पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।
चंदा कोचर पर एफ़आईआर दर्ज़ होने के मामले में सीबीआई के एसपी सुधांशु धर मिश्रा को शाबाशी मिलने के बजाय जेटली की फटकार मिली और फिर उनका तबादला कर दिया गया।
अदालत का फ़ैसला है कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में आरक्षण विभागीय स्तर पर लागू किया जाएगा। क्या इससे दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों का हक़ नहीं मारा जाएगा?
मोदी सरकार ने तमाम विवादों को दरकिनार कर जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना की नियुक्ति कर दी। कॉलिजियम ने अपने पुराने फ़ैसले को पलटते हुए इन दोनों जजों की सिफ़ारिश की थी। तो इतनी जल्दबाज़ी क्यों?
कभी सोनिया गाँधी के विदेशी मूल को बड़ा मुद्दा बना कर कांग्रेस छोड़ने वाले शरद पवार इन दिनों सोनिया और राहुल की तारीफ़ करते हैं और नरेंद्र मोदी को खरी-खोटी सुनाते हैं।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को बीजेपी ओर कांग्रेस दोनों पर हमला किया। मायावती का संदेश साफ़ है कि वह बीजेपी और कांग्रेस दोनों से अलग एक नये विकल्प की तलाश में हैं।
मध्यम वर्ग और किसानों की नाराज़गी दूर करने के लिए चुनाव के पहले केंद्र सरकार कुछ लोकलुभावन फ़ैसले कर सकती है, ताकि वह उनसे मुखातिब होकर उनसे वोट माँग सके।
मोदी सरकार के 'ग़रीब सवर्ण' आरक्षण पर चर्चा गरम है। मंगलवार को लोकसभा में विधेयक पेश कर दिया गया। पर सवाल यह है कि क्या इसका फ़ायदा उनको मिलेगा जिनको ध्यान में रखकर यह किया गया है।
नरेंद्र मोदी के मेत्री नितिन गडकरी बार-बार उन पर अपरोक्ष हमले कर रहे हैं। वे उनके ख़िलाफ़ वाक़ई बग़ावत पर आमादा हैं या चुनाव के पहले अपनी पोजिशनिंग कर रहे हैं?
बीजेपी सरकार के मंत्री ने विपक्षी नेताओं पर निशाना साधते-साधते दिव्यांग लोगों का अपमान कर दिया। मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह विपक्षी गठबंधन को लेकर टिप्पणी कर रहे थे।
राहुल गाँधी ने एएनआई की संपादक स्मिता प्रकाश को “प्लायबल जर्नलिस्ट” कहा तो दक्षिणपंथी ख़ेमे में हंगामा मच गया। मोदी सरकार को भी तक़लीफ़ हुई। अब सवाल यह है कि पहले के ऐसे बयानों पर इतना हंगामा क्यों नहीं मचा?
हिंदू धर्म में हुए भेदभाव के ख़िलाफ़ दलित अब मुखर होकर आवाज़ उठा रहा है। दलित अब अन्याय होने पर चुप नहीं रहना चाहता और इसका मुहँतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है।
'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' से कांग्रेसियों की भावनाएँ आहत हो रही हैं। उनके तर्क का निहितार्थ यह है कि इससे किसी नेता या पार्टी का भविष्य बन या बिगड़ सकता है। क्या यह मूर्ख़तापूर्ण नहीं है?
कौन है यह आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट? क्यों इसका नाम आते ही लोग काँप जाते हैं ? क्या यह दुनिया के इतिहास का सबसे ख़तरनाक आतंकवादी संगठन है? क्या अब इनके निशाने पर भारत है?
ख़बर है कि दिल्ली विधानसभा में प्रस्ताव पास हो गया है कि राजीव गाँधी को दिया हुआ भारत रत्न वापस लेना चाहिए। अब सवाल यह है कि ऐसा करके "आप" संदेश क्या देना चाहती है?
जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कैलाश विजयवर्गीय ने सोनिया गाँधी के लिए किया है, उससे यही सवाल खड़ा होता है कि उनके जैसे लोग क्या हिंदू संस्कारों को समझते भी हैं?
पाँच विधानसभा चुनावों के नतीजों से निकले हैं पाँच बड़े निष्कर्ष। इन चुनावों ने कई बड़े मिथकों को तोड़ा और सत्तारूढ़ दल बीजेपी को गंभीर चिंतन की ज़रूरत बताई।
संघ परिवार ने एक बार फिर राम मंदिर मुद्दे को उठाया है लेकिन इस बार वह भीड़ नहीं जुटा पा रहा है। ऐसे में 2019 के चुनाव से पहले यह संघ, बीजेपी के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
जो माहौल आजकल बन गया है टीवी डिबेट का और राजनीतिक पार्टियों की तरफ़ से जिस तरह के टीवी पैनलिस्ट भेजे जाते है, उससे इस आशंका को सच होने में टाइम नहीं लगेगा।