डॉ. वेद प्रताप वैदिक भारत के वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक एवं हिंदीप्रेमी हैं। डॉ. वैदिक अनेक भारतीय व विदेशी शोध-संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रहे हैं।
हांगकांग के चीन के साथ रहते हुए भी स्वायत्त रहने की व्यवस्था 2047 तक थी लेकिन चीन हांगकांग को ख़ुद के अधीन बनाने पर तुला हुआ है। इसे लेकर जबरदस्त विरोध हो रहा है।
सरकार ने ऐसी घोषणा की है जिसे तालाबंदी का ख़ात्मा भी समझा जा सकता है और जिसे किसी न किसी रूप में तालाबंदी का जारी रहना भी माना जा सकता है। सरकारें और जनता, दोनों दुविधा में पड़े हैं कि अब तालाबंदी हट गई है या जारी है?
कुछ दिनों की तल्खियों के बाद चीन और नेपाल ने ने सीमा-विवाद के मामले में अपना रवैया नरम किया है। इन दोनों देशों के प्रति भारत सरकार का रवैया दृढ़ लेकिन संयमपूर्ण रहा है।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी ने आग में घी डालने का काम किया है। उसने भारत-चीन सीमा को लेकर ऐसा भड़काऊ बयान दे दिया है कि यदि भारत उस पर अमल करने लगे तो दोनों पड़ोसी देश शीघ्र ही आपस में लड़ मरें।
यह कितने दुख और आश्चर्य की बात है कि अफ़ग़ानिस्तान भारत का पड़ोसी है और उसके भविष्य के निर्णय करने का काम अमेरिका कर रहा है? भारत की कोई राजनीतिक भूमिका ही नहीं है।
भारत की विदेश नीति के सामने एक बड़ी दुविधा आ फँसी है। भारत शीघ्र ही विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ का अध्यक्ष बननेवाला है। यहाँ भारत के लिए सवाल यह है कि इस मुद्दे पर वह किसका समर्थन करे, चीन का या ताइवान का?
कोरोना संकट का दंश भारत में रहने वाले ग़रीब-मजदूर झेल रहे हैं। जबकि संपन्न वर्ग के लोगों पर इसका ज़्यादा असर नहीं हुआ है और वे आराम से घरों में बैठे हैं।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक कहते हैं कि मुझे दर्जनों नेताओं ने फ़ोन किए, उनमें भाजपाई भी शामिल हैं कि प्रधानमंत्री का भाषण इतना उबाऊ और अप्रासंगिक था कि 20-25 मिनट बाद उन्होंने उसे बंद करके अपना भोजन करना ज़्यादा ठीक समझा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के भोजन-सुरक्षा विशेषज्ञ पीटर एंवारेक ने कहा है कि मांसाहार से कोरोना के फैलने का ख़तरा ज़रूर है लेकिन हम लोगों को यह कैसे कहें कि आप मांस, मछली, अंडे मत खाइए?
विदेशों से जिन लोगों को लाया गया है, उनको मुफ्त की हवाई-यात्रा, मुफ्त का खाना और भारत पहुँचने पर मुफ्त में रहने की सुविधाएँ भी दी गई हैं। लेकिन इनके मुक़ाबले हमारे नंगे-भूखे मज़दूरों से सरकार रेल-किराया वसूल कर रही है।
देश कोरोना के संकट में फँसा है और आप लोगों से थालियाँ और तालियाँ बजवा रहे हैं। एक तरफ़ राहत कार्यों के लिए आप लोगों से दान माँग रहे हैं और दूसरी तरफ़ फ़ौजी नौटंकियाँ में करोड़ों रुपये बर्बाद करने पर उतारू हैं।
कोरोना संकट की सबसे ज्यादा मार ग़रीबों पर पड़ी है। लाखों प्रवासी मजदूर जहां-तहां फंसे हुए हैं, सरकारों को उन्हें उनके गांव तक पहुंचाने का इंतजाम करना चाहिए।
कांग्रेस-अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने 7 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर पाँच सुझाव दिए थे, उनमें से ज़्यादातर बहुत अच्छे थे। मैंने उनका समर्थन किया था लेकिन कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में उन्होंने जो कुछ बोला है, वह ठीक नहीं।
अब तालाबंदी में ढील की घोषणा तो हो गई लेकिन ज़मीनी असलियत क्या है? लोगों में मौत का डर इतना गहरा बैठ गया है कि कारखानेदार, दुकानदार और बड़े अफ़सर अपने कर्मचारियों को अपने दफ्तरों में बुला रहे हैं लेकिन वे आने को ही तैयार नहीं हैं।