पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।
इस बार प्रधानमंत्री मोदी का आत्मविश्वास डिगा हुआ है और वह ऐसी भाषा बोल रहे हैं जो विश्वास की भाषा नहीं है। यह भाषा निराशा की भाषा है। एक हताश नेता की भाषा है।
चार चरणों की वोटिंग हो गयी। अब पाँचवाँ, छठा और सातवाँ चरण तय करेगा कि मोदी दुबारा प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं। देखिये वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का विश्लेषण।
तेज बहादुर यादव ने आरोप लगाया है कि चुनाव से नामाँकन वापस लेने के लिए उन्हें 50 करोड़ का लालच दिया गया था। क्या है पूरा मामला, देखिये वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का विश्लेषण।
तीन चरण के मतदान हो गये हैं। मोदी ने पहले बालाकोट के बहाने ‘राष्ट्रवाद’ और फिर साध्वी प्रज्ञा के बहाने ‘हिंदू आतंकवाद बनाम मुसलिम आतंकवाद’ का नैरेटिव बनाने की कोशिश की। ये नहीं चले तो मोदी अब हिंदुत्व के एजेंडे पर आ गये हैं।
तीन चरण के मतदान हो गये हैं। मोदी ने पहले बालाकोट के बहाने ‘राष्ट्रवाद’ और फिर साध्वी प्रज्ञा के बहाने ‘हिंदू आतंकवाद बनाम मुसलिम आतंकवाद’ का नैरेटिव बनाने की कोशिश की। ये नहीं चले तो मोदी अब हिंदुत्व के एजेंडे पर आ गये हैं।
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण की वोटिंग के साथ ही 300 से ज़्यादा सीटों पर मतदान पूरा हो गया। अब तसवीर साफ़ होने लगी है कि इस चुनाव में कौन आगे है। देखिये आशुतोष का विश्लेषण।
आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हो पाया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दिल्ली में बीजेपी को जिताना चाहती हैं आम आदमी पार्टी और कांग्रेस? देखिये वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष की रिपोर्ट।
दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव में उतारने की घोषणा के साथ ही साध्वी प्रज्ञा सिंह एक बार फिर ख़बरों में हैं। साध्वी को स्वास्थ कारणों से जमानत मिली है। क्या रद्द होनी चाहिए साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की जमानत? देखिए वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष क्या कहते हैं।
दिल्ली में गठबंधन की बातचीत टूटने के बाद अरविंद केजरीवाल को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराने से जुड़ा राहुल गाँधी के बयान और उस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री का पलटवार आख़ि क्या साबित करता है?
रायबरेली में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जब कहा कि आप रायबरेली से चुनाव लड़ें तो इसके जवाब में प्रियंका गाँधी ने कहा कि अगर वे बनारस से चुनाव लड़ती हैं तो कैसा रहेगा? कहीं वह मोदी के ख़िलाफ़ तो नहीं उतरेंगी? देखिये वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और शैलेष की चर्चा।
अमित शाह राज्य सभा के सदस्य हैं तो फिर वह लोकसभा का चुनाव क्यों लड़ रहे हैं? क्या शाह ने ख़ुद को भविष्य के प्रधानमंत्री के तौर पर देखना शुरू कर दिया है?
आडवाणी को एक ऐसे शख़्स के तौर पर याद किया जाएगा जिसने आरएसएस की विचारधारा हिन्दुत्व को भारत की राजनीति में न केवल स्वीकार्य बनाया, बल्कि उसे मजबूती के साथ स्थापित भी किया।
मनोहर पर्रीकर संघ के थे, लेकिन उनमें वह कट्टरता नहीं दिखती थी, जो कई अन्य में दिखाई देती है। एक मायने में वह वाजपेयी और मोदी का मिश्रण थे। वाजपेयी जैसा सबको साथ लेकर चलने का हुनर और मोदी जैसी राजनीतिक चतुराई।
देश अपना काम करेगा। पर क्या देश के नेता राजनीति करने से बाज़ आएँगे? हमारा बहादुर जवान विंग कमांडर अभिनंदन जब पाकिस्तान की गिरफ़्त में थे तब नेता बेशर्मी की सारी हदें पार कर रहे थे।
संसद में पेश की गई कैग की रिपोर्ट से कई सवाल खड़े होते हैं। रिपोर्ट पढ़कर लगता है कि यह रफ़ाल सौदे पर मोदी सरकार की विवेचना कम करती है, उसे बचाती ज़्यादा है।