लेखक ने पूर्वोत्तर, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, नेपाल और भूटान से राजनीति, उग्रवाद, पर्यटन, पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों पर रिपोर्टिंग की है। समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।
बशीरहाट सीट पर संदेशखाली की बदनामी के साया मँडरा रहा है। ऐसे में ममता बैनर्जी के लिए ये सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है। क्या वे बीजेपी की चुनौती को ध्वस्त कर पाएंगी? वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
क्या बीजेपी इस बार उत्तर बंगाल में अपना प्रदर्शन दोहरा पाएगी? क्या वह फिर से आठ में से सात सीटें जीत सकेगी? ममता बैनर्जी उसके किले को भेदने के लिए क्या कर रही हैं? वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
पश्चिम बंगाल में रामनवमी पर हिंसा का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। अभी तक यहां के लोग दुर्गा पूजा पर होने वाली राजनीति से वाकिफ थे लेकिन 2014 के बाद से जिस तरह रामनवमी जुलूसों में तलवार और अन्य हथियार लहराए जाने लगे, उसने बंगाल की पूरी राजनीति को प्रभावित कर दिया है।
पूर्वोत्तर के दो महत्वपूर्ण राज्यों नागालैंड और मेघालय में कल सोमवार 27 फरवरी को मतदान है। इनके नतीजे त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के साथ 2 मार्च को आएंगे। जानिए आखिर नागालैंड और मेघालय के चुनाव को बीजेपी और कांग्रेस इतनी गंभीरता से क्यों ले रहे हैं।
त्रिपुरा में 16 फरवरी को मतदान है। त्रिपुरा के पिछले चुनाव में बीजेपी ने सीपीएम को सत्ता से हटाया था लेकिन बीजेपी पिछले पांच साल सत्ता में रहते हुए अपना घर ठीक कर पाई। नतीजा ये निकल रहा है कि इस बार विधानसभा चुनाव 2023 में हालात उसके खिलाफ हैं।
असम में बाल विवाह कानून की आड़ में गिरफ्तारियों का मामला गंभीर होता जा रहा है। तमाम विवाद होने के बावजूद पुलिस ने गिरफ्तारियों को नहीं रोका। इसमें तमाम तरह की नाइंसाफी होने की बात सामने आ रही है।
असम में बाल विवाह करने वाले लोगों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की गई हैं। असम सरकार ने इस बात से इनकार किया है कि इसकी आड़ में मुसलमानों को टारगेट किया जा रहा है। हालांकि मुस्लिम इलाकों में भारी गिरफ्तारियां हुई हैं।
मेघालय में चुनाव होने जा रहा है। ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी वहां किस्मत आजमाने पहुंच गई है। ऐसे में सवाल यह है कि टीएमसी का वहां कोई जनाधार नहीं है, तो क्या वहां टीएमसी विपक्ष को हराने के लिए चुनाव लड़ने गई है।
असम सरकार ने अवैध मदरसों पर बुलडोजर चलाने के बाद छोटे मदरसों को बड़े मदरसों में विलय करने की कार्रवाई भी शुरू कर दी है। क्या कट्टरवाद को रोकना ही इसका मकसद है या कुछ और भी।
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। राज्य में मुख्यमंत्री बदलने के समय से ही वहां बीजेपी पहले से ही चुनावी मोड में चुकी है। लेकिन इसके बावजूद बीजेपी के लिए त्रिपुरा की जीत इतनी आसान नहीं लग रही है।
राजनीति के दो धुर विरोधी दल बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच क्या अब रिश्ते बदल रहे हैं? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी के बीच कड़वाहट कम हो रही है? जानिए आख़िर पश्चिम बंगाल में चल क्या रहा है।
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी सरकार की राज्यपाल से पहले लगातार तनातनी बनी रही है तो क्या नये राज्यपाल की नियुक्ति के साथ वह तनातनी ख़त्म होगी? क्या सीएम और राज्यपाल के बीच संबंध सुधरेंगे?
पश्चिम बंगाल में तृणमूल सरकार के मंत्री के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पर टिप्पणी के लिए ममता बनर्जी ने क्यों माफी मांगी? और बीजेपी ने आख़िर इतना बवाल क्यों किया? जानिए क्या है वजह।
असम में बीते दिनों में तीन मदरसों पर बुलडोजर चल चुके हैं। अब राज्य की बीजेपी सरकार ने सभी मदरसों को 1 दिसंबर तक वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों के बारे में पूरी जानकारी देने को कहा है। इस क़दम का क्या मतलब है?
अलग गारो राज्य की मांग क्यों हो रही है? क्या इसलिए कि राज्य की सत्ता में रहने वाले राजनीतिक दल गारो इलाक़े की उपेक्षा करते रहे हैं? क्या चुनाव से पहले यह मांग फिर से जोर पकड़ेगा?
क्या पूर्वोत्तर के उग्रवादग्रस्त राज्य नागालैंड में बीते 25 वर्षों से चल रही शांति प्रक्रिया अपनी मंजिल तक पहुंचेगी? लाख टके के इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।
अक्सर उग्रवाद के लिए सुर्खियां बटोरने वाले पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में अब अवैध प्रवासी सबसे बड़ा मुद्दा बनते जा रहे हैं। इससे स्थानीय लोगों की पहचान पर संकट पैदा हो रहा है। यही वजह है कि सरकार ने अब इस मामले में कड़ा रुख अपनाया है।
कोलकाता में लाइव शो के दौरान ही केके की तबीयत बिगड़ने और फिर बाद में मौत होने के मामले में क्यों सवाल उठ रहे हैं? क्यों कार्यक्रम के इंतज़ाम संदेह के घेरे में है?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके भतीजे की टीम के बीच क्या सबकुछ ठीक नहीं है? क्या इसके पीछे कुछ और वजह है? प्रशांत किशोर का नाम क्यों आ रहा है?
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के आख़िरी तीन चरण ख़ासकर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और उसकी प्रमुख ममता बनर्जी के लिये बेहद अहम हैं। इस दौर में चार मुसलिम बहुल इलाक़ों की सीटें ममता की सत्ता में वापसी में सबसे निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।
बीजेपी ने भी प्रधानमंत्री समेत बाक़ी नेताओं की रैलियों में भीड़ की संख्या पाँच सौ तक रखने की बात कही है। लेकिन न तो उसने किसी रैली में कटौती की बात कही है और न ही भीड़ को पाँच सौ तक सीमित रखने का कोई फ़ॉर्मूला बताया है।