असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती ने उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (यूपीएचईएससी) को नया साक्षात्कार नहीं कराने का निर्देश दिया है। उसके सचिव और अपर मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया है।
अनुच्छेद 370 में फेरबदल किए जाने से कश्मीरी महिलाओं व लड़कियों को निशाने पर क्यों लिया जा रहा है। इनको लेकर जो कुंठा सामने आ रही है, वह सामान्य नहीं है। यह डराने वाली स्थिति है।
आम्बेडकर ने क्यों लिखा था कि मुझे लगता है कि हमें कश्मीर के बजाय पूर्वी बंगाल पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए, जिसके बारे में हमें अख़बारों से पता चल रहा है कि वहाँ हमारे लोग बहुत ख़राब परिस्थितियों में रहे हैं?
उत्तर प्रदेश में असिस्टेंट प्रोफे़सर पद पर विभिन्न विषयों में भर्ती में ओबीसी के चयन में संभावित गड़बड़ियों को लेकर राज्य के राज्यपाल राम नाईक ने सक्रियता दिखाई है।
न्यायालयों की भर्ती प्रक्रिया में विसंगतियों को लेकर एक बार फिर चर्चा हो रही है। न्यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने इस संबंध में प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा है।
नौकरियों में आरक्षण को लेकर विवाद नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद नया नहीं है। उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसरों की नियुक्ति में भी आरक्षित पदों संबंधी गड़बड़ियाँ खुलकर सामने आई हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार की एक परीक्षा में रिजर्वेशन कैटगरी का कट ऑफ़ सामान्य कैटगरी के कट ऑफ़ से ऊपर था, यानी सामान्य से ज़्यादा नंबर पर रिजर्वेशन वालों का चुनाव हुआ।
केंद्र सरकार ने फ़ैसला किया है कि वह नौकरशाही में बाहर के क्षेत्रों से जानकारों को लाएगी। इसके लिए नई प्रणाली लागू की गई है। इसे लैटरल एंट्री का नाम दिया गया है।
जेडीयू ने चुनाव में 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और 16 सीटों पर जीत हासिल की। नीतीश कुमार ने दिखाया है कि राज्य में उनका अपना वोट बैंक है और वह उनसे मजबूती से जुड़ा है।
उच्चतम न्यायालय ने एससी-एसटी वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने के कर्नाटक सरकार के फ़ैसले को हरी झंडी देकर संविधान के प्रति वंचित तबक़े की आस्था को मजबूत कर दिया है।
बीजेपी लोकसभा चुनाव जीतने के हर हथकंडे आजमा रही है, जिसमें से एक पिछड़े वर्ग को विभाजित कर उसके एक तबक़े का वोट खींचना भी शामिल है। तो क्या इन जातियों को वह खींच पाएगी?
आख़िरी दो चरणों में उत्तर प्रदेश के जिन क्षेत्रों में चुनाव होने जा रहे हैं वे औद्योगिक रूप से पिछड़े हुए हैं। गोरखपुर में अब हथकरघा, खादी, शहद उत्पादन, चमड़े का कारोबार कहीं नज़र नहीं आता है। क्या ये चुनावी मुद्दे बनेंगे?
यूपी, बिहार की सामाजिक न्याय की लड़ाई कुनबे की लड़ाई में तब्दील हो गई है। नेता वंचित तबके़ को एकजुट करने में नहीं बल्कि जातीय गोटियाँ बैठाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।