देश में संस्थाएँ क्या अपना ठीक से काम कर रही हैं? क्या रोजगार पर या विदेश मामले में स्पष्ट नीति है? चुनाव आयोग से लेकर क़ानून लागू करने वाली एजेंसियाँ तक अपना दायित्व निभा रही हैं?
ग्रीक दार्शनिक अरस्तू ने कहा था कि “एक व्यक्ति का शासन होने से अच्छा है कि कानून का शासन हो, क्योंकि ऐसा होने से कानून के संरक्षक को भी कानून का पालन करना पड़ता है”।
भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में संसद में इतिहास के जरिए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर जो टिप्पणियां कीं, उसी बहस को इस लेख में आगे बढ़ाया गया है।
विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी जब संसद में सरकार के मंसूबे पर सवाल उठा रहे थे तो सत्ता पक्ष की तीखी प्रतिक्रिया क्या दिखाती है? राहुल ने जो सवाल उठाए क्या वे सरकार को परेशान करने वाले नहीं हैं?
बिहार में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों ने रेलवे एनटीपीसी की परीक्षा में गड़बड़ी को लेकर प्रदर्शन किए। लेकिन क्या ऐसे छात्रों के लिए प्रदर्शन या आंदोलन करना इतना आसान है?
‘ब्रह्मकुमारीज’ के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने क्या नागरिक अधिकारों को कम करने या ख़त्म करने का संकेत दिया है? उन्होंने क्यों कहा कि 75 साल हम सिर्फ़ अधिकारों की बात कर अपना समय बर्बाद करते रहे?
2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक के बाद एक वादे करते रहे, लेकिन क्या उनमें से कोई पूरा हुआ? क्या उन्होंने पूरे कार्यकाल अपने 'मन की बात' ही की?
“अपने सीएम चन्नी को धन्यवाद कहना कि मैं ज़िंदा लौट आया: प्रधानमंत्री”। यदि यह कटाक्ष था तो क्या प्रधानमंत्री के पद की गरिमा के अनुसार था? यदि यह सीधे तौर पर धन्यवाद था तो फिर उन्हें किससे ख़तरा था?
धर्म संसद जैसे आयोजनों में खुलेआम हत्या और नरसंहार के लिए प्रोत्साहित क्यों कर रहे हैं। क्यों ऐसे लोग महात्मा गांधी को गालियाँ दे रहे हैं और उनके हत्यारे गोडसे की तारीफ़ कर रहे हैं?
हरिद्वार में 'धर्म संसद' में नफरत वाले भाषण क्यों दिये गए? क्या 'धर्म संसद' की भाषा भारत में बड़े बदलाव की कहानी कह रही है? आख़िर देश में क्या चल रहा है?
कांग्रेस विधायक केआर रमेश कुमार के दुष्कर्म पर दिए गए आपत्तिजनक बयान क्या पुरुषवादी सोच का नतीजा नहीं है? जहाँ पुलिस, प्रशासन, विधायिका और न्यायपालिका में सिर्फ़ पुरुष भरे होंगे वहाँ ऐसी घटनाओं को रोकना क्या आसान होगा?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने महिलाओं के लिए जो घोषणापत्र जारी किया है उसका आख़िर क्या मायने है? क्या इसे सिर्फ़ कांग्रेस का आखिरी दांव कहकर खारिज किया जा सकता है?
तीन कृषि क़ानून अच्छे थे या बुरे, किसानों के भले के लिए थे या उद्योगपतियों के भले के लिए, सरकार की मंशा अच्छी थी या शोषणकारी इसका जवाब जानने के लिए संसद के माध्यम से ‘चर्चा का प्रावधान’ है। लेकिन क्या चर्चा हुई?
आज़ादी के बाद से भारत कितना बदला? क्या ग़रीबी दूर हुई? क्या असमानता मिटी? ‘वैश्विक भूख सूचकांक’ 2021 में भारत 101वें स्थान पर क्यों है? और दूसरे सूचकांक भी क्या दर्शाते हैं?
1947 की आज़ादी को 'भीख में मिली आज़ादी' बताना ऐसे है जैसे पृथ्वी पर जीवित व्यक्ति वायु के अस्तित्व को खारिज कर दे, लेकिन क्या इसके लिए कंगना की गरिमा को चोटिल करना जायज है? क्या एक महिला का इस तरह अपमान किसी भी रूप में सही है?
एक धोती और लाठी के साथ पूरी ज़िंदगी चलने वाले महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम के पनरुद्धार के लिए सरकार ने 1200 करोड़ रुपये क्यों आवंटित किए हैं? क्या इससे गांधी जी वाली सादगी बची रह जाएगी?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जब सिर्फ़ छह महीने बचे हैं तो योगी सरकार ने मंत्रिमंडल में फेरबदल क्यों किया? वह भी तब जब योगी सरकार साढ़े चार साल की कथित उपलब्धियाँ गिना रही है?
प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल की नयी पुस्तक ‘कौन हैं भारत माता?’ पर विस्तार से चर्चा हुई। उन्होंने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सम्बंध में मिथकों को तोड़ने, सत्य को उभारने और प्रकाश को सही जगह डालने की भरपूर कोशिश की है।