हमें जो चाहिए क्या उसे देने के लिए इंडिया (गठबंधन) तैयार है? क्या उसने लोकसभा चुनाव में गठबंधन बनाकर आंशिक सफलता अर्जित करके अपना संतोष पा लिया है और सत्ता न मिलने पर बिखरने को तैयार है या फिर वह लोकतंत्र और संविधान की लड़ाई को लंबे समय तक लड़ने के लिए तैयार है?
अयोध्या में बीजेपी के उम्मीदवार लल्लू सिंह की हार ने हिंदुत्ववादियों को हिला कर रख दिया है, लेकिन क्या यह अयोध्यावासियों के लिए भी ऐसा ही है? जानिए, फैजाबाद लोकसभा सीट पर चुनाव नतीजे के मायने क्या।
महात्मा गांधी को जानने- न जानने पर पीएम मोदी ने एक घटिया बयान देकर देश में बहस को जन्म दे दिया है। मोदी को खुद देखना चाहिए उनके इस स्तरहीन बयान का सोशल मीडिया पर कितना जबरदस्त विरोध हुआ। तमाम चिंतक अपने विचार लेखों के माध्यम से प्रक्ट कर रहे हैं। मोदी कन्याकुमारी में जाकर चाहे जितना पश्चाताप करें लेकिन गांधी उनका पीछा नहीं छोड़ेंगे। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अरुण कुमार की इस टिप्पणी में गांधी के उन पहलुओं पर रोशनी डाली गई है कि कैसे विदेश के पत्रकार और नामी हस्तियां गांधी से मिलने को बेताब रहते थे। पढ़िएः
1948 में आज ही यानी 30 जनवरी को नाथूराम गोडसे ने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी। जानिए, गांधी से हत्यारे क्यों डरते थे।
कर्पूरी ठाकुर ने मुख्यमंत्री रहते हुए कभी निजी कार्यक्रमों के लिए सरकारी वाहनों का उपयोग नहीं किया। रांची में एक शादी में जाना था तो टैक्सी से गए। एक बार वे एक कार्यक्रम में फटा हुआ कुर्ता पहन कर गए तो चंद्रशेखर ने उनके लिए कुर्ता खरीदने हेतु वहीं चंदा करके धन दिया।
अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की तारीख बिल्कुल नजदीक आ चुकी है। लेकिन देश में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। हर पक्ष के अपने तर्क हैं। लेकिन यह बात तो साफ ही है कि धर्म और राजनीति अलग-अलग चीजें हैं। उनके घालमेल पर कई बार खतरनाक नतीजे आते हैं। वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी की टिप्पणी पढ़िए और उनकी इस महत्वपूर्ण लाइन पर विचार कीजिए- अयोध्यावादी जीत रहे हैं और अयोध्यावासी हार रहे हैं।
गांधी विद्या संस्थान को हड़प लिया गया। आरोप इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र पर है। इस केंद्र के नाम में इंदिरा गांधी जरूर जुड़ा है लेकिन इस पर पूरी तरह आरएसएस और भाजपा का कब्जा है। राम बहादुर राय इस केंद्र के प्रमुख हैं। वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी की टिप्पणी इस विवाद पर पढ़िएः