आज का दौर है यहाँ सत्ता की कुर्सी पर बैठने वाले नेताओं और सत्ता के गलियारों में फलने-फूलने वाले दलालों की डायरियों का। ये डायरियाँ आज कई भ्रष्टाचार के राज खोलती हैं।
क्या उत्तर प्रदेश के चक्कर में कांग्रेस महाराष्ट्र को भूल गई है? जबकि राहुल गाँधी महाराष्ट्र की राजनीति पर ध्यान देकर उत्तर प्रदेश से ज़्यादा फल हासिल कर सकते हैं।
अन्ना आंदोलन के दौरान बने नारे की तर्ज पर बीजेपी ने ‘मैं भी चौकीदार’ नारा तो बना लिया, लेकिन देखना होगा कि क्या यह नारा लोगों को लोकसभा चुनाव में लुभा पाएगा।
पिछले चुनाव में बनारस जाकर नरेन्द्र मोदी का यह कहना कि मुझे गंगा माँ ने बुलाया है! अब प्रियंका पूर्वांचल की गंगा यात्रा करेंगी। इंदिरा गाँधी ने 1978 में पूर्वांचल से वापसी की थी तो क्या प्रियंका भी वैसा ही कमाल कर पाएँगी?
2014 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कई वादे किए थे। सरकार को लगभग 5 साल पूरे हो चुके हैं, ऐसे में यह जवाब माँगा जा रहा है कि उन वादों का क्या हुआ।
मुंबई में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस वाला पुल गुरुवार को टूट गया और छह लोग मारे गये। हादसा-दर-हादसा, वही रिपोर्ट और वही जाँच के आदेश। परिणाम कुछ नहीं।
महाराष्ट्र के सियासी परिवारों में सत्ता का संघर्ष होता रहा है। ठाकरे और भोसले राजघराने के बाद अब शरद पवार के परिवार में सत्ता को लेकर कलह शुरू हो गई है।
क्या बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बाद भी पार्टी के शीर्ष नेताओं में अभी भी कोई कसक या गाँठ रह गयी है? एक दिन पहले ‘सामना’ में छपे संपादकीय को पढ़कर तो ऐसा ही लगता है।
विधानसभा में भाजपा के साथ मिलकर इन दलों ने शिवसेना को पटकनी देने में मदद की थी, लेकिन आज बीजेपी को शिवसेना का साथ मिलने पर ये सहयोगी दल बेगानों जैसे हो गये हैं।
आचार संहिता लागू हो गई है लेकिन महाराष्ट्र में गठबंधन और सीटों के बंटवारे का खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ है। आकलन लगाया जा सकता है कि इस बार मुक़ाबला त्रिकोणीय होने वाला है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े नेता और प्रधानमंत्री के संभावित दावेदारों में से एक समझे जाने वाले शरद पवार ने घोषणा की है कि वह अगला लोकसभा चुनाव नही लड़ेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने आंगनबाड़ी पोषण आहार की ख़रीद के लिए निकाले गए टेंडर्स को रद्द कर दिया है। इससे बीजेपी सरकार में मंत्री पंकजा मुंडे की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई और महाराष्ट्र,, कभी समाजवादी नेताओं और श्रमिक आन्दोलनों का केंद्र हुआ करते थे, लेकिन आज राजनीति का रंग बदलकर कुछ और हो चुका है।
कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन में मनसे के भी शामिल होने की चर्चा थी। लेकिन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने कहा है कांग्रेस को मनसे का साथ पसंद नहीं है।
अहम सवाल यह है कि शिव सैनिकों में बीजेपी की केंद्र और राज्य सरकार के ख़िलाफ़ साढ़े चार साल तक जो गु़स्सा था, शिवसेना प्रमुख कुछ घंटों के भाषण से उसे कैसे शांत कर पाएँगे?