उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के संघर्ष से लगभग बाहर दिख रही बसपा अचानक बड़ी खिलाड़ी बनकर उभरी है। ऐसा कैसे हो गया वह भी तब जब हाल में मोदी और योगी के बीच कुछ खटपट होने की ख़बरें आई हैं?
2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अगर बंगाल चुनाव क्वार्टर फाइनल था तो यूपी चुनाव सेमीफाइनल है। बंगाल की हार के बाद बीजेपी जाहिर तौर पर यूपी को किसी भी कीमत पर जीतना चाहेगी।
यूपी विधानसभा चुनाव में बमुश्किल 6 माह का वक़्त बाक़ी है। सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले सपा और बसपा जैसे दल इन दिनों ब्राह्मणों को जोड़ने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। क्या इससे उन्हें फ़ायदा होगा?
यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी ने 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया है। हालाँकि, ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का यहाँ कोई विशेष जनाधार नहीं है।
बीजेपी और आरएसएस के लिए यूपी चुनाव ज़्यादा बड़ा मसला है। बीजेपी और संघ यूपी को किसी भी क़ीमत पर नहीं गँवाना चाहते। दक्षिणपंथी राजनीति के लिए यूपी का चुनाव कई लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली स्पेशल बेंच ने मोदी सरकार को फटकारते हुए वैक्सीन नीति का पूरा हिसाब किताब देने का आदेश दिया था। इसका ही नतीजा है कि सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया।
आज के हिंदुस्तान का मुसलमान धर्मांध, कट्टर, सांप्रदायिक, देशद्रोही और यहाँ तक कि आतंकवादी तक क़रार दिया जाता है। उन्हें क्यों नहीं दिखते कोरोना बदहाली के बीच ऑक्सीजन सिलेंडर पहुँचाते हुए मुसलमान।
पिछले 4 साल से एक-दूसरे को शह देते आ रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के 'युद्ध का मैदान' अब यूपी विधानसभा चुनाव बनने जा रहा है। क्या उनका जादू चलेगा?
राम जन्मभूमि आंदोलन और हिंदुत्व की पहली प्रयोगशाला यूपी में बीजेपी को हार का डर क्यों सता रहा है? पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में विपक्षियों का सूपड़ा साफ करने वाली बीजेपी इतनी बेचैन क्यों है?
क्या आरएसएस का सेवा कार्य विशुद्ध रूप से राजनीतिक है, लोक कल्याण नहीं? क्या लोक कल्याण आरएसएस का सिर्फ़ मुखौटा है? कोरोना काल में आरएसएस का कौन सा मुखौटा दिखा है?
बाबा रामदेव अपने बयानों को लेकर आजकल फिर सुर्खियों में हैं। कोरोना महामारी में हो रही मौतों के लिए एलोपैथ और डॉक्टरों को जिम्मेदार ठहराने वाले बाबा की जुबान थमने का नाम नहीं ले रही है।
जब दिल्ली, लखनऊ से लेकर मुंबई, अहमदाबाद तक कोरोना से हाहाकार मचा हुआ था, अस्पतालों में बिस्तर नहीं थे, वेंटीलेटर और ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध नहीं हो रहे थे तब आरएसएस स्वयंसेवक कहाँ थे?
किसान आंदोलन के 6 माह पूरे हो गए हैं और मोदी की सत्ता के सात साल। अभी मोदी के पास भी समय है और किसानों के पास भी। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता पहले ही आंदोलन को तीन साल तक चलाने की बात कह चुके हैं।
जहां एक ओर पूरे देश में कोरोना महामारी से हाहाकार मचा हुआ है, वहीं दूसरी ओर बीजेपी फरवरी-मार्च 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुटी है।
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के जस्टिस मदान ने एक घर से कथित तौर पर भागे हुए जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने से इनकार करते हुए लिव इन रिलेशनशिप को सामाजिक और नैतिक रूप से ग़लत कहा है।
नोटबंदी में पंक्तिबद्ध लोगों की मौतें से लेकर पिछले साल कोरोना के समय अविवेकपूर्ण लॉकडाउन में सैकड़ों मज़दूरों की मौत, कोरोना महामारी की दूसरी लहर में ऑक्सीजन, दवाइयों आदि के अभाव में हजारों लोगों की जान चली गई।
यूपी में पंचायत चुनाव बीत चुके हैं। चुनाव का हलाहल गंगा में तैरती लाशों के रूप में प्रकट हो रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसे परिवारों को एक करोड़ रुपए मुआवजा देने का सरकार को निर्देश दिया है। क्या योगी इससे परेशान दिख रहे हैं?
यूपी में पंचायत चुनाव शुरू हो चुके हैं। 75 ज़िलों की 58194 ग्राम पंचायतों के लिए चार चरणों में वार्ड सदस्य से लेकर प्रधान, बीडीसी और ज़िला पंचायत सदस्यों के चुनाव होंगे। परिणाम 2 मई को आएँगे।
क्या कृषि क़ानून केवल कारपोरेट घरानों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए हैं? क्या इसका कोई वैचारिक आधार भी हो सकता है? क्या मोदी सरकार की कारपोरेटपरस्त आर्थिक नीति के पीछे कोई समाजनीति भी है?
4 फरवरी 2021 को ऐतिहासिक चौरी चौरा घटना के शताब्दी वर्ष समारोह का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। प्रधानमंत्री ने चौरी चौरा के शहीदों को याद करते हुए, इतिहास में उनकी अवहेलना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
मोदी समर्थक बॉलीवुड और क्रिकेट के स्टारों ने भी विदेशी हस्तियों द्वारा किसान आंदोलन के समर्थन को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करार देते हुए उनकी आलोचना की है।