इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने तो ज़बर्दस्त प्रदर्शन किया ही, इंडिया गठबंधन ने बीजेपी को कड़ी चुनौती दी। जानिए, राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा से कैसे देश की राजनीति बदल दी।
राहुल गांधी ने इस बार लोकसभा चुनाव के लिए अमेठी को छोड़कर रायबरेली को क्यों चुना? आख़िर रायबरेली से कांग्रेस का ऐसा क्या संबंध रहा है कि राहुल विपक्ष के हमलों का ख़तरा उठाकर वहाँ चले गए?
नेहरू जी के पास न घर बचा था और न नकदी। यही हाल इंदिरा गाँधी का भी था। उनके पास जो सोने-चाँदी के आभूषण थे, वह सभी उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय राष्ट्रीय रक्षा कोष में दान कर दिया था। तो फिर विरासत टैक्स को लेकर हमला क्यों?
मोदी से लेकर योगी तक कांग्रेस के घोषणापत्र को लेकर खुला झूठ बोल रहे हैं। जिस मीडिया का फ़र्ज़ इस झूठ को उजागर करना था, वह इन झूठे दावों का ‘लाइव प्रसारण’ कर रहा है। इससे यह भी साफ़ हो रहा है कि मोदी एंड कंपनी कांग्रेस के उस घोषणापत्र से घबराये हुए हैं जो तमाम विशेषज्ञों की नज़र में बेहद क्रांतिकारी है। पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार पंकज श्रीवास्तव का धारदार विश्लेषणः
कांग्रेस के घोषणापत्र पर पीएम मोदी की बयानबाजी ने यह तो साफ कर दिया है कि देश की दो पार्टियां यानी कांग्रेस और भाजपा देश को किस दिशा में ले जाना चाहती हैं। मोदी कांग्रेस के घोषणापत्र पर गुमराह करते और गलतबयानी करते हुए पकड़े गए हैं। वो कांग्रेस घोषणापत्र के बारे में जो बता रहे थे, उसी बात ने लोगों को कांग्रेस का घोषणापत्र पढ़ने को मजबूर कर दिया। चुनाव के नतीजे जो भी हों लेकिन मोदी की आर्थिक नीतियों ने भारत की आर्थिक असमानता की पर्तों को नंगा कर दिया है। पढ़िए पंकज श्रीवास्तव का लेखः
पीएम मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र में मुस्लिम लीग की छाया कैसे देख ली? इस घोषणापत्र में न्याय के जिस दर्शन को आधार बनाया गया है, क्या मुस्लिम लीग से उसका कुछ लेना-देना रहा है?
मुक्केबाज़ विजेंद्र सिंह शाम को राहुल गाँधी ज़िंदाबाद का नारा लगा कर सोये और रात पता नहीं क्या सपना आया कि सुबह बीजेपी दफ़्तर की ओर रुख़ कर गये। गौरव वल्लभ तो इस्तीफ़ा देने के तुरंत बाद बीजेपी में शामिल हो गये। ऐसा क्यों हो रहा है?
फिर कांग्रेस का बैंक खाता क्यों सील कराया गया? क्या पीएण मोदी को ‘चार सौ पार’ नारे पर भरोसा नहीं है और मीडिया में बनायी जा रही छवि भी उन्हें जीत को लेकर आश्वस्त नहीं कर पा रही है?
व्हाट्सऐप पर क्यों फैलाया जा रहा है कि रामचरित मानस के रचयिता तुलसीदास ने राममंदिर गिराकर बाबरी मस्जिद गिराये जाने से व्यथित होकर दोहे लिखे थे जो ‘ तुलसी दोहा शतक’ में संग्रहीत हैं? जानिए, इस दोहे का सच!
राम मंदिर के नाम पर बीजेपी भारत की केंद्रीय सत्ता पर काबिज हो चुकी है। लेकिन क्या आपको पता है कि शुरुआत में आरएसएस का राम मंदिर को लेकर क्या रुख था? क्या उसे भगवान राम की छवि स्वीकार्य है? अब राम मंदिर ही उसका मुख्य मुद्दा क्यों है?
भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण की यात्रा को भारत न्याय यात्रा नाम क्यों दिया गया है? आख़िर इस यात्रा का मक़सद क्या है और क्यों इसको न्याय से जोड़ा गया है? जानिए, इस यात्रा का मक़सद क्या है।
जाति भारत की एक तल्ख सच्चाई है। जब भी भारत में हिन्दुओं को विभिन्न जातियों में बांटा गया होगा, जरूर उसके कुछ तर्क रहे होंगे। आरएसएस और भाजपा जो भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने पर आमादा हैं, उनके रास्ते में सबसे बड़ी बाधा जाति है। लेकिन जाति जनगणना के समर्थन में बन रहे माहौल को देखकर आरएसएस ने चालाकी से अपना स्टैंड बदला है लेकिन उसके साथ शर्त भी जोड़ दी है। इस गहराई को वरिष्ठ पत्रकार पंकज श्रीवास्तव से समझिएः
अगर राजस्थान में मोदी की बीजेपी 450 रुपये में रसोई गैस का सिलेंडर देने का वादा कर सकती है तो उत्तर प्रदेश या उत्तराखंड की जनता को ये नसीब क्यों नहीं है जहाँ बीजेपी की ही सरकार है?
पीएम मोदी ने कल राहुल गांधी को कांग्रेस का एक 'महाज्ञानी' और मूर्खों का सरदार कहकर संबोधित किया था। क्या प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति को इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए?
नारायण मूर्ति ने पिछले महीने हफ्ते में 70 घंटे काम करने की वकालत कर एक बहस छेड़ दी है। क्या देश ऐसा किए बिना आगे नहीं बढ़ सकता? क्या मज़दूरों से मशीन की तरह काम लिया जा सकता है?
बिहार में नीतीश सरकार की ओर से पहले करायी गयी जातिवार जनगणना और फिर 75 फ़ीसदी तक आरक्षण के विधेयक को पारित कराना क्या राजनीतिक वातावरण को पूरी तरह बदलने वाला क़दम है?
प्रधानमंत्री मोदी की आख़िर अगले पाँच साल तक के लिए 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने की घोषणा के मायने क्या हैं? जानिए, उनकी उपलब्धियाँ और विफलताएँ क्या हैं।
इज़राइल को किस तरह हमास के हमले का जवाब देना चाहिए था? आश्चर्यजनक रूप से इस सिलसिले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को याद किया जा रहा है। जानिए, तीन बार के पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता पत्रकार थॉमस एल. फ्रीडमैन ने क्या लिखा है।