महाराष्ट्र में सरकार के गठन को लेकर जारी घमासान अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचने वाला है। सरकार गठन की अंतिम तारीख़ 9 नवंबर है लेकिन अब तक बीजेपी-शिवसेना में पटरी ही नहीं बैठ रही है।
महाराष्ट्र में पिछले दो सप्ताह से नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि प्रदेश के मराठवाड़ा क्षेत्र में पिछले चार दिनों के दौरान 10 किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आए हैं।
क्या महाराष्ट्र में सत्ता स्थापित करने का विकल्प तैयार हो रहा है? शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत की राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार के साथ हुई बैठक के बाद अब क्या होगा?
महाराष्ट्र में वंचित बहुजन अघाडी के अलग चुनाव लड़ने का 25 सीटों पर सीधा नुक़सान कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को हुआ है। ये सभी 25 सीटें बीजेपी-शिवसेना के खाते में चली गईं।
महाराष्ट्र में 50-50 फ़ॉर्मूला कैसा होगा? मुख्यमंत्री कौन बनेगा? उप-मुख्यमंत्री पद होगा या नहीं? क्या उद्धव ठाकरे सत्ता का रिमोट शिवसेना के पास रखने की फिराक में हैं?
शरद पवार को 6 को 60 बनाने का हुनर आता है! इस बार जब विधानसभा चुनाव से पहले एक-एक कर सभी पुराने साथी पार्टी छोड़कर जाने लगे तो शरद पवार यह बात सभाओं में दोहराने लगे थे।
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक बात स्पष्ट कर दी है कि देश की जनता का जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने को लेकर क्या रुख है।
महाराष्ट्र के 16 हज़ार से ज्यादा किसानों ने भले ही आत्महत्या कर ली हो, पिछले भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के मंत्रियों के पिछले पांच साल बहुत मजे के रहे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र में चुनाव रैलियों में जिस तरह सावरकर का नाम लिया और विपक्ष पर निशाना साधा, सवाल उठता है कि क्या बीजेपी सावरकर के बहाने वोटों का ध्रुवीकरण कर रही है?
पीएमसी बैंक के संचालकों के डिफ़ॉल्टर होने का प्रभाव सीधे जनता पर पड़ रहा है और यह जानलेवा बन गया है। इसे आर्थिक मंदी से जोड़कर सरकारें अपना पीछा नहीं छुड़ा सकतीं।
एक बार फिर सावरकर को भारत रत्न देने की बात उठी है और वह भी चुनावी मौसम में। इस बार यह बात भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र में छापकर चर्चा में लायी गयी है।
चुनावों के लिए जो मुद्दे गढ़े जा रहे हैं उनसे जनता का कोई सरोकार है या नहीं? या वे जनता को उनके मूलभूत मुद्दों से भटकाकर उन्हें भावनात्मक स्थिति में ले जाने वाले हैं।
मोदी सरकार 1.0 में सबसे ज़्यादा किसी मंत्रालय के काम को सराहा गया था तो वह था नितिन गडकरी का जहाजरानी और भू-तल परिवहन मंत्रालय। लेकिन वही नितिन गडकरी महाराष्ट्र चुनाव में कहीं दिख क्यों नहीं रहे हैं?