हाल के अपने ‘कृत्यों’ की वजह से भारतीय मीडिया जनता की ज़बरदस्त आलोचना का शिकार है। एक तरफ़ ‘गोदी मीडिया’ है तो दूसरी ओर ‘सेक्युलर’ मीडिया का छोटा-सा वर्ग है।
छह साल बाद भी 'मोदी' की मक़बूलियत अपूर्व रूप से 77 फ़ीसदी पर जा पहुँची है जबकि देश में बेरोज़गारी, कोरोना और गिरती अर्थव्यवस्था यानी विकास के सभी पैमानों पर देश पिछड़ता जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने एक न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि यदि उन्हें मसजिद निर्माण के समय निमंत्रित किया जाता है तो वह इसमें एक योगी होने के नाते भाग नहीं लेंगें। क्या है विवाद?
कोरोना तो, बकौल एक केन्द्रीय मंत्री, पापड़ खा कर ख़त्म किया जा सकता है। सोचिये, दुनिया के 715 करोड़ लोग, हज़ारों वैज्ञानिक, सैकड़ों संस्थान और 16 वैक्सीन पर चल रहे शोध के बाद भी समझ नहीं आयी कि पापड़ से कोरोना वायरस कैसे भागता है।
गो हत्या और गो मांस का सेवन किस काल-खंड में होता रहा है या नहीं होता रहा है, क्या इसे अन्य धर्मों के लोगों को आदर करना चाहिए? इस पर एक नया विवाद क्यों छिड़ गया है?
पिछले हफ़्ते सर्वोच्च न्यायालय ने ‘भीड़ न्याय’ के ख़िलाफ़ सख़्त रुख़ दिखाया तो लेकिन घटनाएँ बढ़ गयीं। ऐसा क्यों हुआ? क्यों अपराधियों को सज़ा नहीं मिल पा रही है, उनको किनका संरक्षण मिल रहा है?
लोकसभा में एनआईए क़ानून पेश करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अगर पोटा क़ानून ख़त्म न किया गया होता तो मुंबई हमला भी न होता। यदि क़ानून बनाने से आतंकवाद से निपटा जा सकता है तो पूरी दुनिया में क़ानून क्यों नहीं बनाया जाता?
बीजेपी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय को प्रधानमंत्री ने सख़्त नसीहत देकर यह बताया कि अनुशासनहीनता को क़तई बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में देश में लाखों बच्चे पिछले तमाम दशकों से हर साल असमय मौत की गोद में सो जाते हैं। यदि हत्या अपराध है तो सरकारी लापरवाही से मरने को हत्या का अपराध क्यों नहीं माना जाए?