नरेंद्र मोदी का राजनीतिक सफ़र ‘आपदा को अवसर’ में बदलने की उनकी कुशलता का सबूत है। 17 सितम्बर 1950 को गुजरात के वडनगर में जन्मे मोदी की राजनीति पर विजय त्रिवेदी का आकलन।
सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी या फिर प्रियंका गाँधी के अध्यक्ष होने में भी किसी दूसरे को क्या परेशानी हो सकती है। लेकिन कांग्रेस को क्या दिक्कत है कि वह इसके बाहर के नेता पर विचार नहीं कर रही है?
कांग्रेस का अंदरूनी संकट ख़त्म नहीं हो रहा है। सोनिया गाँधी को पूरा एक साल हो गया है अंतरिम अध्यक्ष बने हुए। राहुल गाँधी फिर से ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं तो क्यों नहीं नया नेता चुना जाए?
अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन को लेकर तैयारियाँ ज़ोरों पर हैं। बाबरी ढाँचा विश्वंस पर भी जल्द ही फ़ैसला आने वाला है। विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार से ख़ास इंटरव्यू।
राजस्थान के बहाने कांग्रेस की लड़ाई सड़क से लेकर अदालत तक पहुँच गई है और लगता है कि राजनेताओं ने आचार-व्यवहार की भी सभी सीमाएँ लाँघ दी हैं। कल तक एक-दूसरे के साथ गले मिलने वाले लोग अब एक-दूसरे का गला काटने पर उतारू हो गए हैं।
25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगी थी उससे पहले इंदिरा गाँधी के ख़िलाफ़ न्यायपालिका में केस चल रहा था। कैसा रहा था इंदिरा, इमरजेंसी और न्यायपालिका का वह दौर।
स्वतंत्रता के पहले और बाद भी रामलीला मैदान रैली और राजनीति के लिए जाना जाता है। वामपंथियों से लेकर जनसंघ और बीजेपी तक के कार्यक्रम इस मैदान पर हुए हैं।
राज नारायण बनाम इंदिरा गाँधी मामला हिन्दुस्तान का एक ऐसा मामला था जिसने देश की राजनीति को बदल कर रख दिया। इस मामले में फ़ैसला सुनाया था जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने।
बीजेपी ने ‘रिंकिया के पापा’ को आउट कर दिया। अम्पायर बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी को ‘आउट’ क़रार दिया है और उनकी जगह अब आदेश गुप्ता ‘बैटिंग’ करेंगे।
सुपर हिट फ़िल्म ‘हेराफेरी’ की याद मुझे आज 68 दिनों के लॉकडाउन खुलने के बाद हुए अनलॉक के पहले दिन आ रही है। देश भर में कुल मिलाकर हर जगह फ़िल्म ‘हेराफेरी’ जैसा सीन महसूस किया जा सकता है।
कहा जाता है कि समुद्र में जब ज्वार आता है तब ही मछलियाँ पकड़ी जाती हैं यानी संकट ही अवसर का बेहतर वक़्त होता है। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने माना कि यह संकट का समय है, लेकिन इसमें जीतना है।
बीजेपी में एक लंबा सफ़र तय करने वाले नड्डा अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। लेकिन क्या वह बीजेपी को अमित शाह की छाया से बाहर निकाल पायेंगे?
आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद ज़्यादातर बार सत्ता परिवर्तन में छात्र आंदोलनों की अहम भूमिका रही है। छात्र आंदोलनों की ताक़त को कमतर समझना हमेशा ही नुक़सान का सौदा रहा है।
2019 में केंद्र में बीजेपी की फिर से सरकार बनी तो कई राज्यों के चुनाव में उसे झटके भी लगे हैं। उसे ध्यान रखना होगा कि जनता से किये वादों को पूरा करना बेहद ज़रूरी है।
बीजेपी झारखंड का चुनाव क्या इस वजह से हार गई कि मुख्यमंत्री रघुबर दास की कार्यशैली तानाशाहों जैसी थी या इस वजह से कि केंद्रीय नेतृत्व जल-ज़मीन-जंगल के मुद्दे नहीं उठा पाई?