों तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही, दलित वोट का भी बड़ा हिस्सा पार्टी के खाते में गया। लेकिन फिर राजनीति ने करवट ली, जमीन पर समीकरण बदले और काँशीराम, मुलायम, मायावती जैसे नेताओं ने यूपी की सियासत में अपनी पकड़ मज़बूत की। और दलित वोटबैंक पर मायावती का दबदबा बन गया।
5.गांधी परिवार से बेहतर ताल-मेल कायम रखना
मलिकार्जुन खड़गे उन नेताओं में से हैं जिन्हें दस जनपथ का ‘आशीर्वाद’ प्राप्त है और ऐसा माना जा रहा है कि उनके अध्यक्ष बनने में गांधी परिवार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन था। नामांकन के दौरान भी कांग्रेस और गांधी परिवार के क़रीबी अधिकांश नेता खड़गे के समर्थन में खुलकर सामने आए। पर अध्यक्ष बनने के बाद खड़गे के लिए सबसे बड़ी चुनौती गांधी परिवार, परिवार के वफादार सिपाहियों और संगठन के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करना। मनमोहन सिंह की तरह रबर स्टांप वाले इमेज से अपने आप को उन्हें बचाना होगा। गांधी परिवार भी रबर स्टांप वाले नैरेटिव से बचना चाहेगा और इसी का परिणाम है कि सोनिया और प्रियंका गांधी चुनाव जीतने के बाद खड़गे के आवास पर जाकर शुभकामनाएँ दीं।
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