उत्तर प्रदेश और बिहार में जातीय राजनीति का ढाँचा बदल रहा है। जातीय समूहों की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा बढ़ी है। जातीय समूहों की इस बेचैनी का असर क्या आने वाले चुनाव परिणाम पर भी पड़ेगा?
वैचारिक विचारधारा से इतर जातियों की गिनती कर अपनी पार्टी से जोड़ने का यह फ़ॉर्मूला बीएसपी को नुक़सान पहुँचा रहा है और वह लगातार अपने जनाधार गँवा रही है।
देश भर में हुए व्यापक विरोध प्रदर्शन और लोकसभा चुनावों को देखते हुए सरकार थोड़ा झुकती नजर आई है, लेकिन सरकार का अध्यादेश तमाम आशंकाएँ लेकर भी सामने आया है।
मनमोहन सिंह की सरकार में आतंकी हमला होने पर नरेंद्र मोदी केंद्र सरकार पर ख़ूब बरसते थे। अब मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, लेकिन देश में आतंकवादी हमले हो रहे हैं।
मोदी सरकार के दौरान रेलवे में सवा लाख लोगों को नौकरी मिलने की बात झूठ है। जिन बच्चों ने रेलवे की भर्ती परीक्षा पास कर ली, उन्हें अब तक ज्वाइनिंग लेटर नहीं मिल पाया है।
केंद्र की नीयत साफ़ होती तो वह अध्यादेश लाती कि टीचिंग व नॉन-टीचिंग स्टाफ़ की भर्ती में 49.5 प्रतिशत आरक्षण लागू हो, लेकिन इसके बजाए वह सिर्फ़ बहाने बना रही है।
विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण के मसले पर उत्तर प्रदेश की राजनीति के अखाड़े के मज़बूत पहलवान सपा और बसपा के आक्रामक होने से मोदी सरकार सकते में है। इसे शायद ऐसी उम्मीद नहीं थी।
नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के एससी-एसटी और अन्य पिछड़े वर्ग समुदाय के लिए विश्वविद्यालयों में आरक्षण के माध्यम से नौकरियाँ मिलने का दरवाजा पूरी तरह बंद कर दिया है।
एससी, एसटी के लिए 22.5 प्रतिशत आरक्षण होने के बाद भी इस वर्ग के लोगों को फ़ायदा नहीं मिला। ऐसा इसलिए क्योंकि विश्वविद्यालयों की परिषदों ने आरक्षण को मंजूरी नहीं दी थी।