डॉ. मुकेश कुमार की पुस्तक ‘मीडिया का मायाजाल’ मीडिया विषयक चार दर्जन लेखों का संग्रह है जिसमें बीते चार-पाँच साल में मीडिया के स्वभाव में आए परिवर्तन चिंता के साथ व्यक्त हुए हैं।
पेट्रोल-डीजल-गैस के बेलगाम बढ़ते दाम का असर लोगों की जेब पर पड़ने लगा है और आने वाले दिनों में जेब का सुराख और बड़ा होता चला जाएगा। क्या मोदी सरकार महंगाई से जनता में उभरते जनाक्रोश को देख नहीं पा रही है?
72 बार देश को ‘मन की बात’ बता चुके हैं पीएम मोदी। मन की बात देखने वाले दर्शकों की संख्या में आश्चर्यजनक तरीक़े से कमी आती गयी है। अब इस कार्यक्रम को नापसंद करने वालों की तादाद हर उस प्लेटफ़ॉर्म पर बढ़ती चली गयी है जहाँ इसका स्ट्रीम लाइन प्रसारण होता है।
गुजरात के अहमदाबाद में भारत और इंग्लैंड के बीच क्रिकेट मैच हुआ। मैच शुरू होने से पहले जो घटनाएं घटीं, वह भविष्य में याद की जाती रहेंगी लेकिन नकारात्मक उल्लेख के साथ।
दसवें दौर की बैठक महत्वपूर्ण तो है लेकिन इस चिंताजनक सवाल के साये में भी है कि क्या भारत ने पैंगौंग के दक्षिण में अपनी उस मजबूत पोजिशन को छोड़ दिया है जिसे पिछले साल अगस्त के महीने में सैनिकों ने बहादुरी से हासिल किया था?
सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर जैसी हस्तियों की ट्वीट की जाँच का फ़ैसला लेकर महाराष्ट्र सरकार और इसमें शामिल तमाम पार्टियाँ सवालों के घेरे में आ गयी हैं।
क्या राकेश टिकैत के रो पड़ने ने किसान आंदोलन में नये सिरे से जान फूँक दी है? रात यह लग रहा था कि पुलिस ज़बरन किसानों को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर से हटा देगी लेकिन वैसा नहीं हुआ।
10वें दौर की वार्ता में किसानों के लिए केंद्र सरकार का यह प्रस्ताव हैरान करने वाला था कि विवादास्पद तीन कृषि क़ानूनों को एक से डेढ़ साल के लिए स्थगित कर दिया जाएगा। सरकार ऐसा करने को तैयार क्यों हुई?
किसान आंदोलन के बीच ही नये कृषि क़ानूनों की कॉपी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में फाड़ दी। केजरीवाल ने ऐसा क्यों किया, वह इतने आक्रामक क्यों हैं?
ताज़ा हालात में गृह मंत्रालय दिल्ली सरकार को ‘सहयोग’ कर रहा है और दिल्ली सरकार ‘भीगी बिल्ली’ बनी दिख रही है। ‘संभली हुई स्थिति’ कहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी चुप हैं।
जिस किशनगंज में एक दिन पहले नीतीश कुमार कह रहे थे कि ‘कोई किसी को नहीं भगा सकता’, उसी किशनगंज में अगले दिन चुनाव प्रचार के अंतिम दिन नीतीश कह गये- ‘यह मेरा अंतिम चुनाव है। अंत भला तो सब भला।’
मथुरा के नंदगाँव में नंदबाबा मंदिर परिसर में नमाज़ पढ़ने की तसवीर से हंगामा बरपा है। दो मुसलिम और दो हिन्दू देश में भाईचारगी का संदेश देने के लिए निकले थे। मगर, ऐसी बहस को जन्म दे बैठे जो भाईचारगी को नुक़सान पहुँचाती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुखी हैं कि पुलवामा हमले के बाद ‘भद्दी राजनीति’ हुई। उनका दुख तब सामने आया है जब पाकिस्तान की संसद में मंत्री फ़वाद चौधरी ने कहा है कि पुलवामा हमला ‘पाकिस्तान की उपलब्धि’ है।
जिन लोगों ने भी नीतीश-मोदी और जेडीयू-बीजेपी की सियासत को देखा-समझा है, वे नीतीश के वोट मांगने के इस अंदाज को देखकर चकित हैं, मगर यही चौंकाने वाला फैक्टर बिहार की सियासत के बदले हुए मिजाज का सबूत भी है।
बीजेपी के बड़े नेता चाहे वो जेपी नड्डा हों या फिर अमित शाह, भूपेंद्र यादव हों या फिर देवेंद्र फडणवीस- यह नहीं बता पाए हैं कि एलजेपी से एनडीए का नाता खत्म हो चुका है या नहीं।
क्या कोरोना की फ्री वैक्सीन का वादा किसी चुनाव घोषणा पत्र का हिस्सा हो सकता है? क्या होना चाहिए? यह सवाल देश में हर औसत बुद्धि का व्यक्ति भी बीजेपी से पूछ रहा है।